मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - तुम कर्मक्षेत्र पर आये हो पार्ट बजाने, तुम्हें कर्म जरूर करने हैं, आत्मा का स्वधर्म शान्ति है, इसलिए शान्ति नहीं मांगनी है, स्वधर्म में टिकना है''
प्रश्न:- बने बनाये ड्रामा को जानते हुए भी बाप तुम्हें कौन सी बात नहीं बतलाते? कारण क्या?
उत्तर:- बाप जानते हैं - कल क्या होने वाला है तो भी बतायेंगे नहीं। ऐसे नहीं कल अर्थक्वेक होगी - यह आज ही बता दें। अगर बतला दें तो ड्रामा रीयल न रहे। तुम्हें सब कुछ साक्षी होकर देखना है। अगर पहले से ही पता हो तो उस समय तुम्हें बाप की याद भी भूल जायेगी। पिछाड़ी की सीन देखने के लिए तुम्हें महावीर बनना है। अचल-अडोल रहना है। बाप की याद में शरीर छोड़ें, इसके लिए परिपक्व अवस्था बनानी है।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी भी बात में संशयबुद्धि बन पढ़ाई नहीं छोड़नी है। अपनी स्थिति अचल, अडोल बनानी है। एक बाप से सच्चा लव रखना है।
2) अपना टाइम विस्तार की बातों में वेस्ट नहीं करना है। बुद्धि किसी भी कर्म में मलीन न हो, इसका पूरा ध्यान रखना है।
वरदान:- शान्ति की शक्ति से, संस्कार मिलन द्वारा सर्व कार्य सफल करने वाले सदा निर्विघ्न भव
सदा निर्विघ्न वही रह सकता है जो सी फादर, फालो फादर करता है। सी सिस्टर, सी ब्रदर करने से ही हलचल होती है इसलिए अब बाप को फालो करते हुए बाप समान संस्कार बनाओ तो संस्कार मिलन की रास करते हुए सदा निर्विघ्न रहेंगे। शान्ति की शक्ति से अथवा शान्त रहने से कितना भी बड़ा विघ्न सहज समाप्त हो जाता है और सर्व कार्य स्वत: सम्पन्न हो जाते हैं।
स्लोगन:- त्रिकालदर्शी वह है जो किसी भी बात को एक काल की दृष्टि से नहीं देखते, हर बात में कल्याण समझते हैं।
प्रश्न:- बने बनाये ड्रामा को जानते हुए भी बाप तुम्हें कौन सी बात नहीं बतलाते? कारण क्या?
उत्तर:- बाप जानते हैं - कल क्या होने वाला है तो भी बतायेंगे नहीं। ऐसे नहीं कल अर्थक्वेक होगी - यह आज ही बता दें। अगर बतला दें तो ड्रामा रीयल न रहे। तुम्हें सब कुछ साक्षी होकर देखना है। अगर पहले से ही पता हो तो उस समय तुम्हें बाप की याद भी भूल जायेगी। पिछाड़ी की सीन देखने के लिए तुम्हें महावीर बनना है। अचल-अडोल रहना है। बाप की याद में शरीर छोड़ें, इसके लिए परिपक्व अवस्था बनानी है।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी भी बात में संशयबुद्धि बन पढ़ाई नहीं छोड़नी है। अपनी स्थिति अचल, अडोल बनानी है। एक बाप से सच्चा लव रखना है।
2) अपना टाइम विस्तार की बातों में वेस्ट नहीं करना है। बुद्धि किसी भी कर्म में मलीन न हो, इसका पूरा ध्यान रखना है।
वरदान:- शान्ति की शक्ति से, संस्कार मिलन द्वारा सर्व कार्य सफल करने वाले सदा निर्विघ्न भव
सदा निर्विघ्न वही रह सकता है जो सी फादर, फालो फादर करता है। सी सिस्टर, सी ब्रदर करने से ही हलचल होती है इसलिए अब बाप को फालो करते हुए बाप समान संस्कार बनाओ तो संस्कार मिलन की रास करते हुए सदा निर्विघ्न रहेंगे। शान्ति की शक्ति से अथवा शान्त रहने से कितना भी बड़ा विघ्न सहज समाप्त हो जाता है और सर्व कार्य स्वत: सम्पन्न हो जाते हैं।
स्लोगन:- त्रिकालदर्शी वह है जो किसी भी बात को एक काल की दृष्टि से नहीं देखते, हर बात में कल्याण समझते हैं।