मुरली सार : ''मीठे बच्चे - श्रीमत पर पवित्र बनो तो धर्मराज की सज़ाओं से छूट जायेंगे, हीरे जैसा बनना है तो ज्ञान अमृत पियो, विष को छोड़ो''
प्रश्न: सतयुगी पद का सारा मदार किस बात पर है?
उत्तर: पवित्रता पर। तुम्हें याद में रह पवित्र जरूर बनना है। पवित्र बनने से ही सद्गति होगी। जो पवित्र नहीं बनते वे सजा खाकर अपने धर्म में चले जाते हैं। तुम भल घर में रहो परन्तु किसी देहधारी को याद नहीं करो, पवित्र रहो तो ऊंच पद मिल जायेगा।
गीत:- तुम्हें पाके हमने जहान पा लिया है.....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) योग बल द्वारा विकर्मों के सब हिसाब-किताब चुक्तू कर आत्मा को शुद्ध और वायुमण्डल को शान्त बनाना है।
2) बाप की श्रीमत पर सम्पूर्ण पावन बनने की प्रतिज्ञा करनी है। विकारों के वश होकर स्वर्ग की रचना में विघ्न रूप नहीं बनना है।
वरदान: साक्षीपन के अचल आसन पर विराजमान रहने वाले अचल-अडोल, प्रकृतिजीत भव
प्रकृति चाहे हलचल करे या अपना सुन्दर खेल दिखाये-दोनों में प्रकृतिपति आत्मायें साक्षी होकर खेल देखती हैं। खेल देखने में मजा आता है, घबराते नहीं। जो तपस्या द्वारा साक्षीपन की स्थिति के अचल आसन पर विराजमान रहने का अभ्यास करते हैं, उन्हें प्रकृति की वा व्यक्तियों की कोई भी बातें हिला नहीं सकती। प्रकृति और माया के 5-5 खिलाड़ी अपना खेल कर रहे हैं आप उसे साक्षी होकर देखो तब कहेंगे अचल अडोल, प्रकृतिजीत आत्मा।
स्लोगन: मन-बुद्धि को एक बाप में एकाग्र करने वाले ही पूज्य आत्मा बनते हैं।
प्रश्न: सतयुगी पद का सारा मदार किस बात पर है?
उत्तर: पवित्रता पर। तुम्हें याद में रह पवित्र जरूर बनना है। पवित्र बनने से ही सद्गति होगी। जो पवित्र नहीं बनते वे सजा खाकर अपने धर्म में चले जाते हैं। तुम भल घर में रहो परन्तु किसी देहधारी को याद नहीं करो, पवित्र रहो तो ऊंच पद मिल जायेगा।
गीत:- तुम्हें पाके हमने जहान पा लिया है.....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) योग बल द्वारा विकर्मों के सब हिसाब-किताब चुक्तू कर आत्मा को शुद्ध और वायुमण्डल को शान्त बनाना है।
2) बाप की श्रीमत पर सम्पूर्ण पावन बनने की प्रतिज्ञा करनी है। विकारों के वश होकर स्वर्ग की रचना में विघ्न रूप नहीं बनना है।
वरदान: साक्षीपन के अचल आसन पर विराजमान रहने वाले अचल-अडोल, प्रकृतिजीत भव
प्रकृति चाहे हलचल करे या अपना सुन्दर खेल दिखाये-दोनों में प्रकृतिपति आत्मायें साक्षी होकर खेल देखती हैं। खेल देखने में मजा आता है, घबराते नहीं। जो तपस्या द्वारा साक्षीपन की स्थिति के अचल आसन पर विराजमान रहने का अभ्यास करते हैं, उन्हें प्रकृति की वा व्यक्तियों की कोई भी बातें हिला नहीं सकती। प्रकृति और माया के 5-5 खिलाड़ी अपना खेल कर रहे हैं आप उसे साक्षी होकर देखो तब कहेंगे अचल अडोल, प्रकृतिजीत आत्मा।
स्लोगन: मन-बुद्धि को एक बाप में एकाग्र करने वाले ही पूज्य आत्मा बनते हैं।