Sunday, March 4, 2012

Murli [4-03-2012]-Hindi

प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त बापदादा'' रिवाइज:16-11-95 का शेष भाग मधुबन
''स्वप्न मात्र भी लगाव मुक्त बनो''
वरदान: सेवा के बंधन द्वारा कर्म-बन्धनों को समापत करने वाले विश्व सेवाधारी भव
प्रवृत्ति में रहते हुए कभी यह नहीं समझो कि हिसाब-किताब है, कर्मबन्धन है...लेकिन यह भी सेवा है। सेवा के बन्धन में बंधने से कर्मबन्धन खत्म हो जाता है। जब तक सेवा भाव नहीं होता तो कर्मबन्धन खींचता है। कर्मबन्धन होगा तो दुख की लहर आयेगी और सेवा का बन्धन होगा तो खुशी होगी। इसलिए कर्मबन्धन को सेवा के बंधन से समाप्त करो। विश्व सेवाधारी विश्व में जहाँ भी हैं विश्व सेवा अर्थ हैं।
स्लोगन: अपने दैवी स्वरूप की स्मृति में रहो तो आप पर किसी की व्यर्थ नज़र नहीं जा सकती।