मुरली सार:- ''मीठे बच्चे-देह सहित जो कुछ भी तुम्हारा है उससे ममत्व मिटाओ,
प्रश्न:- संगमयुगी ब्राह्मणों का टाइटिल कौन-सा है, बाप द्वारा उन्हें कौन-सी बेस्ट प्राइज़ मिलती है?
उत्तर- तुम संगमयुगी ब्राह्मण हो राजॠषि, राजयोगी। तुम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण
गीत:- मरना तेरी गली में ....
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सदा स्मृति रखनी है कि यह हमारी वानप्रस्थ अवस्था है, हमें वाणी से परे स्वीट
2) 21 जन्मों के लिए अपना हक लेने के लिए पवित्र रहने की प्रतिज्ञा करनी है।
वरदान:- सदा अपने को सारथी और साक्षी समझ देह-भान से न्यारे रहने वाले योगयुक्त भव
योगयुक्त रहने की सरल विधि है - सदा अपने को सारथी और साक्षी समझकर चलना।
स्लोगन:- विजयी आत्मा बनना है तो अटेन्शन और अभ्यास - इसे निज़ी संस्कार बना लो।
ट्रस्टी होकर रहो इसको ही जीते जी मरना कहा जाता है''
प्रश्न:- संगमयुगी ब्राह्मणों का टाइटिल कौन-सा है, बाप द्वारा उन्हें कौन-सी बेस्ट प्राइज़ मिलती है?
उत्तर- तुम संगमयुगी ब्राह्मण हो राजॠषि, राजयोगी। तुम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण
यज्ञ की सम्भाल करने के निमित्त हो, तुम्हें बड़े से बड़े सेठ द्वारा बहुत बड़ी दक्षिणा
मिलती है। स्वर्ग की बादशाही बेस्ट प्राइज़ है।
गीत:- मरना तेरी गली में ....
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सदा स्मृति रखनी है कि यह हमारी वानप्रस्थ अवस्था है, हमें वाणी से परे स्वीट
होम जाना है, अशरीरी बनने का अभ्यास करना है।
2) 21 जन्मों के लिए अपना हक लेने के लिए पवित्र रहने की प्रतिज्ञा करनी है।
सदा श्रीमत पर चलना है। जीते जी मरना है।
वरदान:- सदा अपने को सारथी और साक्षी समझ देह-भान से न्यारे रहने वाले योगयुक्त भव
योगयुक्त रहने की सरल विधि है - सदा अपने को सारथी और साक्षी समझकर चलना।
इस रथ को चलाने वाली हम आत्मा सारथी हैं, यह स्मृति स्वत: इस रथ अथवा देह से
वा किसी भी प्रकार के देह-भान से न्यारा बना देती है। देह-भान नहीं तो सहज योगयुक्त
बन जाते और हर कर्म भी युक्तियुक्त होता है। स्वयं को सारथी समझने से सर्व कर्मेन्द्रियां
अपने कन्ट्रोल में रहती हैं। वह किसी भी कर्मेन्द्रिय के वश नहीं हो सकते।
स्लोगन:- विजयी आत्मा बनना है तो अटेन्शन और अभ्यास - इसे निज़ी संस्कार बना लो।