मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - औरों को समझाने की सर्विस करते रहो, ज्ञान धन का दान करो तो अपार खुशी रहेगी,
सर्व की आशीर्वाद मिलेगी, बाप की याद भूलेगी नहीं।''
प्रश्न:- बाप तुम बच्चों को रूहानी ड्रिल क्यों सिखलाते हैं?
उत्तर:- पहलवान बनाने के लिए। जितना तुम बाप की याद में रहते हो, पढ़ाई पर ध्यान देते हो उतना तुम्हारे में ताकत आती जाती है।
इसी बल से तुम माया पर विजय प्राप्त कर लेते हो। तुम कोई स्थूल हथियार आदि नहीं चलाते,
स्वदर्शन चक्र से माया का गला काटते हो-यह है अहिंसक युद्ध।
गीत:- बचपन के दिन भुला न देना...
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) जीवन की लम्बी मुसाफिरी में थकना नहीं है। मात-पिता से कभी भी मुँह नहीं मोड़ना है।
और संग तोड़ एक बाप पर पूरा बलिहार जाना है।
2) स्वीट होम में जाने के पहले विकर्माजीत जरूर बनना है। श्रीमत पर बुद्धि की यात्रा करते रहना है।
वरदान:- सरल संस्कारों द्वारा अच्छे, बुरे की आकर्षण से परे रहने वाले सदा हर्षितमूर्त भव
अपने संस्कारों को ऐसा इज़ी (सरल) बनाओ तो हर कार्य करते भी इज़ी रहेंगे।
यदि संस्कार टाइट हैं तो सरकमस्टांश भी टाइट हो जाते हैं, सम्बन्ध सम्पर्क वाले भी टाइट व्यवहार करते हैं।
टाइट अर्थात् खींचातान में रहने वाले इसलिए सरल संस्कारों द्वारा ड्रामा के हर दृश्य को देखते हुए अच्छे और बुरे की आकर्षण से परे रहो,
न अच्छाई आकर्षित करे और न बुराई - तब हर्षित रह सकेंगे।
स्लोगन:- जो सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न है वही इच्छा मात्रम् अविद्या है।