मुरली सार:- ''मीठे बच्चे-ज्ञान रत्नों की लेन-देन कर तुम्हें ज्ञान से एक-दो की पालना करनी है,
प्रश्न:- बीमारी अथवा कर्मभोग होते भी अपार खुशी किस आधार पर रह सकती है?
उत्तर:- विचार सागर मंथन करने की आदत डालो। कोई भी कर्मभोग अथवा बीमारी आती है
गीत:- माता ओ माता........
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपने को मास्टर बीजरूप समझ कर्मेन्द्रियों को समेट शांत में बैठने का अभ्यास करना है।
2) विचार सागर मंथन कर खुशी में रहना है और खुशी-खुशी से पुराना कर्मभोग चुक्तू करना है।
वरदान:- सर्व सम्बन्धों से बाप को अपना बनाकर एकरस रहने वाले नष्टोमोहा, स्मृति स्वरूप भव
नष्टोमोहा, स्मृति स्वरूप बनने के लिए सर्व सम्बन्धों से बाप को अपना बनाओ। किसी भी दैहिक
स्लोगन:- प्रकृति को दासी बना दो तो उदासी दूर भाग जायेगी।
आपस में बहुत-बहुत प्यार से रहना है''
प्रश्न:- बीमारी अथवा कर्मभोग होते भी अपार खुशी किस आधार पर रह सकती है?
उत्तर:- विचार सागर मंथन करने की आदत डालो। कोई भी कर्मभोग अथवा बीमारी आती है
तो अपने आपसे बातें करो-अब हमने 84 जन्मों का पार्ट पूरा किया, यह पुरानी जुत्ती है। इस
पुराने हिसाब-किताब को चुक्तू करना है। फिर हम 21 जन्मों के लिए सब बीमारियों से छूट जायेंगे।
कोई बीमारी छूटती जाती है तो खुशी होती है ना।
गीत:- माता ओ माता........
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपने को मास्टर बीजरूप समझ कर्मेन्द्रियों को समेट शांत में बैठने का अभ्यास करना है।
2) विचार सागर मंथन कर खुशी में रहना है और खुशी-खुशी से पुराना कर्मभोग चुक्तू करना है।
अपने आपसे बातें करनी है कि हमने 84 का चक्र पूरा किया, अब जाते हैं बाबा के पास...।
वरदान:- सर्व सम्बन्धों से बाप को अपना बनाकर एकरस रहने वाले नष्टोमोहा, स्मृति स्वरूप भव
नष्टोमोहा, स्मृति स्वरूप बनने के लिए सर्व सम्बन्धों से बाप को अपना बनाओ। किसी भी दैहिक
सम्बन्ध में बुद्धि का लगाव न हो। अगर कहीं भी लगाव होगा तो बुद्धि भटकेगी। बैठेंगे बाप को याद
करने और याद वही आयेगा जिसमें मोह होगा। किसका मोह पैसे में होता है, किसका जेवर में,
किसका किसी सम्बन्ध में... जहाँ भी होगा वहाँ बुद्धि जायेगी। अगर बार-बार बुद्धि जाती है तो
एकरस नहीं रह सकते।
स्लोगन:- प्रकृति को दासी बना दो तो उदासी दूर भाग जायेगी।