Tuesday, December 4, 2012

Murli [4-12-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - याद में बैठते समय आंखे खोलकर बैठो क्योंकि तुम्हें खाते-पीते, चलते-फिरते बाप की याद में रहना है'' 
प्रश्न:- भगवान को ढूँढने के लिए मनुष्य दर-दर धक्के क्यों खाते हैं - कारण? 
उत्तर:- क्योंकि मनुष्यों ने भगवान को सर्वव्यापी कह बहुत धक्के खिलाये हैं। सर्वव्यापी है तो कहाँ से मिलेगा? फिर कह देते हैं परमात्मा तो नाम-रूप से न्यारा है। जब नाम-रूप से ही न्यारा है तो मिलेगा फिर कैसे और ढूँढेंगे किसको? इसलिए दर-दर धक्के खाते रहते हैं। तुम बच्चों का भटकना अब छूट गया। तुम निश्चय से कहते हो-बाबा परमधाम से आये हैं। हम बच्चों से इन आरगन्स द्वारा बात कर रहे हैं। बाकी नाम-रूप से न्यारी कोई चीज़ होती नहीं। 
धारणा के लिए मुख्य सार:- 
1) श्रीमत पर सबको पावन बनाने का रास्ता बताना है। पतित-पावन बाप का परिचय देने की युक्ति रचनी है। 
2) बाप से वर्सा लेने के लिए वा बाप की शरण में आने के लिए पूरा-पूरा नष्टोमोहा बनना है। आंख खोलकर बाप को याद करने का अभ्यास करना है। 
वरदान:- नॉलेजफुल बन व्यर्थ को समझने, मिटाने और परिवर्तन करने वाले नेचरल योगी भव 
नेचरल योगी बनने के लिए मन और बुद्धि को व्यर्थ से बिल्कुल फ्री रखो। इसके लिए नॉलेजफुल के साथ-साथ पावरफुल बनो। भले नॉलेज के आधार पर समझते हो कि ये रांग है, ये राइट है, ये ऐसा है लेकिन अन्दर वह समाओ नहीं। ज्ञान अर्थात् समझ और समझदार उसको कहा जाता है जिसे समझना भी आता हो, मिटाना और परिवर्तन करना भी आता हो। तो जब व्यर्थ वृत्ति, व्यर्थ वायब्रेशन स्वाहा करो तब कहेंगे नेचरल योगी। 
स्लोगन:- व्यर्थ से बेपरवाह रहो, मर्यादाओं में नहीं।