Tuesday, August 13, 2013

Murli [13-08-2013]-Hindi



मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - 21 जन्मों के लिए पुण्य का खाता जमा करना है, योगबल से पापों के 
खाते को भस्म करना है इसलिए अन्तर्मुखी बनो'' 

प्रश्न:- किस श्रीमत का पालन करने से वाणी से परे जाने का पुरूषार्थ सहज हो जायेगा? 
उत्तर:- श्रीमत कहती है - बच्चे, अन्तर्मुखी हो जाओ, बाहर से कुछ भी न बोलो। इस श्रीमत को 
पालन करेंगे तो सहज ही वाणी से परे जा सकेंगे। जितना याद करेंगे, स्वदर्शन चक्र फिरायेंगे उतना 
कमाई जमा होती जायेगी। याद के लिए अमृतवेले का समय बहुत अच्छा है। उस समय उठकर 
अन्तर्मुखी बन आत्म स्वरूप में स्थित होकर बैठ जाओ। 

गीत:- तूने रात गँवाई........ 

धारणा के लिए मुख्य सार :- 

1) सवेरे-सवेरे उठकर याद में जरूर बैठना है, इसमें गफलत नहीं करनी है। पुण्य का खाता जमा करना है। 

2) एम ऑब्जेक्ट को बुद्धि में रख अच्छे मैनर्स धारण करने हैं। रूहानी पढ़ाई जरूर करनी है। 
अन्तर्मुखी होकर रहना है। 

वरदान:- अपनी शुभ और शक्तिशाली भावनाओं द्वारा विश्व परिवर्तन करने वाले विश्व कल्याणकारी भव 

आप बच्चों के मन में सदा यही शुभ भावना है कि सर्व का कल्याण हो। हर आत्मा अनेक जन्म सुखी हो 
जाए, प्राप्तियों से सम्पन्न हो जाए। आपकी इस शुभ और शक्तिशाली भावना का फल विश्व की आत्माओं 
को परिवर्तन कर रहा है, आगे चल प्रकृति सहित परिवर्तन हो जायेगा क्योंकि आप संगमयुगी श्रेष्ठ आत्माओं 
को ड्रामानुसार प्रत्यक्षफल प्राप्त होने का वरदान है इसलिए जो भी आत्मायें आपके संबंध-सम्पर्क में 
आती हैं वह उसी समय शान्ति वा स्नेह के फल की अनुभूति करती हैं। 

स्लोगन:- त्रिकालदर्शा स्थिति में स्थित रहकर निर्णय करो तो हर कर्म में सफलता प्राप्त होगी।