मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - ज्ञान की धारणा तब होगी जब देही-अभिमानी बनेंगे, देही-अभिमानी
प्रश्न:- किस एक भूल के कारण मनुष्यों ने आत्मा को निर्लेप कह दिया है?
उत्तर:- मनुष्यों ने आत्मा सो परमात्मा कहा, इसी भूल के कारण आत्मा को निर्लेप मान लिया लेकिन
गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ........
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) चित्र को भूल विचित्र बन विचित्र बाप को याद करना है। देह सहित देह के सब धर्मों को बुद्धि से भूलना है,
2) देवी-देवता धर्म का सैपालिंग लग रहा है, इसलिए पावन जरूर बनना है। दैवीगुण धारण करने हैं।
वरदान:- स्वराज्य अधिकारी बन कर्मेन्द्रियों को आर्डर प्रमाण चलाने वाले अकालतख्त सो दिलतख्तनशीन भव
मैं अकाल तख्तनशीन आत्मा हूँ अर्थात् स्वराज्य अधिकारी राजा हूँ। जैसे राजा जब तख्त पर बैठता है तो सब
स्लोगन:- निर्णय करने, परखने और ग्रहण करने की शक्ति को धारण करना ही होलीहंस बनना है।
बनने वाले बच्चों को ही बाप की याद रहेगी।''
प्रश्न:- किस एक भूल के कारण मनुष्यों ने आत्मा को निर्लेप कह दिया है?
उत्तर:- मनुष्यों ने आत्मा सो परमात्मा कहा, इसी भूल के कारण आत्मा को निर्लेप मान लिया लेकिन
निर्लेप तो एक शिवबाबा है, जिसे दु:ख-सुख, मीठे-कड़ुवे का अनुभव नहीं। आत्मा तो कहती है फलानी
चीज खट्टी है। बाप कहते हैं मेरे पर किसी भी चीज का असर नहीं होता है, मैं इन लेप-छेप से निर्लेप हूँ,
ज्ञान का सागर हूँ, वही ज्ञान तुम्हें सुनाता हूँ।
गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ........
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) चित्र को भूल विचित्र बन विचित्र बाप को याद करना है। देह सहित देह के सब धर्मों को बुद्धि से भूलना है,
देही-अभिमानी हो रहने का अभ्यास करना है।
2) देवी-देवता धर्म का सैपालिंग लग रहा है, इसलिए पावन जरूर बनना है। दैवीगुण धारण करने हैं।
वरदान:- स्वराज्य अधिकारी बन कर्मेन्द्रियों को आर्डर प्रमाण चलाने वाले अकालतख्त सो दिलतख्तनशीन भव
मैं अकाल तख्तनशीन आत्मा हूँ अर्थात् स्वराज्य अधिकारी राजा हूँ। जैसे राजा जब तख्त पर बैठता है तो सब
कर्मचारी आर्डर प्रमाण चलते हैं। ऐसे तख्तनशीन बनने से यह कर्मेन्द्रियां स्वत: आर्डर पर चलती हैं। जो अकालतख्त
नशीन रहते हैं उनके लिए बाप का दिलतख्त है ही क्योंकि आत्मा समझने से बाप ही याद आता है, फिर न देह है, न
देह के संबंध हैं, न पदार्थ हैं, एक बाप ही संसार है इसलिए अकालतख्त नशीन बाप के दिल तख्तनशीन स्वत: बनते हैं।
स्लोगन:- निर्णय करने, परखने और ग्रहण करने की शक्ति को धारण करना ही होलीहंस बनना है।