Wednesday, March 14, 2018

14-03-18 प्रात:मुरली

14-03-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - तुम रूहानी सोशल वर्कर हो, तुम्हें इस दुनिया को सुख-शान्ति और पवित्रता से सम्पन्न बनाने के लिए अपना तन-मन-धन सफल करना है"
प्रश्न:
माया पर जीत पाने के लिए तुम बच्चों के पास कौन सा हथियार है? उस हथियार को यूज़ करने की विधि क्या है?
उत्तर:
माया पर जीत पाने के लिए तुम्हारे पास "स्वदर्शन पा" है। यह कोई स्थूल हथियार नहीं है, लेकिन मन से मनमनाभव हो जाओ। हम सो, सो हम के मंत्र को याद करो, तो इस विधि से माया का गला कट जायेगा। तुम मायाजीत बन चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे।
गीत:-
इस पाप की दुनिया से कहीं और ले चल...  
ओम् शान्ति।
तुम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राहमण ही जानते हो कि यह कलियुगी पाप की दुनिया है और सतयुग जरूर पुण्य की दुनिया है। बच्चों को समझाया गया है जो मनुष्य पुण्य आत्मायें होते हैं उनको अच्छा जन्म मिलता है। पाप आत्मा को बुरा जन्म मिलता है। अब यह तो है ही पाप आत्माओं की दुनिया। यह ज्ञान तुम बच्चों की बुद्धि में है। शान्तिधाम को ही परमधाम कहा जाता है। यह है दु:खधाम। भारत सतयुग में सुखधाम था। अब हमको शान्तिधाम जाना है, फिर सुखधाम में आना है। सुखधाम में पवित्रता, सुख, शान्ति तीनों ही हैं। इस दु:खधाम में है अपवित्रता, दु:ख, अशान्ति। यह तीन चीज़ें समझ लेनी चाहिए। जब भारत में तीनों चीज़ें हैं तब सुखधाम कहा जाता है। अब तुम तन-मन-धन सब कुछ बाप पर बलि चढ़ाते हो। तन-मन-धन से तुम भारत की सेवा करते हो। तन से भी सेवा की जाती है ना। सोशल वर्कर तन की सेवा करते हैं। कोई धन की सेवा करते हैं। बाकी मन की सेवा इस दुनिया में कोई जानते नहीं। मनमनाभव का अर्थ ही बाप आकर समझाते हैं। मुझ परमपिता परमात्मा को याद करो जिससे तुमको सुख का वर्सा लेने का है। मनमनाभव यानी सबकी बुद्धि बाप के साथ लगी रहे। ऐसा दूसरा कोई मनुष्य है नहीं, जो कह सके। तो और सभी सेवा करते हैं परन्तु मन से कोई भी कर नहीं सकते। मनुष्य कहते हैं मन शान्त कैसे हो? अब मन और बुद्धि है आत्मा का आरगन्स और यह कर्मेन्द्रियां शरीर के आरगन्स हैं। तो बाप बैठ समझाते हैं स्वदर्शन चक्र को याद करो। अपने बाप और सुखधाम को याद करो, इस दु:खधाम को भूल जाओ। यह हुई मन की सेवा, जो जो करेंगे वही माया पर जीत पायेंगे। माया का सिर कट जायेगा। ऐसे नहीं, स्वदर्शन चक्र से कोई मनुष्य का सिर काटा जाता है। देवताओं के ऐसे अलंकार होते नहीं, जिससे कोई पाप हो।
मनुष्य समझते हैं कृष्ण ने स्वदर्शन चक्र से गला काटा था। यह तो पाप का काम हो गया। देवतायें ऐसा काम कर न सकें। स्वदर्शन चक्र कोई का सिर काटने के लिए नहीं है। यह है माया पर जीत पाने का। स्वदर्शन चक्र फिराने से हम देवता बनते हैं। माया पर जीत पा लेते हैं। इसी स्वदर्शन चक्र से ही तुम माया पर जीत पाते हो। यह तुम्हारा हथियार है। शंख है बजाने के लिए। नॉलेज मिली हुई है ना। सिखलाते हैं स्वदर्शन चक्र कैसे फिराओ। तो फिर तुम चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे। अब हम शान्तिधाम जा रहे हैं फिर सुखधाम आयेंगे। यह बाप ने सिखलाया है। स्वदर्शन चक्रधारी बाप के सिवाए कोई बना न सके। अब तुम ईश्वर की वंशावली हो फिर बनेंगे विष्णु की वंशावली। स्वदर्शन चक्र का अलंकार भी विष्णु को दिया हुआ है। तुम हो पुरुषार्थी। स्वदर्शन चक्र फिराने से विष्णु कुल में जायेंगे। यह तो बहुत सहज है कोई को समझाना। शान्तिधाम को याद करो जो बाप का घर है, जहाँ से आत्मायें आती हैं। अभी तो नर्क है, अब जाना है स्वर्ग में। बाप को याद करने से सब विकर्म विनाश होंगे। परन्तु बाप से पूरा योग नहीं है तो धारणा नहीं होती फिर कोई को समझा नहीं सकते।
