Friday, April 6, 2012

Murli [6-04-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - बाप को याद करने की आदत डालो तो देही-अभिमानी बन जायेंगे, नशा वा खुशी कायम रहेगी, चलन सुधरती जायेगी''
प्रश्न :- ज्ञान अमृत पीते हुए भी कई बच्चे ट्रेटर बन जाते हैं - कैसे?
उत्तर: जो एक ओर ज्ञान अमृत पीते दूसरी ओर जाकर गंद करते अर्थात् आसुरी चलन चल डिससर्विस करते, ईश्वर के बच्चे बनकर अपनी चलन सुधारते नहीं, आपस में मायावी बातें करते, एक दो को दु:खी करते, वह हैं ट्रेटर। बाबा कहते बच्चे, तुम यहाँ आये हो असुर से देवता बनने, तो सदा एक दो में ज्ञान की चर्चा करो, दैवीगुण धारण करो, अन्दर जो भी अवगुण हैं उन्हें निकाल दो। बुद्धि को स्वच्छ, साफ बनाओ।
गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) शुद्ध भोजन खाते हुए भी आत्मा को पावन बनाने के लिए याद की मेहनत जरूर करनी है। याद से ही श्रेष्टाचारी बनना है। विकर्म विनाश करने हैं।
2) इस कयामत के समय में जबकि घर वापिस जाना है तो पुराना सब हिसाब-किताब चुक्तू कर देना है। आपस में ज्ञान की चर्चा करनी है। मायावी बातें नहीं करनी है।
वरदान: कम्पेनियन को कम्बाइन्ड रूप में अनुभव करने वाले स्मृति स्वरूप भव
कई बच्चों ने बाप को अपना कम्पैनियन तो बनाया है लेकिन कम्पैनियन को कम्बाइन्ड रूप में अनुभव करो, अलग हो ही नहीं सकते, किसकी ताकत नहीं जो मुझ कम्बाइन्ड रूप को अलग कर सके, ऐसा अनुभव बार-बार स्मृति में लाते-लाते स्मृति स्वरूप बन जायेंगे। जितना कम्बाइन्ड रूप का अनुभव बढ़ाते जायेंगे उतना ब्राह्मण जीवन बहुत प्यारी, मनोरंजक अनुभव होगी।
स्लोगन: दृढ़ संकल्प की बेल्ट बांधी हुई हो तो सीट से अपसेट नहीं हो सकते।