Wednesday, April 3, 2013

Murli [3-04-2013]-Hindi


मुरली सार:- ''मीठे बच्चे-आधाकल्प माया ने तुम्हें बहुत हैरान किया है, अब तुम बाप की शरण में आये हो, 
तुम्हें बाप से सच्ची प्रीत रख माया-जीत, जगत-जीत बनना है।'' 

प्रश्न:- संगमयुग पर भगवान को भी कौन सी मेहनत करनी पड़ती है? 
उत्तर:- आत्मा रूपी मैले कपड़ों को साफ करने की। तुम बच्चे बाप के पास आये हो अपने पापों का खाता 
साफ करने। जितना देही-अभिमानी बन बाप को याद करेंगे उतना विकर्माजीत बनते जायेंगे। अगर बुद्धि 
का योग बाप के सिवाए और किसी के संग जोड़ा तो भस्मासुर बन जायेंगे इसलिए श्रीमत पर चलते चलो। 

गीत:- ओम् नमो शिवाए... 

धारणा के लिए मुख्य सार :- 

1) तन-मन-धन से भारत की सेवा कर इसे स्वर्ग बनाना है। माया दुश्मन से लिबरेट करना है। 

2) देही-अभिमानी बनने के लिए देह सहित सब कुछ भूलना है। जो भी पुराने कर्मों का खाता है उसे 
योगबल से साफ करना है। विकर्माजीत बनना है। 

वरदान:- तन मन और दिल की स्वच्छता द्वारा साहेब को राज़ी करने वाले सच्चे होलीहंस भव 

स्वच्छता अर्थात् मन-वचन-कर्म, सम्बन्ध सबमें पवित्रता। पवित्रता की निशानी सफेद रंग दिखाते हैं। 
आप होलीहंस भी सफेद वस्त्रधारी, साफ दिल अर्थात् स्वच्छता स्वरूप हो। तन, मन और दिल से सदा 
बेदाग अर्थात् स्वच्छ हो। साफ मन वा साफ दिल पर साहेब राज़ी होता है। उनकी सर्व मुरादें अर्थात् 
कामनायें पूरी होती हैं। हंस की विशेषता स्वच्छता है इसलिए ब्राह्मण आत्माओं को होलीहंस कहा जाता है। 

स्लोगन:- जो इस समय सब कुछ सहन करते हैं वही शहनशाह बनते हैं।