Friday, January 11, 2013

Murli [11-01-2013]-Hindi

मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - तुम मोती चुगने वाले हंस हो, तुम्हारी है हंसमण्डली, तुम लकी सितारे हो, क्योंकि स्वयं ज्ञान सूर्य बाप तुम्हें सम्मुख पढ़ा रहे हैं'' 
प्रश्न:- बाप ने सभी बच्चों को कौन सी रोशनी दी है, जिससे पुरुषार्थ तीव्र हो गया? 
उत्तर:- बाप ने रोशनी दी, बच्चे अब इस ड्रामा की अन्त है, तुम्हें नई दुनिया में चलना है। ऐसे नहीं जो मिलना होगा वह मिलेगा। पुरुषार्थ है फर्स्ट। पवित्र बनकर औरों को पवित्र बनाना, यह बहुत बड़ी सेवा है। यह रोशनी आते ही तुम बच्चों का पुरुषार्थ तीव्र हो गया। 
गीत:- तू प्यार का सागर है... 
धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) सच्चे-सच्चे खुदाई खिदमतगार अथवा ईश्वरीय सैलवेशन आर्मी बन सबको माया से लिबरेट करना है। इस जीवन में कौड़ी से हीरे जैसा बनना और बनाना है। 
2) जैसे बाबा विचार सागर मंथन करते हैं, ऐसे ज्ञान का विचार सागर मंथन करना है। कल्याणकारी बन अलौकिक सेवा में तत्पर रहना है। दिल की सच्चाई से सेवा करनी है। 
वरदान:- इस मरजीवा जीवन में सदा सन्तुष्ट रहने वाले इच्छा मात्रम् अविद्या भव 
आप बच्चे मरजीवा बने ही हो सदा सन्तुष्ट रहने के लिए। जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ सर्वगुण और सर्वशक्तियां हैं क्योंकि रचयिता को अपना बना लिया, तो बाप मिला सब कुछ मिला। सर्व इच्छायें इकट्ठी करो उनसे भी पदमगुणा ज्यादा मिला है। उसके आगे इच्छायें ऐसे हैं जैसे सूर्य के आगे दीपक। इच्छा उठने की तो बात ही छोड़ो लेकिन इच्छा होती भी है - यह क्वेश्चन भी नहीं उठ सकता। सर्व प्राप्ति सम्पन्न हैं इसलिए इच्छा मात्रम् अविद्या, सदा सन्तुष्टमणि हैं। 
स्लोगन:- जिनके संस्कार इजी हैं वे कैसी भी परिस्थिति में स्वयं को मोल्ड कर लेंगे।