Thursday, August 22, 2013

Murli[22-08-2013]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - दूरादेशी और विशालबुद्धि बनो, शिवबाबा के कार्य में कभी डिस्टर्ब 
नहीं करना, डिस्टर्ब करने वालों को ऊंच पद नहीं मिल सकता'' 

प्रश्न:- इस दुनिया में मनुष्यों को कौन से ख्यालात रहते हैं जो सतयुगी देवताओं को कभी नहीं आयेंगे? 
उत्तर:- यहाँ मनुष्य समझते हैं कि हम कमायेंगे तो हमारे पुत्र और पोत्रे खायेंगे लेकिन यह ख्यालात 
देवताओं में नहीं होंगे क्योंकि उनके पुत्र और पोत्रे सब यहाँ से ही वर्सा लेकर जाते हैं। वह समझते हैं 
हमारी अविनाशी राजाई है। यहाँ ही हरेक अपना-अपना पुरूषार्थ कर रहे हैं। 

गीत:- माता ओ माता..... 

धारणा के लिए मुख्य सार :- 

1) अपना समय सार्विस में सफल करना है। तन-मन-धन सब अर्पण कर जब तक जीना है पढ़ाई पढ़ते रहना है। 

2) आपस में एक-दो की ज्ञान से पालना करनी है। ऐसा कोई कार्य नहीं करना है जिससे बाप की अवज्ञा हो। 

वरदान:- निश्चयबुद्धि बन हलचल में भी अचल रहने वाले विजयी रत्न भव 

निश्चय और विजय - यह एक दो के पक्के साथी हैं। जहाँ निश्चय है वहाँ विजय जरूर है ही, क्योंकि निश्चय है 
कि बाप सर्वशक्तिमान है और मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ तो विजय कहाँ जायेगी? ऐसे निश्चयबुद्धि की कभी 
हार हो नहीं सकती। निश्चय का फाउण्डेशन पक्का है तो कोई तूफान हिला नहीं सकता। हलचल में भी अचल 
रहना - इसको कहा जाता है निश्चयबुद्धि विजयी रत्न। लेकिन सिर्फ बाप में निश्चय नहीं, स्वयं में और ड्रामा 
में भी निश्चय हो। 

स्लोगन:- उड़ता पंछी वह है जो देह के सब रिश्तों से मुक्त रह फरिश्ता बनने का पुरूषार्थ करता है।