Thursday, August 29, 2013

Murli[29-08-2013]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - जिस मात-पिता से तुम्हें बेहद का वर्सा मिलता है उस मात-पिता का हाथ 
कभी छोड़ना नहीं, पढ़ाई छोड़ी तो छोरा-छोरी बन जायेंगे'' 

प्रश्न:- खुशनसीब बच्चों का पुरूषार्थ क्या रहता, उनकी निशानी सुनाओ? 
उत्तर:- जो खुशनसीब बच्चे हैं - वह देही-अभिमानी रहने का पुरूषार्थ करते हैं। जो सुनते हैं उसका औरों 
को दान देते हैं। वह शंखध्वनि करने बिगर रह नहीं सकते। धारणा भी तब हो जब दान करें। खुशनसीब 
बच्चे दिन-रात सेवा में फर्स्टक्लास मेहनत करते हैं। कभी भी धर्मराज से डोंट केयर नहीं रहते। सिर्फ 
अच्छा-अच्छा खाया, अच्छा-अच्छा पहना, सार्विस नहीं की, श्रीमत पर नहीं चले तो माया बहुत बुरी 
गति कर देती है। 

गीत:- भोलेनाथ से निराला........ 

धारणा के लिये मुख्य सार:- 

1) कर्म-अकर्म-विकर्म की गति को बुद्धि में रख श्रेष्ठ कर्म करने हैं। पढ़ाई कभी नहीं छोड़नी है। 

2) ज्ञान दान करने से ही धारणा होगी इसलिए दान जरूर करना है। कभी भी बाप की आज्ञाओं को 
डोंटकेयर नहीं करना है। 

वरदान:- नेचुरल अटेन्शन वा अभ्यास द्वारा नेचर को परिवर्तन करने वाले सिद्धि स्वरूप भव 

आप सबके निजी संस्कार अटेन्शन के हैं। जब टेन्शन रखना आता है तो अटेन्शन रखना क्या बड़ी 
बात है। तो अब अटेन्शन का भी टेन्शन न हो लेकिन नेचुरल अटेन्शन हो। आत्मा को न्यारा होने का 
नेचुरल अभ्यास है। न्यारी थी, न्यारी है फिर न्यारी बनेंगी। जैसे अभी वाणी में आने का अभ्यास 
पक्का हो गया है, ऐसे वाणी से परे, न्यारे होने का अभ्यास भी नेचुरल हो जाये तो न्यारेपन के शक्तिशाली 
वायब्रेशन द्वारा सेवा में सहज सिद्धि को प्राप्त करेंगे और यह नेचरल अभ्यास नेचर को भी बदल देगा। 

स्लोगन:- अशरीरी-पन की एक्सरसाइज और व्यर्थ संकल्पों के भोजन की परहेज करो तो एवरहेल्दी रहेंगे।