Friday, August 16, 2013

Murli[16-08-2013]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे-अभी तुम कौड़ी से हीरे जैसा बने हो, ईश्वर की गोद पाना ही हीरे 
जैसा बनना है, श्रीमत तुम्हें हीरे जैसा बना देती है'' 

प्रश्न:- सतयुग में किसी को तो ताउसी-तख्त (बादशाही) और किसी को दास-दासी या प्रजा पद 
मिलता है, इसका कारण क्या है? 
उत्तर:- सतयुग में ताउसी तख्त उन्हें मिलता जो संगम पर ज्ञान सागर की पढ़ाई को अच्छी 
रीति पढ़ते हैं और धारण करते हैं, ज्ञान रत्नों का दान कर बहुतों को आप समान बनाते हैं और 
जो गफलत करते, देह-अभिमान में आकर हंगामें मचाते, उन्हें प्रजा पद मिल जाता है। पढ़ाई 
पर ध्यान न देने वाले ही दास-दासी बन जाते हैं। 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) सुख देने वाले बाप, टीचर, सतगुरू का रिगार्ड जरूर रखना है। उनकी मत पर चलना
ही उनका रिगार्ड है। 

2) घर का कामकाज करते स्वयं को गॉड फादर का स्टूडेन्ट समझना है। पढ़ाई पर पूरा 
ध्यान देना है, मुरली मिस नहीं करनी है। सचखण्ड के लिए सच्ची कमाई करनी है। 

वरदान:- सच्ची दिल से बाप को राजी करने और सदा राजी रहने वाले राजयुक्त भव 

जो बच्चे सच्ची दिल से बाप को राजी करते हैं, बापदादा उन्हें स्वयं के संस्कारों से, संगठन 
से सदा राजी अर्थात् राजयुक्त रहने का वरदान देते हैं। स्वयं के वा एक दो के संस्कारों के राज 
को जानना, परिस्थितियों को जानना, यही राजयुक्त स्थिति है। सच्चे दिल से बाप को अपना 
पोतामेल देने वा स्नेह की रूहरिहान करने से सदा समीपता का अनुभव होता है और पिछला 
खाता समाप्त हो जाता है। 

स्लोगन:- सच्ची दिल से दाता, विधाता, वरदाता को रा॰जी करने वाले ही रूहानी मौज में रहते हैं।