Wednesday, August 14, 2013

Murli[14-08-2013]-Hindi


मुरली सार:- मीठे बच्चे - निश्चयबुद्धि विजयन्ती, निश्चय के आधार पर ही स्वर्ग की राजाई के लायक बन सकते, पहला निश्चय चाहिए कि भगवान् टीचर बनकर हमें पढ़ा रहे हैं। 
प्रश्न:- बाप सर्वशक्तिमान होते भी सब कार्य प्रेरणा से क्यों नहीं करते? 
उत्तर:- बाबा कहते - मैं ज्ञान का सागर हूँ, मुझे ज्ञान सुनाने के लिए आना ही पड़ेगा। प्रोफेसर अगर घर में बैठ जाए तो पढ़ा कैसे सकेगा? मुझे तो तुम बच्चों को पढ़ाकर लायक बनाना है, स्वर्ग का वर्सा देना है इसलिए मैं शरीर का आधार लेकर आता हूँ। इसमें बच्चों को जरा भी संशय नहीं आना चाहिए। 
गीत:- जो पिया के साथ है........ 
धारणा के लिए मुख्य सार :- 
1) किसी भी पुरानी आदत के वशीभूत हो उल्टा कर्म नहीं करना है। देह-अभिमान की आदत को छोड़ देही-अभिमानी रहने का कोर्स पूरा करना है। 
2) निश्चय में कभी भी हिलना नहीं है। जब तक जीना है, पढ़ाई पढ़नी और पढ़ानी है। 
वरदान:- एकान्त और एकाग्रता के अटेन्शन द्वारा तीव्रगति से सूक्ष्म सेवा करने वाले सच्चे सेवाधारी भव 
दूर बैठे बेहद विश्व के आत्माओं की सेवा करने के लिए मन और बुद्धि सदा फ्री चाहिए। छोटी-छोटी साधारण बातों में मन और बुद्धि को बिजी नहीं करो। तीव्रगति की सूक्ष्म सेवा के लिए एकान्त और एकाग्रता पर विशेष अटेन्शन दो। बिजी होते भी बीच-बीच में एक घड़ी, दो घड़ी निकाल एकान्त का अनुभव करो। बाहर की परिस्थिति भल हलचल की हो लेकिन मन-बुद्धि को जिस समय चाहो एक के अन्त में सेकण्ड में एकाग्र कर लो तब सच्चे सेवाधारी बन बेहद सेवा के निमित्त बन सकेंगे। 
स्लोगन:- ज्ञानी तू आत्मा वह है जो ज्ञान के हर राज को समझकर राजयुक्त, युक्तियुक्त और योगयुक्त हो कर्म करे।