मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - तुम कर्मयोगी हो, कर्म करते हुए बाप की याद में रहो, याद में रहने से कोई भी विकर्म नहीं होगा''
प्रश्न: बाप से बुद्धियोग न लगने का मुख्य एक कारण है - वह कौन सा?
उत्तर: लोभ। कोई भी विनाशी चीज़ों में लोभ होगा, खाने का वा पहनने का शौक होगा तो उनकी बुद्धि बाप से नहीं लग सकती इसलिए बाबा विधि बताते हैं बच्चे लोभ रखो - बेहद के बाप से वर्सा लेने का। बाकी किसी भी चीज़ में लोभ नहीं रखो। नहीं तो जिस चीज़ से अधिक प्यार होगा वही चीज़ अन्त में भी याद आयेगी और पद भ्रष्ट हो जायेगा।
गीत:- जाग सजनियां जाग...
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) लोभ के वश कोई भी चीज़ छिपाकर अपने पास नहीं रखनी है। बाप के फरमान पर चलते रहना है।
2) बाबा जो खिलाये, जो पहनाये, एक शिवबाबा के भण्डारे से ही लेना है। देह-अभिमान में नहीं आना है। मम्मा बाबा को पूरा फालो करना है।
वरदान: ''एक बाप दूसरा न कोई''-इस स्थिति द्वारा सदा एकरस और लवलीन रहने वाले सहजयोगी भव
''एक बाप दूसरा न कोई''-जो बच्चे ऐसी स्थिति में सदा रहते हैं उनकी बुद्धि सार स्वरूप में सहज स्थित हो जाती है। जहाँ एक बाप है वहाँ स्थिति एकरस और लवलीन है। अगर एक के बजाए कोई दूसरा-तीसरा आया तो खिटखिट होगी इसलिए अनेक विस्तारों को छोड़ सार स्वरूप का अनुभव करो, एक की याद में एकरस रहो तो सहजयोगी बन जायेंगे।
स्लोगन: दिल में सदा यही अनहद गीत बजता रहे कि मैं बाप की, बाप मेरा।
प्रश्न: बाप से बुद्धियोग न लगने का मुख्य एक कारण है - वह कौन सा?
उत्तर: लोभ। कोई भी विनाशी चीज़ों में लोभ होगा, खाने का वा पहनने का शौक होगा तो उनकी बुद्धि बाप से नहीं लग सकती इसलिए बाबा विधि बताते हैं बच्चे लोभ रखो - बेहद के बाप से वर्सा लेने का। बाकी किसी भी चीज़ में लोभ नहीं रखो। नहीं तो जिस चीज़ से अधिक प्यार होगा वही चीज़ अन्त में भी याद आयेगी और पद भ्रष्ट हो जायेगा।
गीत:- जाग सजनियां जाग...
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) लोभ के वश कोई भी चीज़ छिपाकर अपने पास नहीं रखनी है। बाप के फरमान पर चलते रहना है।
2) बाबा जो खिलाये, जो पहनाये, एक शिवबाबा के भण्डारे से ही लेना है। देह-अभिमान में नहीं आना है। मम्मा बाबा को पूरा फालो करना है।
वरदान: ''एक बाप दूसरा न कोई''-इस स्थिति द्वारा सदा एकरस और लवलीन रहने वाले सहजयोगी भव
''एक बाप दूसरा न कोई''-जो बच्चे ऐसी स्थिति में सदा रहते हैं उनकी बुद्धि सार स्वरूप में सहज स्थित हो जाती है। जहाँ एक बाप है वहाँ स्थिति एकरस और लवलीन है। अगर एक के बजाए कोई दूसरा-तीसरा आया तो खिटखिट होगी इसलिए अनेक विस्तारों को छोड़ सार स्वरूप का अनुभव करो, एक की याद में एकरस रहो तो सहजयोगी बन जायेंगे।
स्लोगन: दिल में सदा यही अनहद गीत बजता रहे कि मैं बाप की, बाप मेरा।