Monday, March 5, 2012

Murli [5-03-2012]-Hindi

मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - जितना प्यार से यज्ञ की सेवा करो उतना कमाई है, सेवा करते-करते तुम बन्धनमुक्त हो जायेंगे, कमाई जमा हो जायेगी''
प्रश्न: अपने को सदा खुशी में रखने की युक्ति कौन सी अपनानी है?
उत्तर: अपने को सर्विस में बिजी रखो तो सदा खुशी रहेगी। कमाई होती रहेगी। सर्विस के समय आराम का ख्याल नहीं आना चाहिए। जितनी सर्विस मिले उतना खुश होना चाहिए। ऑनेस्ट बन प्यार से सर्विस करो। सर्विस के साथ-साथ मीठा भी बनना है। कोई भी अवगुण तुम बच्चों में नहीं होना चाहिए।
गीत:- यह वक्त जा रहा है.....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) दिन में शरीर निर्वाह अर्थ कर्म और सुबह-शाम जीवन को हीरे जैसा बनाने की रूहानी सेवा जरूर करनी है। सबको रावण की जंजीरों से छुड़ाना है।
2) माया कोई भी विकर्म न करा दे इसमें बहुत-बहुत खबरदार रहना है। कर्मेन्द्रियों से कभी कोई विकर्म नहीं करना है। आसुरी अवगुण निकाल देने हैं।
वरदान: मर्यादा की लकीर के अन्दर सदा छत्रछाया की अनुभूति करने वाले मायाजीत, विजयी भव
बाप की याद ही छत्रछाया है, जितना याद में रहते उतना साथ का अनुभव होता है। छत्रछाया में रहना अर्थात् सदा सेफ रहना। जो संकल्प से भी छत्रछाया से बाहर निकलते हैं उन पर माया का वार होता है। छत्रछाया के नीचे, मर्यादा की लकीर के अन्दर रहने से कोई की हिम्मत नहीं अन्दर आने की। लेकिन यदि लकीर से बाहर निकले तो माया है ही होशियार, इसलिए साथ के अनुभव से मायाजीत बनो।
स्लोगन: अशरीरी बनने का अभ्यास ही समाप्ति के समय को समीप लाने का आधार है।