Thursday, March 8, 2018

08-03-18 प्रात:मुरली

08-03-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - मोस्ट बिलवेड बाप का यथार्थ परिचय देने की युक्तियां निकालनी हैं, एक्यूरेट शब्दों में अल्फ का परिचय दो तो सर्वव्यापी की बात खत्म हो जायेगी"
प्रश्न:
अविनाशी ज्ञान रत्न चुगने वाले बच्चों का फ़र्ज क्या है?
उत्तर:
ज्ञान की हर बात पर अच्छी रीति विचार सागर मंथन कर एक बाप की सबको सही पहचान देना। पुण्य आत्मा बनाने वाले के साथ-साथ पापात्मा किसने बनाया - यह समझ देना, तुम बच्चों का फ़र्ज है। सबको रावण के बेर चुगने से बचाए ज्ञान रत्न चुगाने हैं। सर्विस की भिन्न-भिन्न युक्तियां निकालनी हैं। सर्विस में बिजी रहने से ही अपार खुशी रहेगी।
गीत:-
प्रीतम आन मिलो....  
ओम् शान्ति।
बाप परमपिता को हमेशा रचयिता कहा जाता है। मनुष्य कह देते यह पशु पक्षी आदि सारी रचना वह रचते हैं। परन्तु समझाना चाहिए पहले-पहले मनुष्य की बात तो समझो। परमपिता जो रचता है वह मनुष्य सृष्टि कैसे रचते हैं। मनुष्य ही उनको बाप कह बुलाते हैं क्योंकि दु:खी हैं। सभी उस एक रचयिता को याद करते हैं। तो पहले-पहले यह समझाना है कि मनुष्य सृष्टि का रचयिता कौन है। वह रचयिता ही सबका बाप ठहरा। पहले-पहले बाप का परिचय देना है। आत्मा को न अपना, न बाप का परिचय है। अगर अहम् आत्मा का परिचय हो तो समझें कि हम किसकी सन्तान हैं! हम परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं। वह बाप रचयिता है तो जरूर पहले-पहले मनुष्य सृष्टि रचते होंगे, वह नई दुनिया अथवा स्वर्ग होगी। बाप जरूर स्वर्ग ही रचेंगे। बाप दु:ख के लिए रचना रचें, यह हो नहीं सकता। जबकि हम उस बाप के बच्चे हैं, जो बाप स्वर्ग रचता है तो हम भी वहाँ होने चाहिए या परमधाम में होने चाहिए। परन्तु हमको यहाँ पार्ट बजाने आना पड़ता है। यह है विचार सागर मंथन करने की युक्तियां। जितना समय मिले तो यही विचार सागर मंथन करना है। साधू सन्त आदि कोई भी यथार्थ रीति बाप को जानते नहीं हैं। रचयिता जरूर स्वर्ग ही रचेंगे तो फिर सब आत्मायें निर्वाणधाम में होनी चाहिए। वह निर्वाणधाम है हम सब आत्माओं का घर, जहाँ बाप भी रहते हैं। तुम बच्चों को बेहद के बाप से बुद्धियोग जोड़ने लिए मेहनत करनी पड़ती है। योग न होने के कारण ही फिर मनुष्य से पाप होते हैं या धारणा नहीं हो सकती है। बाप को याद नहीं करते। भगवान तो एक ही है। वह है मोस्ट बिलवेड स्वर्ग का रचयिता। वहाँ बहुत सुख है। यहाँ दु:ख होने के कारण ही भगवान को याद करते हैं। बाप बच्चों को सुख के लिए ही जन्म देते हैं। सतयुग त्रेता को कहा ही जाता है सुखधाम। अभी है कलियुग। इनके बाद फिर सतयुग आना है। तो जरूर बाप को भी आना चाहिए। ऐसे-ऐसे विचार सागर मंथन कर फिर कोई को बैठ समझाना चाहिए। यहाँ तुमको बाप का परिचय मिलता है बाप द्वारा। मनुष्य उस मोस्ट बिलवेड बाप को जानते नहीं। बाप को जानते ही नहीं तो अपने को उसके बच्चे भी समझते नहीं। हमने बाप को जाना है तो उनको याद करते हैं। वह बेहद का बाप है सभी आत्माओं का। वह निराकार इस साकार प्रजापिता द्वारा