Monday, August 26, 2013

Murli[26-08-2013]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - बाप आये हैं सुख-शान्ति की मनोकामना पूरी करने, तुम शान्ति चाहते हो तो इन आरगन्स से डिटैच हो जाओ, अपने स्वधर्म में टिको'' 

प्रश्न:- पूज्य बनने का पुरूषार्थ क्या है? तुम्हारी पूजा क्यों होती है? 
उत्तर:- पूज्य बनने के लिये विश्व को पावन बनाने की सेवा में मददगार बनो। जो जीव की आत्मायें बाप को मदद करती हैं उनकी बाप के साथ-साथ पूजा होती है। तुम बच्चे शिवबाबा के साथ सालिग्राम रूप में भी पूजे जाते हो, तो फिर साकार में लक्ष्मी-नारायण वा देवी-देवता के रूप में भी पूजे जाते हो। तुमने पूज्य और पुजारी के रहस्य को भी समझा है।

 गीत:- माता ओ माता........ 
धारणा के लिए मुख्य सार :- 

1) स्वयं को इस शरीर में भ्रकुटी के बीच चमकती हुई मणी समझना है। स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। 

2) अपने स्वधर्म और स्वदेश को याद कर शान्ति का अनुभव करना है। बुद्धि को भटकाना नहीं है। इस शरीर से डिटैच होने का अभ्यास करना है।

 वरदान:- अलौकिक स्वरूप की स्मृति द्वारा अलौकिक कर्म करने वाले सदा समर्थ आत्मा भव 

ब्राह्मण जीवन अर्थात् अलौकिक, हीरे तुल्य अमूल्य जीवन। इस अलौकिक जीवन की स्मृति से वा अलौकिक स्वरूप में स्थित रहने से साधारण चलन, साधारण कर्म नहीं हो सकता। जो भी कर्म करेंगे वह अलौकिक ही होगा क्योंकि जैसी स्मृति होती है वैसी स्थिति होती है। स्मृति में रहे एक बाप दूसरा न कोई। तो बाप की स्मृति सदा समर्थ बना देगी इसलिए हर कर्म भी श्रेष्ठ, अलौकिक होगा। 

स्लोगन:- स्व-उन्नति का यथार्थ चश्मा पहन लो तो सबकी विशेषतायें ही दिखाई देंगी।