मुरली सार:- ''मीठे बच्चे-तुम्हारा कर्तव्य है अविनाशी ज्ञान रत्नों की कमाई करना और कराना,
प्रश्न:- बाप की दिल में कौन सी शुभ आश सदा रहती है? किस बात में बाप आप समान बनाने चाहते हैं?
उत्तर:- बाप की दिल में सदा ही बच्चों को सुख देने की आश रहती है। बेहद के बाप को कभी भी
गीत:- मुखड़ा देख ले प्राणी..
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) रूप-बसन्त बन मुख से ज्ञान रत्न निकालने हैं। योग से अपनी बुद्धि को सालिम बनाना है।
2) बाप समान सबको सुख दे सुखदाता बनना है। कभी भी दु:ख देने का बुरा संकल्प
वरदान:- बेहद के स्मृति स्वरूप द्वारा हद की बातों को समाप्त करने वाले अनुभवी मूर्त भव
आप श्रेष्ठ आत्मायें डायरेक्ट बीज और मुख्य दो पत्ते, त्रिमूर्ति के साथ समीप संबंध वाले
स्लोगन:- किसी भी बात में मूंझने के बजाए मौज का अनुभव करना ही मस्त योगी बनना है।
दान पूछकर नहीं किया जाता, करके दिखाना है''
प्रश्न:- बाप की दिल में कौन सी शुभ आश सदा रहती है? किस बात में बाप आप समान बनाने चाहते हैं?
उत्तर:- बाप की दिल में सदा ही बच्चों को सुख देने की आश रहती है। बेहद के बाप को कभी भी
विकल्प वा बुरा कर्म करने का संकल्प, दु:ख देने का संकल्प नहीं आ सकता क्योंकि वह है सुखदाता।
इसी बात में बाप अपने बच्चों को आप समान बनाना चाहते हैं। बाबा कहते-मीठे बच्चे,
जांच करो मेरे अन्दर सदा शुद्ध संकल्प रहते हैं? विकल्प तो नहीं आते हैं?
गीत:- मुखड़ा देख ले प्राणी..
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) रूप-बसन्त बन मुख से ज्ञान रत्न निकालने हैं। योग से अपनी बुद्धि को सालिम बनाना है।
2) बाप समान सबको सुख दे सुखदाता बनना है। कभी भी दु:ख देने का बुरा संकल्प
वा विकल्प नहीं उठाना है।
वरदान:- बेहद के स्मृति स्वरूप द्वारा हद की बातों को समाप्त करने वाले अनुभवी मूर्त भव
आप श्रेष्ठ आत्मायें डायरेक्ट बीज और मुख्य दो पत्ते, त्रिमूर्ति के साथ समीप संबंध वाले
तना हो। इसी ऊंची स्टेज पर स्थित रहो, बेहद के स्मृति स्वरूप बनो तो हद की व्यर्थ बातें
समाप्त हो जायेंगी। अपने बेहद के बुजुर्गपन में आओ तो सदा सर्व अनुभवीमूर्त हो जायेंगे।
जो बेहद के पूर्वजपन का आक्यूपेशन है, उसको सदा स्मृति में रखो। आप पूर्वजों का काम है
अमर ज्योति बन अंधकार में भटकती हुई आत्माओं को ठिकाने पर लगाना।
स्लोगन:- किसी भी बात में मूंझने के बजाए मौज का अनुभव करना ही मस्त योगी बनना है।