Friday, March 16, 2018

17-03-18 प्रात:मुरली

17-03-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - अभी यह पुरानी दुनिया बदल रही है इसलिए इससे प्रीत नहीं रखनी है, नये घर स्वर्ग को याद करना है"
प्रश्न:
सदा सुखी बनने की कौन सी विधि बाप सभी बच्चों को सुनाते हैं?
उत्तर:
सदा सुखी बनना है तो दिल से एक बाप का बन जाओ। बाप को ही याद करो। बाप कभी भी किसी बच्चे को दु:ख नहीं दे सकते। स्वर्ग में कभी किसका पति, किसका बच्चा मरता नहीं। वहाँ यह अकाले मौत का धन्धा नहीं होता है। यहाँ तो माया रावण दु:खी बनाती रहती है। बाबा है दु:ख हर्ता, सुख कर्ता।
गीत:-
दु:खियों पर कुछ रहम करो माँ बाप हमारे..  
ओम् शान्ति।
यह वही मात-पिता फिर से सदा सुखी बनाने के लिए राजयोग सिखला रहे हैं। जैसे कोई बैरिस्टर बैठ बैरिस्टर बनने की नॉलेज देते हैं। अभी यह है बेहद के मात-पिता, स्वर्ग के रचयिता। वह बैठ बच्चों को स्वर्ग का मालिक बनाने लिए शिक्षा देते हैं। ऐसा तो कोई कालेज नहीं होगा जिसमें स्वयं भगवान बैठ पढ़ाये। यहाँ खुद भगवान बैठ पढ़ाते हैं भगवान-भगवती बनाने। सतयुग में श्री लक्ष्मी-नारायण को भगवान-भगवती कहा जाता है। नई दुनिया का मालिक किसने बनाया? वह सतयुग के मालिक थे। भारत में सतयुग आदि में देवी-देवताओं का राज्य था। अभी है कलियुग, देवताओं का राज्य ही नहीं। देवताओं से सब बदल कंगाल मनुष्य बन गये हैं। देवतायें तो बहुत धनवान सुखी थे। अभी कलियुग का अन्त होने के कारण सब मनुष्य बड़े दु:खी हैं। लड़ाई लगेगी, मनुष्य बड़ी त्राहि-त्राहि करेंगे। बहुत दर-बदर होंगे। मनुष्य बिल्कुल निधन के हैं क्योंकि स्वर्ग के सुख देने वाले माँ-बाप को जानते ही नहीं। तुम उस मात-पिता के बने हो। तुमको मात-पिता से अथाह सुख मिलते हैं। मनुष्य जो भक्ति करते हैं वह कोई भगवान को याद नहीं करते, भगवान को तो पत्थर-ठिक्कर, कुत्ते-बिल्ली में ठोक फिर अपने को भगवान समझ बैठे हैं। कह देते हैं सबमें भगवान विराजमान है। पतितों में भगवान को विराजमान समझना तो ग्लानी हुई ना। परन्तु यह भी ड्रामा में मनुष्यों को भूल करनी ही है और बाप को आकर अभुल बनाना है। मनुष्यों को पता ही नहीं पड़ता। भगवान तो एक होता है, हजारों थोड़ेही होंगे। लौकिक बाप तो बहुत हैं। वह तो जानवरों के भी होते हैं। परन्तु सबका सद्गति दाता, पतित-पावन एक है। तो वह बाप आकर बच्चों को पढ़ाते हैं भविष्य के लिए। भगवान-भगवती बनाते हैं। अब सिवाए परमपिता परमात्मा के भगवान-भगवती कौन बना सकते! जबकि वह बाप है तो माता बिगर सृष्टि कैसे रचेंगे! भारतवासी गाते हैं, तुम भी भक्ति मार्ग में चिल्लाते थे - तुम मात-पिता... तुम्हरी कृपा से सुख घनेरे मिलते हैं इसलिए हम भक्ति करते हैं। किसकी भी भक्ति करते हैं तो समझते हैं हम भगवान को याद करते हैं। सन्यासी भी साधना करते हैं परन्तु किसकी साधना करते वह नहीं जानते। रावण मत पर सब भूल गये हैं। तो फिर बाप क्या करे। इतना दु:खी कंगाल होना, यह भी ड्रामा में है।
