Wednesday, January 23, 2013

Murli [23-01-2013]-Hindi


मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - यहाँ तुम्हें सुख-दु:ख, मान-अपमान.. सब सहन करना है, पुरानी दुनिया के सुखों से बुद्धि हटा देनी है, अपनी मत पर नहीं चलना है'' 
प्रश्न:- देवताई जन्म से भी यह जन्म बहुत अच्छा है, कैसे? 
उत्तर:- इस जन्म में तुम बच्चे शिवबाबा के भण्डारे से खाते हो। यहाँ तुम अथाह कमाई करते हो, तुमने बाप की शरण ली है। इस जन्म में ही तुम अपना लोक-परलोक सुहेला (सुखी) करते हो। सुदामा मिसल दो मुट्ठी दे 21 जन्म की बादशाही लेते हो। 
गीत:- चाहे पास हो चाहे दूर हो... 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) यह नाटक अब पूरा हो रहा है इसलिए इस पुरानी दुनिया से उपराम रहना है। श्रीमत पर अपनी तकदीर ऊंच बनानी है। कभी कोई उल्टा कर्म नहीं करना है। 
2) अविनाशी ज्ञान रत्नों की कमाई करनी और करानी है। एक बाप की याद में रह सपूत बच्चा बन अनेकों को रास्ता बताना है। 
वरदान:- त्याग और तपस्या के वातावरण द्वारा विघ्न-विनाशक बनने वाले सच्चे सेवाधारी भव 
जैसे बाप का सबसे बड़े से बड़ा टाइटल है वर्ल्ड सर्वेन्ट। वैसे बच्चे भी वर्ल्ड सर्वेन्ट अर्थात् सेवाधारी हैं। सेवाधारी अर्थात् त्यागी और तपस्वी। जहाँ त्याग और तपस्या है वहाँ भाग्य तो उनके आगे दासी के समान आता ही है। सेवाधारी देने वाले होते हैं, लेने वाले नहीं इसलिए सदा निर्विघ्न रहते हैं। तो सेवाधारी समझकर त्याग और तपस्या का वातावरण बनाने से सदा विघ्न-विनाशक रहेंगे। 
स्लोगन:- किसी भी परिस्थिति का सामना करने का साधन है-स्व स्थिति की शक्ति।