मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - अब तुम्हारी दिल में खुशी की शहनाई बजनी चाहिए क्योंकि बाप आये हैं हाथ में हाथ देकर साथ ले जाने, अब तुम्हारे सुख के दिन आये कि आये''
प्रश्न: अभी नये झाड़ का कलम लग रहा है इसलिए कौन सी खबरदारी अवश्य रखनी है?
उत्तर: नये झाड़ को तूफान बहुत लगते हैं। ऐसे-ऐसे तूफान आते हैं जो सब फूल फल आदि गिर जाते हैं। यहाँ भी तुम्हारे नये झाड़ का जो कलम लग रहा है उसे भी माया जोर से हिलायेगी। अनेक तूफान आयेंगे। माया संशयबुद्धि बना देगी। बुद्धि में बाप की याद नहीं होगी तो मुरझा जायेंगे, गिर भी पड़ेंगे इसलिए बाबा कहते बच्चे माया से बचने के लिए मुख में मुहलरा डाल दो अर्थात् धंधा आदि भल करो लेकिन बुद्धि से बाप को याद करते रहो। यही है मेहनत।
गीत:- ओम् नमो शिवाए ....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) इस बेहद की दुनिया से वैराग्य रख इसे बुद्धि से भूलना है। अविनाशी ज्ञान रत्न धारण कर भविष्य के लिए धनवान बनना है।
2) नई दुनिया के लिए बाप जो बातें सुनाते हैं वह याद रखनी है। बाकी सब पढ़ा हुआ भूल जाना है, ऐसा जीते जी मरना है।
वरदान: स्नेह की शक्ति द्वारा मेहनत से मुक्त होने वाले परमात्म स्नेही भव
स्नेह की शक्ति मेहनत को सहज कर देती है, जहाँ मोहब्बत है वहाँ मेहनत नहीं होती। मेहनत मनोरंजन बन जाती है। भिन्न-भिन्न बन्धनों में बंधी हुई आत्मायें मेहनत करती हैं लेकिन परमात्म स्नेही आत्मायें सहज ही मेहनत से मुक्त हो जाती हैं। यह स्नेह का वरदान सदा स्मृति में रहे तो कितनी भी बड़ी परिस्थिति हो, प्यार से, स्नेह से परिस्थिति रूपी पहाड़ भी परिवर्तन हो पानी के समान हल्का बन जाता है।
स्लोगन: सदा निर्विघ्न रहना और दूसरों को निर्विघ्न बनाना-यही यथार्थ सेवा है।
प्रश्न: अभी नये झाड़ का कलम लग रहा है इसलिए कौन सी खबरदारी अवश्य रखनी है?
उत्तर: नये झाड़ को तूफान बहुत लगते हैं। ऐसे-ऐसे तूफान आते हैं जो सब फूल फल आदि गिर जाते हैं। यहाँ भी तुम्हारे नये झाड़ का जो कलम लग रहा है उसे भी माया जोर से हिलायेगी। अनेक तूफान आयेंगे। माया संशयबुद्धि बना देगी। बुद्धि में बाप की याद नहीं होगी तो मुरझा जायेंगे, गिर भी पड़ेंगे इसलिए बाबा कहते बच्चे माया से बचने के लिए मुख में मुहलरा डाल दो अर्थात् धंधा आदि भल करो लेकिन बुद्धि से बाप को याद करते रहो। यही है मेहनत।
गीत:- ओम् नमो शिवाए ....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) इस बेहद की दुनिया से वैराग्य रख इसे बुद्धि से भूलना है। अविनाशी ज्ञान रत्न धारण कर भविष्य के लिए धनवान बनना है।
2) नई दुनिया के लिए बाप जो बातें सुनाते हैं वह याद रखनी है। बाकी सब पढ़ा हुआ भूल जाना है, ऐसा जीते जी मरना है।
वरदान: स्नेह की शक्ति द्वारा मेहनत से मुक्त होने वाले परमात्म स्नेही भव
स्नेह की शक्ति मेहनत को सहज कर देती है, जहाँ मोहब्बत है वहाँ मेहनत नहीं होती। मेहनत मनोरंजन बन जाती है। भिन्न-भिन्न बन्धनों में बंधी हुई आत्मायें मेहनत करती हैं लेकिन परमात्म स्नेही आत्मायें सहज ही मेहनत से मुक्त हो जाती हैं। यह स्नेह का वरदान सदा स्मृति में रहे तो कितनी भी बड़ी परिस्थिति हो, प्यार से, स्नेह से परिस्थिति रूपी पहाड़ भी परिवर्तन हो पानी के समान हल्का बन जाता है।
स्लोगन: सदा निर्विघ्न रहना और दूसरों को निर्विघ्न बनाना-यही यथार्थ सेवा है।