बाप आकर बच्चों को फिर से स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। स्वर्ग का मालिक बनाने वाला है पारलौकिक मात-पिता, नर्क का मालिक बनाने वाला है रावण। तो उस रावण पर अब जीत पानी है। अभी तुम मायाजीत जगतजीत बनते हो। तुमको कोई पुरानी दुनिया में थोड़ेही राज्य करना है। माया पर जीत पाकर फिर स्वर्ग में राज्य करना है। माया से हारने से नर्क में आ जाते हो। यह बातें और कोई पतित मनुष्य समझा नहीं सकते। न वह किसको पावन बना सकते हैं। सारी दुनिया पतित है। विष से पैदा होते हैं। देवी-देवता तो सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण हैं। वहाँ विष का नाम ही नहीं। भगवान को कोई भी जानते नहीं। तो उनको गुरू करने से क्या फायदा? न खुद भगवान से मिल सकते, न औरों को मिला सकते। आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल.. तो फिर मिलाने वाला भी वह परमपिता परमात्मा चाहिए। वह यह भी नहीं समझते कि नाटक अब पूरा होता है। यह ड्रामा, जो सतयुग से लेकर कलियुग तक चलता है, उनको रिपीट होना है। इस ड्रामा की नॉलेज को समझने से तुम चक्रवर्ती बनते हो। तुम जानते हो 84 जन्म हम कैसे लेते हैं। यह है लीप युग, पुरुषोत्तम युग। इसमें यह अन्तिम जन्म है। अब बाप का बनना है। बाप कहते हैं - हे बच्चे, तुम मेरा बनो। कहते भी हो हे परमपिता परमात्मा। लौकिक बाप को तो ऐसे नहीं कह सकते। तो अब पारलौकिक बाप कहते हैं मैं आया हुआ हूँ। बाकी यह काके चाचे आदि सब तुम्हारे खत्म होने हैं। यह पुरानी दुनिया बदल रही है। सामने महाभारी महाभारत लड़ाई भी खड़ी है। यह अनेक धर्म विनाश होने हैं। यह है पुरानी दुनिया, जिसमें अनेकानेक धर्म है। सतयुग में होता है एक धर्म। तो अब यह दुनिया बदलनी है इसलिए इनसे प्रीत नहीं लगानी है। लौकिक बाप नया मकान बनाते हैं तो बच्चों को दिल में नया मकान ही याद पड़ेगा ना कि मकान तैयार होगा, फिर हम नये मकान में बैठेंगे। पुराना तोड़ खलास कर देंगे। अब इस सारी दुनिया का विनाश होना है। बच्चों ने साक्षात्कार भी किया है - कैसे आग लगती है, मूसलधार बरसात पड़ती है, समुद्र आदि कैसे उछलते हैं। यह सब साक्षात्कार किये हैं।
बाबा बम्बई में जाते हैं तो समझाते हैं यह बम्बई पहले थी नहीं। एक छोटा सा गांव था, अब समुद्र को सुखाया है। हिस्ट्री रिपीट होगी तो फिर यह इतनी बाम्बे नहीं रहेगी। सतयुग में कोई बाम्बे गांव होता नहीं। यह अमेरिका आदि क्या है! एक ही बाम से सब खत्म हो जायेंगे। हिरोशिमा में जब बाम लगाया, क्या हो गया? शहर का शहर खलास हो गया। वह तो एक बाम था। अभी तो ढेर बाम बनाये हैं। कहते भी हैं बाप आये हैं नई दुनिया स्थापन करने, इनको पुराना नर्क रावण बनाते हैं। यह भारतवासी नहीं जानते। माया ने सबको गॉडरेज का ताला ऐसा लगा दिया है जो खुलता नहीं। मनुष्य कितने दु:खी हैं। भले साहूकार सुखी हैं परन्तु बीमार रोगी तो बनते हैं ना। आज बच्चा जन्मा, खुशी हुई, फिर बच्चा मरा तो दु:ख हुआ। विधवा बन रोते रहते हैं। इसको कहा जाता है दु:खधाम। भारत सुखधाम था, अब पुरानी दुनिया