मुरली सार:- ''मीठे बच्चे-अशरीरी बनने की मेहनत करो, अशरीरी अर्थात् कोई भी दैहिक धर्म नहीं,
प्रश्न:- तुम बच्चों में 100 परसेन्ट बल कब आयेगा, उसका पुरुषार्थ क्या है?
उत्तर:- तुम बच्चे जब याद की दौड़ी लगाते अन्तिम समय पर पहुँचेंगे, तब 100 परसेन्ट बल आ
1) देही-अभिमानी बन, देह के सब धर्म भूल हम आत्मा भाई-भाई हैं-यह पक्का करना है।
2) देही-अभिमानी बन बाप का परिचय देना है। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति का वर्सा बाप से मिलता है।
तीव्र पुरुषार्थी अर्थात् फर्स्ट डिवीज़न में आने वाले बच्चे संकल्प शक्ति और वाणी की शक्ति को यथार्थ और
स्लोगन:- सम्पूर्ण नष्टोमोहा वह है जो मेरे पन के अधिकार का भी त्याग कर दे।
सम्बन्ध नहीं, अकेली आत्मा बाप को याद करती रहे''
प्रश्न:- तुम बच्चों में 100 परसेन्ट बल कब आयेगा, उसका पुरुषार्थ क्या है?
उत्तर:- तुम बच्चे जब याद की दौड़ी लगाते अन्तिम समय पर पहुँचेंगे, तब 100 परसेन्ट बल आ
जायेगा, उस समय किसको भी समझायेंगे तो फौरन तीर लग जायेगा। इसके लिए देही-अभिमानी
बनने का पुरुषार्थ करो, अपने दिल दर्पण में देखो कि पुराने सब खाते याद द्वारा भस्म किये हैं!
गीत:- तू प्यार का सागर है ...
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) देही-अभिमानी बन, देह के सब धर्म भूल हम आत्मा भाई-भाई हैं-यह पक्का करना है।
बाप मिसल मीठा बनना है।
2) देही-अभिमानी बन बाप का परिचय देना है। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति का वर्सा बाप से मिलता है।
डिबेट किससे भी नहीं करनी है।
वरदान:- मन्सा और वाचा की शक्ति को यथार्थ और समर्थ रूप से कार्य में लगाने वाले तीव्र पुरुषार्थी भव
तीव्र पुरुषार्थी अर्थात् फर्स्ट डिवीज़न में आने वाले बच्चे संकल्प शक्ति और वाणी की शक्ति को यथार्थ और
समर्थ रीति से कार्य में लगाते हैं। वे इसमें लूज़ नहीं होते। उन्हें यह स्लोगन सदा याद रहता कि कम बोलो,
धीरे बोलो और मधुर बोलो। उनका हर बोल योगयुक्त, युक्तियुक्त होता। वे आवश्यक बोल ही बोलते, व्यर्थ
बोल, विस्तार के बोल बोलकर अपनी एनर्जी समाप्त नहीं करते। वे सदा एकान्तप्रिय रहते हैं।
स्लोगन:- सम्पूर्ण नष्टोमोहा वह है जो मेरे पन के अधिकार का भी त्याग कर दे।