Monday, December 31, 2012

Murli [31-12-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - तुम्हें खुशी होनी चाहिए कि हम अभी यह दुनिया, यह सब कुछ छोड़ अपने घर शान्तिधाम जायेंगे फिर सुखधाम में आयेंगे'' 
प्रश्न:- इस नाज़ुक रास्ते में निरन्तर आगे बढ़ने के लिए कौन सी खबरदारी जरूर रखनी है? 
उत्तर:- कभी भी कोई व्यर्थ वा शैतानी बातें सुनाये तो उसका मित्र नहीं बनो। हाँ जी करके ग्लानी की बातें सुनना माना बाप का नाफरमानबरदार बनना, इसलिए रहमदिल बन उसकी आदत को मिटाना है। बाप का फरमानबरदार बनना है। ज्ञान का शुर्मा पहन लेना है। यही बहुत नाज़ुक रास्ता है जिसमें खबरदार होकर चलने से ही आगे बढ़ते रहेंगे। 
गीत:- इस पाप की दुनिया से... 
धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) अपनी वृत्ति को शुद्ध रख दुश्मन को भी मित्र बनाना है। अपकारी पर भी उपकार कर बाप का सच्चा परिचय देना है। 
2) जो रत्न बाबा के मुख से निकलते हैं वही रत्न निकालने हैं। कोई भी व्यर्थ बातें न सुननी है न सुनानी है। 
वरदान:- ब्रह्मा बाप के संस्कारों को स्वयं में धारण करने वाले स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक भव 
जैसे ब्रह्मा बाप ने जो अपने संस्कार बनायें वह सभी बच्चों को अन्त समय में याद दिलाये-निराकारी, निर्विकारी और निरंहकारी - तो यह ब्रह्मा बाप के संस्कार ही ब्राह्मणों के संस्कार नेचुरल हों। सदा इन्हीं श्रेष्ठ संस्कारों को सामने रखो। सारे दिन में हर कर्म के समय चेक करो कि तीनों ही संस्कार इमर्ज रूप में हैं। इन्हीं संस्कारों को धारण करने से स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक बन जायेंगे। 
स्लोगन:- अव्यक्त स्थिति बनानी है तो चित्र (देह) को न देख चैतन्य और चरित्र को देखो।