Saturday, October 13, 2012

Murli [13-10-2012]-Hindi


मुरली सार:- ''मीठे बच्चे, इस समय तुम्हारा यह जन्म हीरे समान है क्योंकि तुम ईश्वरीय सन्तान बने हो, स्वयं ईश्वर तुम्हें पढ़ाते हैं, तुम दूरादेशी, विशाल बुद्धि बनते हो'' 
प्रश्न: तुम बच्चे किस पुरुषार्थ से दूरादेशी और विशाल बुद्धि बन रहे हो? 
उत्तर: बाप की याद से दूरादेशी और पढ़ाई से विशालबुद्धि बनते हो। दूरादेशी अर्थात् दूरदेश में रहने वाले बाप को याद करना। मनमना भव का अर्थ है दूरादेशी होना। विशालबुद्धि अर्थात् सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान बुद्धि में हो। तुम्हें पहले दूरादेशी फिर विशाल बुद्धि बनना है। 
गीत:- हमारे तीर्थ न्यारे हैं........ 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) दूरादेशी बन बाप की याद में रहना है और दूसरों को दूरदेश में रहने वाले बाप का परिचय देना है। 
2) कल्याणकारी युग में सभी का कल्याण करने की युक्ति निकालनी है। सबको दुबन (दलदल) से निकालने की सेवा करनी है। 
वरदान: स्नेह के रिटर्न में स्वयं को टर्न करने वाले सच्चे स्नेही सो समान भव 
बाप का बच्चों से अति स्नेह है इसलिए स्नेही की कमी देख नहीं सकते। बाप, बच्चों को अपने समान सम्पन्न और सम्पूर्ण देखना चाहते हैं। ऐसे आप बच्चे भी कहते हो कि बाबा को हम स्नेह का रिटर्न क्या दें? तो बाप बच्चों से यही रिटर्न चाहते हैं कि स्वयं को टर्न कर लो। स्नेह में कमजोरियों का त्याग कर दो। भक्त तो सिर उतारकर रखने के लिए तैयार हो जाते हैं। आप शरीर का सिर नहीं उतारो लेकिन रावण का सिर उतार दो, थोड़ा भी कमजोरी का सिर नहीं रखो। 
स्लोगन: हर कर्म करते साक्षीपन की सीट पर रहो तो बाप आपका साथी बन जायेगा।