दु:खधाम है। फिर बाप सुखधाम बनाते हैं। बाप कहते हैं अब वर्सा लो। तो जरूर याद भी उनको करना पड़ेगा और सभी देह के सम्बन्ध दु:ख देने वाले हैं। अभी तुम समझते हो एक बाप बिगर सुख देने वाला कोई है नहीं। कहते हैं - बाबा, हम आपके वही बच्चे हैं, जिनको आपने स्वर्ग का मालिक बनाया था। अभी हम दु:खी हैं। आप तो रहमदिल हो। दु:खी हैं तब तो पुकारते हैं। सतयुग में सुखी हो जायेंगे तो वहाँ कोई भी नहीं पुकारेंगे। दु:ख में सब याद करते हैं परन्तु भगवान किसको मिलता ही नहीं। समझो भक्त हनूमान को याद करते हैं। अच्छा, हनूमान कहाँ रहता है? हनूमान के पास तुमको कहाँ जाना है। मनुष्य भक्ति करते हैं मुक्ति वा जीवनमुक्ति धाम में जाने के लिए। हनूमान वा गणेश आदि को याद करने से तुम कहाँ जायेंगे? उन्हों का ठिकाना कहाँ है? उनसे तुमको क्या मिलना है? कुछ पता नहीं।
बाप समझाते हैं सृष्टि में सुख देने वाला एक ही मैं हूँ। ऐसे नहीं भगवान ही सुख देते, भगवान ही दु:ख देते, वही बच्चे देते हैं तो सुख होता है, बच्चे छीन लेते हैं तो दु:ख होता है। तो बाप कहते हैं हम तो सदैव सुख देते हैं। तुमसे सुख माया छीनती है। सतयुग में ऐसा होता नहीं जो बच्चा मर जाए वा किसका पति मर जाए। यहाँ इस मायावी दुनिया में कभी किसका बच्चा, कभी किसका पति मरते ही रहते हैं। यह धन्धा स्वर्ग में नहीं होता है। यहाँ तो नर्क है। अब बाप कहते हैं अगर सदा सुखी बनना चाहते हो तो बाप के बनो। अभी तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों ही तमोप्रधान हैं, ऐसे नहीं कि आत्मा निर्लेप है। आत्मा में ही खाद पड़ती है। इस कारण अब जेवर भी आइरन एजेड बन पड़े हैं। अब फिर तुम गोल्डन एजेड बनने लिए नॉलेज ले रहे हो। बाप आकर अमर बनाए अमरपुरी में ले जाते हैं। यहाँ तो मृत्युलोक है। गीता में भी अक्षर है। अमरपुरी में आदि-मध्य-अन्त दु:ख नहीं होगा। मृत्युलोक में आदि-मध्य-अन्त दु:ख है। ऐसे दु:खधाम को भूलना पड़े। सुखधाम और शान्तिधाम को याद करना है। हम सुखधाम जा रहे हैं वाया शान्तिधाम। जहाँ के हम रहवासी हैं। यह भी स्वदर्शन चक्र हुआ ना। अपने बाप और स्वीट होम को याद करना है। कन्या बाप का घर छोड़ ससुरघर जाती है तो गाते हैं ना पियरघर से चले ससुरघर.. तो तुम्हारा यह है ब्रह्मा का पियरघर। अब तुम स्वर्ग ससुरघर जायेंगे। वहाँ सुख ही सुख है। यहाँ है दु:ख। कन्या भी घर छोड़ती है सुख के लिए। परन्तु वहाँ उनको पतित बनाए दु:खी बनाया जाता है। अभी बाप समझाते हैं मैं तुमको एकदम नयनों पर बिठाकर स्वर्ग ले जाने लिए आया हुआ हूँ। सिर्फ मुझे याद करो। वहाँ तुमको कोई दु:ख नहीं होगा। बच्चों ने देखा है कृष्ण का जन्म कैसे होता है। पहले से ही साक्षात्कार होता है। जब शरीर छोड़ना होता है तो उसी समय साक्षात्कार होता है। हम यह शरीर छोड़ जाकर प्रिन्स बनेंगे। बस आत्मा शरीर से निकल जाकर गर्भ महल में बैठ जाती है। बच्चा पैदा होते समय कोई तकलीफ नहीं होती। वहाँ गर्भ महल में तुमको सुख ही सुख रहेगा। यहाँ तो गर्भ जेल भी है और जो चोरी पाप