Wednesday, January 9, 2013

Murli [9-01-2013]-Hindi

मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - तुम राजॠषि हो, तुम्हें बेहद का बाप सारी पुरानी दुनिया का सन्यास सिखलाते हैं जिससे तुम राजाई पद पा सको'' 
प्रश्न:- इस समय किसी भी मनुष्य के कर्म अकर्म नहीं हो सकते हैं, क्यों? 
उत्तर:- क्योंकि सारी दुनिया में माया का राज्य है। सबमें 5 विकार प्रवेश हैं इसलिए मनुष्य जो भी कर्म करते हैं, वह विकर्म ही बनता है। सतयुग में ही कर्म अकर्म होते हैं क्योंकि वहाँ माया होती नहीं। 
प्रश्न:- किन बच्चों को बहुत अच्छी प्राइज मिलती है? 
उत्तर:- जो श्रीमत पर पवित्र बन अन्धों की लाठी बनते हैं। कभी 5 विकारों के वश हो कुल कलंकित नहीं बनते, उन्हें बहुत अच्छी प्राइज़ मिल जाती है। अगर कोई बार-बार माया से हार खाते हैं तो उनका पासपोर्ट ही कैन्सिल हो जाता है। 
गीत:- ओम् नमो शिवाए... 
धारणा के लिए मुख्य सार:- 
1) सौभाग्यशाली बनने के लिए बाप से पवित्रता की प्रतिज्ञा करनी है। इस छी-छी पतित दुनिया से दिल नहीं लगानी है। 
2) माया का घूँसा कभी नहीं खाना है। कुल कलंकित नहीं बनना है। लायक बन स्वर्ग का पासपोर्ट बाप से लेना है। 
वरदान:- योग ज्वाला द्वारा विश्व के किचड़े को भस्म करने वाले विश्व परिवर्तक भव 
योग ज्वाला अर्थात् श्रेष्ठ संकल्पों की शक्ति व लगन की अग्नि द्वारा ही अपवित्रता रूपी किचड़े को भस्म कर सकते हो। जैसे देवियों के यादगार में दिखाते हैं कि ज्वाला से आसुरी शक्तियों को खत्म कर दिया। यह यादगार अभी का है। तो पहले ज्वाला रूप बन आसुरी संस्कार, स्वभाव सब कुछ भस्म कर सम्पूर्ण पावन बनो तब योग और पवित्रता की ज्वाला से विश्व के किचड़े को भस्म कर विश्व परिवर्तन के निमित्त बनेंगे। 
स्लोगन:- आज्ञाकारी वह है जो मनमत, परमत से मुक्त रह सदा श्रीमत पर चलता है।