Tuesday, January 22, 2013

Murli [22-01-2013]-Hindi

मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - बाप उस्ताद ने तुम्हें मनुष्य से देवता बनने का हुनर सिखलाया है, तुम फिर श्रीमत पर औरों को भी देवता बनाने की सेवा करो'' 
प्रश्न:- अभी तुम बच्चे कौन सा श्रेष्ठ कर्म करते हो जिसका रिवाज भक्ति में भी चला आता है? 
उत्तर:- तुम अभी श्रीमत पर अपना तन-मन-धन भारत तो क्या विश्व के कल्याण अर्थ अर्पण करते हो इसी का रिवाज़ भक्ति में मनुष्य ईश्वर अर्थ दान करते हैं। उन्हें फिर उसके बदले दूसरे जन्म में राजाई घर में जन्म मिलता है। और तुम बच्चे संगम पर बाप के मददगार बनते हो तो मनुष्य से देवता बन जाते हो। 
गीत:- तूने रात गंवाई... 
धारणा के लिए मुख्य सार 1) ज्ञान-योग की संजीवनी बूटी से स्वयं को माया की बेहोशी से बचाते रहना है। मनमत पर कभी नहीं चलना है। 
2) रूप-बसन्त बन सर्विस करनी है। मात-पिता को फालो कर तख्तनशीन बनना है। 
वरदान:- अपनी शक्तिशाली स्थिति द्वारा दान और पुण्य करने वाले पूज्यनीय और गायन योग्य भव 
अन्तिम समय में जब कमजोर आत्मायें आप सम्पूर्ण आत्माओं द्वारा प्राप्ति का थोड़ा भी अनुभव करेंगी तो यही अन्तिम अनुभव के संस्कार लेकर आधाकल्प के लिए अपने घर में विश्रामी होंगी और फिर द्वापर में भक्त बन आपका पूजन और गायन करेंगी। इसलिए अन्त की कमजोर आत्माओं के प्रति महादानी वरदानी बन अनुभव का दान और पुण्य करो। यह सेकण्ड का शक्तिशाली स्थिति द्वारा किया हुआ दान और पुण्य आधाकल्प के लिए पूज्यनीय और गायन योग्य बना देगा। 
स्लोगन:- परिस्थितियों में घबराने के बजाए साक्षी हो जाओ तो विजयी बन जायेंगे।