करते वे भी गवर्मेन्ट की जेल में जाते हैं। वहाँ यह दोनों जेल नहीं होती। पाप आदि कोई करते नहीं। उसको कहा जाता है पुण्य आत्माओं की दुनिया। तो बाप स्वर्ग मे ले जाते हैं। देखते हैं इतने सभी पुरुषार्थ कर रहे हैं तो क्यों न हम भी बाप से वर्सा ले सदा सुखी बनें। कोई तो प्रायश्चित करते हैं कि यह कर्मबन्धन कैसे छूटेगा? बच्चे नहीं होते तो अच्छा था। कोई शादी कर फिर ज्ञान में आते हैं तो कहते पहले पता पड़ता तो शादी नहीं करते। ऐसे बहुत लिखते हैं। जिनकी तकदीर जब खुलनी है, तब आते हैं। सो भी पसन्दी पर है। एक सप्ताह बाप के बच्चे बनकर देखो। पसन्द आये तो बनना, नहीं तो जाकर लौकिक माँ बाप का बनना। फीस तो कुछ नहीं है। शिवबाबा का भण्डारा है। न कोई किताब आदि खरीद कराते हैं। सिर्फ मुरली भेजी जाती है। बाप का खजाना है, वह फीस क्या लेंगे! हॉ, अच्छा लगे तो गरीबों के लिए लिटरेचर छपा लेना।
भारत जैसा और कोई दानी देश नहीं। बाप भी आकर भारत में दान करते हैं। तुम बच्चे भी तन-मन-धन बाप के हवाले करते हो। महादानी बनते हो। यह बाबा महादानी बना ना। आगे तो इनडायरेक्ट दान करते थे। अब खुद डायरेक्ट आया है, रिटर्न में स्वर्ग की बादशाही देते हैं। सस्ता सौदा है ना। फिर कहते हैं अब आप समान बनाओ, विकारों को जीतो, देही-अभिमानी बनो, अपने को आत्मा समझो। गाते भी हैं नंगे आये थे, नंगे जाना है। पहले नम्बर में देवी-देवताओं की आत्मायें आई। उनके पीछे दूसरे नम्बर वाले हैं। हेड हैं देवी-देवता धर्म की आत्मायें। जो पहले आते हैं तो जाना भी पहले उनको ही है। आलराउन्ड उन्हों का पार्ट है। यह सभी बातें समझने की हैं, जिनके भाग्य में है वह तो झट समझ लेते हैं ना। भाग्य में नहीं है तो दिल नहीं लगती। बाप कहते हैं अब मुझे याद करो, मैं ही तुम्हारा बाप, गॉड फादर हूँ। कच्छ-मच्छ कोई गॉड थोड़ेही हैं। यह बातें बाप बिगर कोई समझा नहीं सकता। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे सर्विसएबुल बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) तन-मन-धन सब बाप हवाले कर महादानी बनना है। आप समान बनाने की सेवा भी करनी है और देही-अभिमानी होकर रहना है।
2) इस पुरानी दुनिया दु:खधाम को भूल शान्तिधाम और सुखधाम को याद करना है। कर्मबन्धन में कभी भी फंसना नहीं है।
वरदान:
"मेरा बाबा" के स्मृति स्वरूप द्वारा समर्थियों का अधिकार प्राप्त करने वाले समर्थ आत्मा भव!
कल्प पहले की स्मृति आते ही बच्चे कहते तुम मेरे हो और बाप कहते तुम मेरे हो। इस मेरे-पन की स्मृति से नया जीवन, नया जहान मिल गया और सदा के लिए "मेरा बाबा" इस स्मृति स्वरूप में टिक गये। इसी स्मृति के रिटर्न में समर्थी स्वरूप बन गये, जो जितना स्मृति में रहते हैं उतना उन्हें समर्थियों का अधिकार प्राप्त होता है। जहाँ स्मृति है वहाँ समर्थी है ही। थोड़ी भी विस्मृति है तो व्यर्थ है इसलिए सदा स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप बनो।
स्लोगन:
हार्ड वर्कर के साथ-साथ स्थिति में भी सदा हार्ड (मजबूत) बनो।