Friday, March 30, 2012

Murli [30-03-2012]-Hindi

मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - कोई भी कर्म, विकर्म न बने इसकी पूरी सम्भाल करनी है, कदम-कदम पर बाप की श्रीमत लेकर कर्म में आना है''
प्रश्न: विकर्मो से कौन बच सकते हैं? बाप की सहायता किन्हें मिलती है?
उत्तर: जो बाप से सदा सच्चे रहते, प्रतिज्ञा कर विकारों का दान देकर वापिस लेने का संकल्प नहीं करते, वह विकर्मो से बच जाते हैं। बाप की सहायता उन्हें मिलती जो कर्म, विकर्म बनने के पहले राय लेते हैं। साकार को अपना सच्चा-सच्चा समाचार बताते हैं। बाबा कहते बच्चे, सर्जन के आगे कभी अपनी बीमारी छिपाना नहीं। पापों को छिपायेंगे तो वृद्धि होती रहेगी, पद भी भ्रष्ट हो जायेगा, सजायें भी खानी पड़ेंगी।
गीत:- बचपन के दिन भुला न देना...
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) देह-अभिमान में आकर कभी भी विकारों के फंदे में नहीं फंसना है। कर्म, विकर्म न बनें इसलिए कर्म के पहले बाप से राय लेनी है।
2) माँ बाप को फालो करना है। ऊंच पद के लिए सम्पूर्ण पावन जरूर बनना है।
वरदान: 'मैं'शब्द की स्मृति द्वारा अपने ओरीज्नल स्वरूप में स्थित होने वाले देह के बंधन से मुक्त भव
एक 'मैं' शब्द ही उड़ाने वाला है और 'मैं' शब्द ही नीचे ले आने वाला है। मैं कहने से ओरीज्नल निराकार स्वरूप याद आ जाये, यह नेचुरल हो जाए, देह भान का मैं समाप्त हो जाए तो देह के बंधन से मुक्त बन जायेंगे क्योंकि यह मैं शब्द ही देह-अहंकार में लाकर कर्म-बंधन में बांध देता है। लेकिन मैं निराकारी आत्मा हूँ, जब यह स्मृति आती है तो देहभान से परे हो, कर्म के संबंध में आयेंगे, बंधन में नहीं।
स्लोगन: निश्चित विजय और निश्चिंत स्थिति का अनुभव करने के लिए सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि बनो।