Monday, April 1, 2013

Murli [1-04-2013]-Hindi


मुरली सार:- ''मीठे बच्चे-जब स्वच्छ पौधों पर 5 विकारों की मैल चढ़ती है तब भ्रष्टाचार बढ़ता है, 
अब तुम्हें श्रेष्ठाचारी बनना और बनाना है'' 

प्रश्न:- श्रेष्ठ बनने के लिए श्री श्री शिवबाबा की श्रेष्ठ मत कौन सी मिलती है? 
उत्तर:- श्रेष्ठ बनने के लिए बाप की श्रीमत मिलती है-बच्चे, कम से कम 8 घण्टे मेरी सर्विस पर रहो, 
8 घण्टा भल उस गवर्मेन्ट की सर्विस करो लेकिन 8 घण्टा मुझे याद करो वा स्वदर्शन चक्र फिराओ। 
साथ-साथ शंख ध्वनि करो सबको कहो कि गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान रहकर बाप से वर्सा लो। 

गीत:- किसने यह सब खेल रचाया... 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) बाप की याद और ज्ञान सागर के ज्ञान से सुन्दर ज्ञान परी बनना है। कदम-कदम पर शिवबाबा की मत जरूर लेनी है। 

2) श्रेष्ठाचारी बनने के लिए अन्दर से भूतों को निकाल देना है। कोई भी भ्रष्ट बनाने वाला काम नहीं करना है। 

वरदान:- भ्रकुटी की कुटिया में बैठ अन्तर्मुखता का रस लेने वाले सच्चे तपस्वीमूर्त भव
 
जो बच्चे अपने बोल पर कन्ट्रोल कर एनर्जी और समय जमा कर लेते हैं, उन्हें स्वत: अन्तर्मुखता के
रस का अनुभव होता है। अन्तर्मुखता का रस और बोलचाल का रस - इसमें रात दिन का अन्तर है। 
अन्तर्मुखी सदा भ्रकुटी की कुटिया में तपस्वीमूर्त का अनुभव करता है। वो व्यर्थ संकल्पों से मन का 
मौन और व्यर्थ बोल से मुख का मौन रखता है इसलिए अन्तर्मुखता के रस की अलौकिक अनुभूति होती है।
 
स्लोगन:- राज़युक्त बन हर परिस्थिति में राज़ी रहने वाले ही ज्ञानी तू आत्मा हैं।