मुरली सार:- ''मीठे बच्चे-कोई भी विकर्म करके छिपाना नहीं, छिपकर सभा में बैठने वाले पर बहुत दण्ड
प्रश्न:- किस लक्ष्य को सामने रखते हुए पुरुषार्थ में सदा आगे बढ़ते रहना है?
उत्तर:- लक्ष्य है-हमें सपूत बच्चा बन मात-पिता के तख्तनशीन बनना है। हर कदम में फालो फादर करना
गीत:- बचपन के दिन भूला न देना........
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अभी हम यात्रा पर हैं, इसलिए बहुत सम्भलकर चलना है। पवित्र जरूर रहना है।
2) बाप समान निरहंकारी बनना है। हमको बाबा पास जाना है इसलिए सबसे ममत्व निकाल देना है।
वरदान:- त्याग और तपस्या के सहयोग से सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले निरन्तर तपस्वीमूर्त भव
सेवाधारी अर्थात् त्याग और तपस्वीमूर्त। त्याग और तपस्या दोनों के सहयोग से सेवा में सदा सफलता
स्लोगन:- नम्रता और धैर्यता की शक्ति से क्रोधाग्नि को शान्त बना दो।
पड़ता है इसलिए सावधान, विकार की कड़ी भूल कभी भी नहीं हो''
प्रश्न:- किस लक्ष्य को सामने रखते हुए पुरुषार्थ में सदा आगे बढ़ते रहना है?
उत्तर:- लक्ष्य है-हमें सपूत बच्चा बन मात-पिता के तख्तनशीन बनना है। हर कदम में फालो फादर करना
है। ऐसी कोई चलन नहीं चलनी है, जिससे कुल कलंकित बनें। ऐसे सपूत बच्चे अपने को यात्री समझ यात्रा
में सदा तत्पर रहते हैं। यात्री कभी भी यात्रा पर पतित नहीं बनते, अगर कोई विकार के वश होते हैं तो
चकनाचूर हो जाते हैं, सत्यानाश हो जाती है। फिर बहुत दु:खी होते हैं।
गीत:- बचपन के दिन भूला न देना........
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अभी हम यात्रा पर हैं, इसलिए बहुत सम्भलकर चलना है। पवित्र जरूर रहना है।
2) बाप समान निरहंकारी बनना है। हमको बाबा पास जाना है इसलिए सबसे ममत्व निकाल देना है।
अपने आपसे बातें कर प्रफुल्लित रहना है।
वरदान:- त्याग और तपस्या के सहयोग से सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले निरन्तर तपस्वीमूर्त भव
सेवाधारी अर्थात् त्याग और तपस्वीमूर्त। त्याग और तपस्या दोनों के सहयोग से सेवा में सदा सफलता
मिलती है। तपस्या है ही एक बाप दूसरा न कोई, यही निरन्तर की तपस्या करते रहो तो आपका सेवास्थान
तपस्याकुण्ड बन जायेगा। ऐसा तपस्याकुण्ड बनाओ तो परवाने आपेही आयेंगे। मन्सा सेवा से शक्तिशाली
आत्मायें प्रत्यक्ष होंगी। अभी मन्सा द्वारा धरनी का परिवर्तन करो - यही विधि है वृद्धि करने की।
स्लोगन:- नम्रता और धैर्यता की शक्ति से क्रोधाग्नि को शान्त बना दो।