Thursday, June 28, 2012

Murli [28-06-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - देवताओं से भी ऊंच यह तुम्हारी ब्राह्मण जीवन है क्योंकि इस समय तुम तीनों लोकों और तीनों कालों को जानते हो, तुम ईश्वरीय सन्तान हो'' 
प्रश्न: तुम बच्चे अभी कौन सी ऊंची चढ़ाई चढ़ते हो? 
उत्तर: मनुष्य से देवता बनना यह ऊंची चढ़ाई है, जिस पर तुम चढ़ रहे हो। कहते भी हैं चढ़े तो चाखे प्रेम रस... यह बहुत लम्बी चाढ़ी है। लेकिन वन्डर है जो चढ़ते एक सेकेण्ड में हो, उतरने में टाइम लगता है। 
प्रश्न:- पाप का घड़ा फूटने से ही जयजयकार होती है, इसकी कौन सी निशानी भक्तिमार्ग में है? 
उत्तर:- दिखाते हैं घड़े से सीता निकली.. अर्थात् जब पाप का घड़ा भरकर फूटा तब सीता और राधे का जन्म होता है। 
गीत:- इस पाप की दुनिया से... 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी पढ़नी और पढ़ानी है। सर्व अलंकारों को धारण करने के लिए पावन फरिश्ता बनना है। 
2) बुद्धिवानों की बुद्धि एक बाप है, उनकी ही श्रीमत पर चल बुद्धिवान बनना है। यह ब्राह्मण जीवन अमूल्य है - इस नशे में रहना है। 
वरदान: अपने पूज्य स्वरूप की स्मृति से सदा रूहानी नशे में रहने वाले जीवनमुक्त भव 
ब्राह्मण जीवन का मजा जीवनमुक्त स्थिति में है। जिन्हें अपने पूज्य स्वरूप की सदा स्मृति रहती है उनकी आंख सिवाए बाप के और कहाँ भी डूब नहीं सकती। पूज्य आत्माओं के आगे सारे व्यक्ति और वैभव स्वयं झुकते हैं। पूज्य किसी के पीछे आकर्षित नहीं हो सकते। देह, सम्बन्ध, पदार्थ वा संस्कारों में भी उनके मन-बुद्धि का झुकाव नहीं रहता। वे कभी किसी बंधन में बंध नहीं सकते। सदा जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव करते हैं। 
स्लोगन: सच्चा सेवाधारी वह है जो निमित्त और निर्मान है।