Thursday, October 4, 2012

Murli [4-10-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - सदा इसी नशे में रहो कि हम शिव वंशी ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण हैं, हमारा ईश्वरीय कुल सबसे ऊंचा है'' 
प्रश्न: ऊपर घर में जाने की लिफ्ट कब मिलती है? उस लिफ्ट में कौन बैठ सकते हैं? 
उत्तर: अभी संगमयुग पर ही घर जाने की लिफ्ट मिलती है। जब तक कोई बाप का न बने, ब्राह्मण न बने तब तक लिफ्ट में बैठ नहीं सकते। लिफ्ट में बैठने के लिए पवित्र बनो, दूसरा स्वदर्शन चक्र घुमाओ - यही जैसे पंख हैं, इन्हीं पंखों के आधार से घर जा सकते हो। 
गीत:- धीरज धर मनुआ.... 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) माला का दाना बनने के लिए यह धारणा पक्की करनी है कि मेरा तो एक शिवबाबा, दूसरा न कोई। स्मृतिलब्धा बनना है। 
2) श्री श्री 108 शिवबाबा की श्रीमत पर पूरा-पूरा चलना है। मेरा-मेरा छोड़ ग्रहण से मुक्त होना है। 
वरदान: प्राप्तियों को इमर्ज कर सदा खुशी की अनुभूति करने वाले सहजयोगी भव 
सहजयोग का आधार है-स्नेह और स्नेह का आधार है संबंध। संबंध से याद करना सहज होता है। संबंध से ही सर्व प्राप्तियाँ होती हैं। जहाँ से प्राप्ति होती है मन-बुद्धि वहाँ सहज ही चली जाती है इसलिए बाप ने जो शक्तियों का, ज्ञान का, गुणों का, सुख-शान्ति, आनंद, प्रेम का खजाना दिया है, जो भी भिन्न-भिन्न प्राप्तियाँ हुई हैं, उन प्राप्तियों को बुद्धि में इमर्ज करो तो खुशी की अनुभूति होगी और सहज योगी बन जायेंगे। 
स्लोगन: जो सर्व प्रश्नों से पार रहता है - वही प्रसन्नचित है।