Saturday, October 27, 2012

Murli [27-10-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - कछुये मिसल सब कुछ समेटकर चुप बैठ स्वदर्शन चक्र फिराओ, बाप जो सर्व सम्बन्धों की सैक्रीन है, उसे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे'' 
प्रश्न: ईश्वरीय कुल के बच्चों प्रति बाप की श्रीमत क्या है? 
उत्तर: तुम जब ईश्वर के बच्चे बने, उनके सम्मुख बैठे हो तो प्यार से उसे याद करो। उनकी श्रीमत पर चलो। जितना उसे याद करेंगे उतना नशा रहेगा। परन्तु माया रावण देखता है कि मेरे ग्राहक छिनते हैं तो वह भी युद्ध करता है। बाबा कहते हैं बच्चे कमजोर मत बनो। मैं तुम्हें शक्ति देने लिए बैठा हूँ। 
गीत:- धीरज धर मनुआ .... 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) बाप की श्रीमत पर चल, देही-अभिमानी बन बाप के गले का हार बनना है। बाप की याद में रह अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करना है। 
2) इस दुनिया से पूरा नष्टोमोहा बनना है। किसी के भी छी-छी शरीरों को याद नहीं करना है। 
वरदान: अटूट निश्चय के आधार पर विजय का अनुभव करने वाले सदा हर्षित और निश्चिंत भव 
निश्चय की निशानी है - मन्सा-वाचा-कर्मणा, सम्बन्ध-सम्पर्क हर बात में सहज विजयी। जहाँ निश्चय अटूट है वहाँ विजय की भावी टल नहीं सकती। ऐसे निश्चयबुद्धि ही सदा हर्षित और निश्चिंत रहेंगे। किसी भी बात में यह क्या, क्यों, कैसे कहना भी चिंता की निशानी है। निश्चयबुद्धि निश्चिंत आत्मा का स्लोगन है ''जो हुआ अच्छा हुआ, अच्छा है और अच्छा ही होना है।'' वह बुराई में भी अच्छाई का अनुभव करेंगे। चिंता शब्द की भी अविद्या होगी। 
स्लोगन: सदा प्रसन्नचित रहना है तो बुद्धि रूपी कम्प्युटर में फुलस्टॉप की मात्रा लगाओ।