मुरली सार:-''मीठे बच्चे - यहाँ के करोड़ अरब तुम्हारे काम नहीं आने हैं, सब मिट्टी में मिल जायेगा, इसलिए तुम अब सचखण्ड के लिए सच्ची कमाई करो''
प्रश्न: किस एक बात के कारण तुम ब्राह्मण देवताओं से भी ऊंच माने जाते हो?
उत्तर: हम ब्राह्मण अभी सर्व की रूहानी सेवा करते हैं। हम सभी आत्माओं का मिलन परमात्मा बाप से कराते हैं। यह पब्लिक सेवा देवतायें नहीं करते। वहाँ तो राजा-रानी तथा प्रजा हैं, जो यहाँ का पुरुषार्थ किया है उसकी प्रालब्ध भोगते हैं। सेवा नहीं करते इसलिए तुम सेवाधारी ब्राह्मण देवताओं से भी ऊंचे हो।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप समान सुखदाता बनना है। मन्सा-वाचा-कर्मणा किसी को भी दु:ख नहीं देना है। सदा शान्तचित्त और हर्षितमुख रहना है।
2) फालतू ख्यालातों में टाइम वेस्ट नहीं करना है। बाप की अन्दर से महिमा करनी है।
वरदान: प्लेन बुद्धि बन सेवा के प्लैन बनाने वाले यथार्थ सेवाधारी भव
यथार्थ सेवाधारी उन्हें कहा जाता है जो स्व की और सर्व की सेवा साथ-साथ करते हैं। स्व की सेवा में सर्व की सेवा समाई हुई हो। ऐसे नहीं दूसरों की सेवा करो और अपनी सेवा में अलबेले हो जाओ। सेवा में सेवा और योग दोनों ही साथ-साथ हो। इसके लिए प्लेन बुद्धि बनकर सेवा के प्लैन बनाओ। प्लेन बुद्धि अर्थात् कोई भी बात बुद्धि को टच नहीं करे, सिवाए निमित्त और निर्माण भाव के। हद का नाम, हद का मान नहीं लेकिन निर्मान। यही शुभ भावना और शुभ कामना का बीज है।
स्लोगन: ज्ञान दान के साथ-साथ गुणदान करो तो सफलता मिलती रहेगी।
प्रश्न: किस एक बात के कारण तुम ब्राह्मण देवताओं से भी ऊंच माने जाते हो?
उत्तर: हम ब्राह्मण अभी सर्व की रूहानी सेवा करते हैं। हम सभी आत्माओं का मिलन परमात्मा बाप से कराते हैं। यह पब्लिक सेवा देवतायें नहीं करते। वहाँ तो राजा-रानी तथा प्रजा हैं, जो यहाँ का पुरुषार्थ किया है उसकी प्रालब्ध भोगते हैं। सेवा नहीं करते इसलिए तुम सेवाधारी ब्राह्मण देवताओं से भी ऊंचे हो।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप समान सुखदाता बनना है। मन्सा-वाचा-कर्मणा किसी को भी दु:ख नहीं देना है। सदा शान्तचित्त और हर्षितमुख रहना है।
2) फालतू ख्यालातों में टाइम वेस्ट नहीं करना है। बाप की अन्दर से महिमा करनी है।
वरदान: प्लेन बुद्धि बन सेवा के प्लैन बनाने वाले यथार्थ सेवाधारी भव
यथार्थ सेवाधारी उन्हें कहा जाता है जो स्व की और सर्व की सेवा साथ-साथ करते हैं। स्व की सेवा में सर्व की सेवा समाई हुई हो। ऐसे नहीं दूसरों की सेवा करो और अपनी सेवा में अलबेले हो जाओ। सेवा में सेवा और योग दोनों ही साथ-साथ हो। इसके लिए प्लेन बुद्धि बनकर सेवा के प्लैन बनाओ। प्लेन बुद्धि अर्थात् कोई भी बात बुद्धि को टच नहीं करे, सिवाए निमित्त और निर्माण भाव के। हद का नाम, हद का मान नहीं लेकिन निर्मान। यही शुभ भावना और शुभ कामना का बीज है।
स्लोगन: ज्ञान दान के साथ-साथ गुणदान करो तो सफलता मिलती रहेगी।