रचना रचते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा है, ब्राह्मण ब्राह्मणियां भी हैं। जरूर प्रजापिता ब्रह्मा का बाप परमपिता ही होगा, जिसको क्रियेटर कहा जाता है। कोई भी आते हैं तो पहले-पहले बाप का परिचय देना है। जब अल्फ याद पड़े तब फिर आगे समझ सकें। अल्फ बिगर कुछ भी समझ नहीं सकेंगे। वह भी समझाना ऐसे है जो मनुष्य समझें इन्हों की समझानी तो बड़ी एक्यूरेट दिखाई पड़ती है। ऐसे और तो कोई नहीं समझायेंगे कि वह बेहद का बाप स्वर्ग का रचयिता है। जरूर नर्क का भी रचयिता कोई होगा। पावन बनाने वाला एक बाप है तो जरूर पतित बनाने वाला भी कोई एक होगा। यह अच्छी रीति समझाना है। बाप कौन है जिसको हम याद करते हैं। रावण को तो याद नहीं करेंगे। मनुष्य तो न पावन बनाने वाले राम परमात्मा को जानते, न पतित बनाने वाले रावण को जानते, बिल्कुल ही अन्जान हैं। फार्म भराने समय भी पहले बाप का परिचय देना है। तुम्हारी आत्मा का बाप कौन है, यह प्रश्न और कोई पूछ न सके। आत्मा तो हर एक मनुष्य में है। जीव आत्मा, पाप आत्मा, पुण्य आत्मा कहा जाता है ना। पुण्य आत्मा तो बाप ही बनाते हैं फिर इनको पाप आत्मा कौन बनाते हैं? यह जरूर समझाना पड़े। बाप जो स्वर्ग का रचयिता है, जिसके हम सभी बच्चे हैं उनको तुम जानते हो? वह तो जरूर पावन दुनिया ही रचते होंगे? अभी है पतित दुनिया, इसलिए मनुष्य गाते भी हैं हे पतित-पावन आओ। इतने सब पतित मनुष्यों को पावन कौन बनाये? सर्वव्यापी है फिर तो यह बात नहीं उठती कि परमपिता परमात्मा आओ। सर्वव्यापी है फिर तो उसको याद करने की भी दरकार नहीं। अभी हम आपको बहुत अच्छी राय देते हैं। ब्रह्मा की राय तो मशहूर है ना। हम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण ब्राह्मणियां हैं। ब्रह्मा को भी राय देने वाला जरूर ऊंच होगा। ब्रह्मा वल्द परमपिता परमात्मा शिव। वह है आत्माओं का पिता। वह है प्रजापिता। तुम बच्चे सर्विस के लिए ऐसे-ऐसे विचार सागर मंथन करेंगे तो तुमको बहुत खुशी रहेगी। कोई आये तो उनको ज्ञान रत्न देने हैं। बाप आकर अविनाशी ज्ञान रत्न चुगाते हैं, जिससे हम विश्व के मालिक बनते हैं। फिर रावण आकर बेर चुगाते हैं। शिव का चित्र, देवताओं के चित्र सब पत्थर के ही हैं। पत्थर को पूजते-पूजते पत्थरबुद्धि बन जाते हैं। शिव का भी पत्थर का चित्र है। जरूर कोई समय शिवबाबा चैतन्य में आकर पढ़ाते होंगे। प्रजापिता ब्रह्मा भी होगा। ब्रह्माकुमारी सरस्वती भी होगी। अब प्रैक्टिकल में है। इनके लिए गायन है सबकी मनोकामना पूरी करने वाली। अविनाशी ज्ञान रत्न दान करने वाली गॉडेज आफ नॉलेज। उन्होंने फिर सरस्वती को बैन्जो दे दिया है। यह सब बातें बुद्धि में आनी चाहिए, जिसको भाषण करना है तो विचार सागर मंथन करना होता है। पहले भाषण लिख रिफाइन करना चाहिए। बड़े-बड़े स्पीकर्स जो होते हैं वह बहुत खबरदारी से बोलते हैं। बिल्कुल एक्यूरेट सुनाते हैं। जरा भी हिचका तो आबरू (इज्जत) चली जायेगी। पहले से ही पूरी प्रैक्टिस करते हैं। यहाँ भी इतना बुद्धि में रहना चाहिए जो किसको बाप का परिचय दे सको। सर्विस करनी