Wednesday, January 16, 2013

Murli [16-01-2013]-Hindi

मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - बाप तुम्हें ऐसा बेहद का सुख देने आये हैं जो फिर कुछ भी मांगने की दरकार नहीं रहेगी सिर्फ 5 भूतों को जीतो तो विश्व का मालिक बन जायेंगे'' 
प्रश्न:- सहज मार्ग होते हुए भी धारणा न होने का कारण क्या है? 
उत्तर:- अवज्ञायें। बाप तो सभी बच्चों में विश्वास रखते हैं कि बच्चे ब्राह्मण कुल का नाम बाला करें। भारत को स्वर्ग बनाने में मददगार बनें। परन्तु बच्चों से बार-बार अवज्ञायें हो जाती हैं, जिस कारण धारणा नहीं होती, फिर पद कम हो जाता है। बाबा कहते बच्चे सीढ़ी लम्बी है इसलिए हर कदम श्रीमत लेते रहो। 
गीत:- बड़ा खुशनसीब हूँ... 
धारणा के लिये मुख्य सार:- 1) श्रीमत को छोड़ कभी भी मनमत पर नहीं चलना है। मुख से रत्न के बजाए पत्थर नहीं निकालने हैं।
2) बाप की सर्विस का फुरना रखना है। समय निकाल ईश्वरीय सेवा जरूर करनी है। अन्धों को रास्ता बताना है। सपूत बनना है। 
वरदान:- दु:ख के चक्करों से सदा मुक्त रहने और सबको मुक्त करने वाले स्वदर्शन चक्रधारी भव 
जो बच्चे कर्मेन्द्रियों के वश होकर कहते हैं कि आज आंख ने, मुख ने वा दृष्टि ने धोखा दे दिया, तो धोखा खाना अर्थात् दु:ख की अनुभूति होना। दुनिया वाले कहते हैं - चाहते नहीं थे लेकिन चक्कर में आ गये। लेकिन जो स्वदर्शन चक्रधारी बच्चे हैं वह कभी किसी धोखे के चक्कर में नहीं आ सकते। वह तो दु:ख के चक्करों से मुक्त रहने और सबको मुक्त करने वाले, मालिक बन सर्व कर्मेन्द्रियों से कर्म कराने वाले हैं। 
स्लोगन:- अकाल तख्तनशीन बन अपनी श्रेष्ठ शान में रहो तो कभी परेशान नहीं होंगे।