Tuesday, October 16, 2012

Murli [16-10-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - तुम्हारी पढ़ाई बुद्धि की है, बुद्धि को शुद्ध करने के लिए प्रवृत्ति में बहुत युक्ति से चलना है, खान-पान की परहेज रखनी है'' 
प्रश्न: ईश्वर की कारोबार बड़ी वन्डरफुल और गुप्त है कैसे? 
उत्तर: हर एक के कर्मो का हिसाब -किताब चुक्तू करवाने की कारोबार बड़ी वन्डरफुल और गुप्त है। कोई कितना भी अपने पाप कर्म छिपाने की कोशिश करे लेकिन छिप नहीं सकता। सजा जरूर भोगनी पड़ेगी। हर एक का खाता ऊपर में रहता है, इसलिए बाप कहते हैं - बाप का बनने के बाद कोई पाप होता है तो सच बताने से आधा माफ हो जायेगा। सजायें कम हो जायेंगी। छिपाओ मत। कहा जाता है कख का चोर सो लख का चोर..... छिपाने से धारणा हो नहीं सकती। 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) इस विनाशकाल में दिल की सच्ची प्रीत एक बाप से रखनी है। एक की ही याद में रहना है। 
2) सच्चे बाप से सदा सच्चे रहना है। कुछ भी छिपाना नहीं है। देही-अभिमानी रहने की मेहनत करनी है। अपवित्र कभी नहीं बनना है। 
वरदान: पुरूषार्थ के साथ योग के प्रयोग की विधि द्वारा वृत्तियों को परिवर्तन करने वाले सदा विजयी भव 
पुरूषार्थ धरनी बनाता है, वह भी जरूरी है लेकिन पुरूषार्थ के साथ-साथ योग के प्रयोग से सबकी वृत्तियों को परिवर्तन करो तो सफलता समीप दिखाई देगी। दृढ़ निश्चय और योग के प्रयोग द्वारा किसी की भी बुद्धि को परिवर्तन कर सकते हो। सेवाओं में जब भी कोई हलचल हुई है तो उसमें विजय योग के प्रयोग से ही मिली है इसलिए पुरूषार्थ से धरनी बनाओ लेकिन बीज को प्रत्यक्ष करने के लिए योग का प्रयोग करो तब विजयी भव का वरदान प्राप्त होगा। 
स्लोगन: सेवा द्वारा पुण्य की पूंजी जमा करने वाले ही पुण्यात्मा हैं।