तुम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्माकुमार कुमारियां हो। जो पवित्र रहते हैं वही बी.के. हैं। जो पवित्र नहीं रह सकते हैं वह ब्रह्मा मुख वंशावली शिवबाबा का पोत्रा कहला नहीं सकते। क्रोध, लोभ की बात अलग है। परन्तु पवित्र रह न सकें तो उनको ब्राह्मण कहना भी रांग है। वह ब्राह्मण कुल का है नहीं, जिसमें विकार हैं या विकार में जाते हैं। तुम समझा सकते हो हम तो पवित्र रहते हैं परन्तु कोई विकारी बन खराब हो जाते तो वह ब्राह्मण कहलाने के हकदार नहीं। विकार में जाना पतितपना है। ऐसे पतित यहाँ आ नहीं सकते। परन्तु कारणें अकारणें आने देना पड़ता है। अभी देखो मकान बनाने वाले जरूर सब पतित लोग हैं ना। परन्तु ब्राह्मण लोग तो यह काम नहीं करेंगे। तो उन्हों से काम लेना पड़ता है। कोई मददगार बनते हैं तो रहने दिया जाता है। वास्तव में पतित कोई रह नहीं सकता। यह है पावन बनने की जगह, पतित आयेंगे तो जरूर। भारत पावन था, स्त्री-पुरुष दोनों पवित्र रहते थे। लक्ष्मी-नारायण स्त्री-पुरुष दोनों सम्पूर्ण निर्विकारी थे ना। हम खुद उन्हों की महिमा करते हैं। तुम हो अब संगमयुगी। संगम पर बाप आकर पतित से पावन बनाते हैं। विषय विकारों में जाने वाले को पतित कहा जाता है। सन्यासी लोग विष को छोड़ते हैं तो पतित लोग उनको माथा टेकते हैं। विकार अक्षर बड़ा खराब है। निर्विकारी अर्थात् वाइसलेस। विकारी को कहा जाता है विशश। वैश्यालय है। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प संगम पर आकर पतित से पावन बनाता हूँ, लायक बनाता हूँ। पावन दुनिया का मालिक बनाते हैं। स्वर्ग का मालिक तो स्वर्ग का रचयिता ही बनायेगा ना।
बाप को समझाना पड़ता है देवतायें कितने धणके थे! अब तो सभी निधन के हैं। यह है दु:खदाई दुनिया। सब एक दो को दु:ख देते रहते हैं। नम्बरवन दु:ख है काम कटारी चलाना, जिससे आदि-मध्य-अन्त दु:ख मिलता है। इस दु:खधाम में कोई को शान्ति मिलना ही असम्भव है क्योंकि सारी दुनिया का क्वेश्चन है ना। इतने सन्यासी पवित्र रहते हैं फिर भी भारत तमोप्रधान हो गया है ना। सिर्फ वह पवित्र बनते हैं इसलिए पतित मनुष्य उनकी सेवा करते हैं। भोजन देते हैं, महल आदि बनाकर देते हैं। तो जो पवित्र बनते हैं उनका नाम बाला होता है। बाप भी इन विकारों पर जीत पहनाते हैं। हम सो पूज्य देवता थे - यह सब भूल गये हैं। निर्विकारी देवी-देवताओं की डिनायस्टी चलती है। पूछेंगे वहाँ पैदाइस कैसे होगी? सो तो जरूर वहाँ की जो रसम होगी वैसे ही होगी। पहले तुम बाप से राजयोग सीख राज्य-भाग्य का वर्सा तो लो। यह थोड़ेही पूछना होता है - बच्चे कैसे पैदा होंगे? डिनायस्टी तो चलती है। वह सन्यास है रजोप्रधान। देवताओं का सन्यास है सतोप्रधान। सन्यासी तो विकारों से जन्म ले फिर निर्विकारी बनने का पुरुषार्थ करते हैं। वह है निर्विकारी दुनिया, यह है विकारी दुनिया। विकारी मनुष्यों को यह ख्याल रहता है कि विकार बिगर दुनिया कैसे चलेगी! जैसी उन्हों की दृष्टि, वैसी ही सृष्टि भासती है।
बाप कितना अच्छा बनाते हैं। लक्ष्य तो बुद्धि में रहता है ना। भगवान हमको आप समान भगवती भगवान बनाते हैं। तो गोया मास्टर भगवान हो गये, फिर देवता बनना है। मास्टर भगवान बन बाप के घर जाना है। जैसे वह पावन हैं तुम भी याद करते-करते पावन बन जायेंगे। फिर पावन दुनिया में आयेंगे। वहाँ दु:ख का नाम नहीं होता। मनुष्य ऐसे बन पड़ते हैं जो पावन बनने के लिए गुरू करना पड़ता है। आजकल तो विकारी पतित को भी गुरू कर लेते हैं। गृहस्थी पतित गुरू क्या पावन बनायेंगे? कुछ भी समझ नहीं है। बाप को जानते ही नहीं। यह है आरफन्स की दुनिया। सतयुग है धनी की दुनिया क्योंकि देवी-देवता धर्म तो धनी ने स्थापन किया। जब धनी के बने तब धणके हों। अब तुम गॉडली स्टूडेन्ट्स हो। भगवानुवाच एक अर्जुन प्रति तो नहीं था, सजंय भी था। तो अब तुमको बाप की श्रीमत पर चलना है। बाप कहते हैं श्रेष्ठ बनो। इस ड्रामा को भी समझना है। क्रियेटर, डायरेक्टर है परमपिता परमात्मा शिव। वह ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भी क्रियेट करते हैं फिर उनको डायरेक्शन देते हैं फिर ब्रह्मा की माला बदल रूद्र माला फिर विष्णु की माला बनेगी। बाप कहते हैं सिर्फ मुझ बाप को याद करो और स्वर्ग को याद करो तो ऐसे लक्ष्मी-नारायण बन जायेंगे। यह है सच्ची कमाई। मनुष्यों को कर्मों अनुसार जन्म मिलता है। अब बाप ऐसे श्रेष्ठ कर्म सिखलाते हैं, यहाँ है श्रीमत पर चल श्रेष्ठ बनने की कमाई। बाकी तो सभी मिट्टी में मिल जाना है। देह-अभिमान भी छोड़ना है। हम बाप के बने हैं, जाते हैं बाप के पास। यह आत्मा कहती है - बाबा हम आपकी याद में रह विकर्मो को काट ही लेंगे। फिर आप हमको स्वर्ग में भेज दोगे ना! नर्क का विनाश, स्वर्ग की स्थापना तो होती है ना। महाभारी लड़ाई सामने है। इससे भी मुक्ति-जीवनमुक्ति के गेट्स खुलते हैं। यहाँ तो देखो बैठे-बैठे बीमारी लग जाती है। वहाँ तो सदैव आराम ही आराम है। यह दु:खधाम है ना इसलिए पुरुषार्थ किया जाता है सुखधाम के लिए। वहाँ माया है नहीं। देह-अभिमान होता नहीं। समझते हैं हम आत्मा हैं, यह शरीर अब बूढ़ा हुआ है, दूसरा लेना है। वहाँ यह ज्ञान नहीं रहता कि हम बाबा के पास जाते हैं। यह ज्ञान तुमको इस समय है। हमको वापिस जाना है बाबा के पास फिर बाबा स्वर्ग में भेज देंगे। शरीर निर्वाह अर्थ कर्म भी करते रहो।
तुम जितना आज्ञाकारी, व़फादार रहेंगे उतना उन्नति होगी। श्रीमत से श्रेष्ठ बनना है। सपूत बच्चों का काम है बाप से पूरा वर्सा लेना। अभी लेंगे तो कल्प-कल्पान्तर लेते रहेंगे। अभी नहीं लिया तो कल्प-कल्पान्तर वर्सा ले नहीं सकेंगे। तुम बच्चों के आगे सारी दुनिया कंगाल है। सभी मिट्टी में मिल जायेंगे। देवाला मार देंगे। तुम सच्ची कमाई करते हो सचखण्ड के लिए। बाप कहते हैं तुमको मेरे घर आना है इसलिए उस घर को याद करो। घर का मालिक ही बताते हैं तुम हमारे घर के मालिक थे। अब फिर घर को याद करो। ड्रामा पूरा होता है, कितना सहज है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) आज्ञाकारी, व़फादार और सपूत बन बाप से पूरा वर्सा लेना है। श्रीमत पर श्रेष्ठ कर्म कर सच्ची कमाई करनी है।
2) सम्पूर्ण निर्विकारी बन सच्चा ब्राह्मण बनना है। पावन बन स्वयं को पावन दुनिया के लायक बनाना है।
वरदान:
"मेरा बाबा" इस संकल्प द्वारा हर कदम में मदद का अनुभव करने वाले निश्चयबुद्धि भव!
ड्रामानुसार जो पक्के निश्चयबुद्धि हैं, दिल में संकल्प कर लेते हैं कि बाप मेरा, मैं बाप का, तो ऐसे बच्चों को स्वत: मदद मिलती है। सिर्फ सच्ची दिल से कहो "मेरा बाबा" तो हर कदम में मदद की अनुभूति होती रहेगी। जिन बच्चों का एक बाप के साथ अटूट प्यार है उन्हें कोई भी बात रोक नहीं सकती। बाप का प्यार सब बातों से पार करा देता है। वे उड़ते रहते हैं।
स्लोगन:
सदा बाप की लाइट माइट के अन्दर रहो तो माया आपके आगे ठहर नहीं सकती।