है। विकारी गुरूओं की जंजीरों में बहुत फॅसे हुए हैं। वह कोई की सद्गति तो कर नहीं सकते। पतित-पावन निराकार भगवान को ही कहा जाता है। सर्वव्यापी के ज्ञान से तो कोई की सद्गति हुई नहीं है। पतित-पावन है एक शिवबाबा उनको रूद्र भी कहा जाता है। रूद्र यज्ञ भी मशहूर है। इतना बड़ा यज्ञ और कोई रच न सके। रूद्र ज्ञान यज्ञ कितने वर्ष चलता है? ज्ञान सुनाते ही रहते हैं। यज्ञ जब रचते हैं तो उसमें शास्त्र भी रखते हैं। रामायण, भागवत आदि की कथा सुनाते हैं, उसको रूद्र यज्ञ कहते हैं। वास्तव में रूद्र यज्ञ यह है। यह यज्ञ तो बहुत समय चलता है। उन्हों का तो करके मास भर यज्ञ चलेगा। यह तो देखो कितना समय चलता है। इसमें जो भी सब पुरानी चीजें हैं वह खत्म होनी हैं। यह सारी पुरानी दुनिया इसमें भस्म होनी है। कितना बड़ा यज्ञ है, ख्याल तो करो। जब सबके शरीर स्वाहा हो तब सभी आत्मायें वापिस परमधाम जायें। जब तक बाप न आये तो पतित से पावन कैसे बनें, माया की जंजीरों से लिबरेट कौन करे? कोई तो होना चाहिए ना। इसलिए खुद मालिक ही आते हैं। ऐसे नहीं सर्वव्यापी हो बैठकर ज्ञान देते हैं, वह तो आते हैं। हम उनकी सन्तान पोत्रे हैं। वास्तव में हो तुम भी। अब वह बाप आया हुआ है, अपना परिचय दे रहे हैं। स्वर्ग की स्थापना हो रही है। हम हैं राजयोग ऋषि, वह हैं हठयोग ऋषि। इस पर शायद एक कहानी भी सुनाते हैं कि फलाने ऋषि का वजन भारी है या राजऋषि का वज़न भारी है। वह हैं सब भक्ति मार्ग की बातें और यह है ज्ञान मार्ग। भक्ति और ज्ञान के तराजू की कुछ कथा है। एक तरफ हैं सब भक्ति के शास्त्र, दूसरे तरफ है एक ज्ञान की गीता। तो भारी एक गीता हो जाती है। गीता है राजऋषियों की, हठयोगियों के तो बहुत शास्त्र हैं। एक तरफ वह सब डालो दूसरे तरफ गीता डालो। वास्तव में वह भी कोई हमारी है नहीं। हमारी तो है ही ज्ञान की बात। गीता का भगवान आता ही है सद्गति करने के लिए। तो बच्चों की बुद्धि में यह सब रहना चाहिए। फिर कोई समझे न समझे, अपना फ़र्ज है हर एक को समझाना। मौत के समय सभी की आंखे खुलेंगी। इस ज्ञान यज्ञ से ही यह विनाश ज्वाला निकली है। अब तुम पाण्डवों का पति है परमपिता परमात्मा। पतितों को पावन बनाने वाला है ही एक परमात्मा न कि कृष्ण। वह तो प्रिन्स है। उनको कोई गॉड फादर नहीं कहेंगे। फादर तब कहा जाता है जब बच्चे पैदा करते हैं। कृष्ण तो खुद ही बच्चा है तो उसको फादर कैसे कहा जाए। लॉ नहीं कहता। कृष्ण के साथ फिर जोड़ी चाहिए। उनके बच्चे चाहिए तब फादर कहा जाए। वह तो फिर गृहस्थी हो गया। यहाँ तो निराकार बाप बैठ ज्ञान देते हैं। वह कभी गृहस्थ में आते नहीं, सदा पवित्र हैं। कृष्ण तो माता के गर्भ से जन्म लेते हैं तो उनको पतित-पावन कैसे कहेंगे। अभी तुम बच्चे जानते हो परमपिता परमात्मा को प्रजापिता ब्रह्मा के तन में ही आना है। प्रजापिता तो जरूर यहाँ ही होना चाहिए ना, इसलिए उनका नाम ब्रह्मा रख कहते हैं मैं इस साधारण तन में प्रवेश करता हूँ। यह 84 जन्म भोग अभी अन्तिम जन्म में है और वानप्रस्थ अवस्था में पूरा अनुभवी रथ है। अर्जुन के लिए भी कहते हैं ना बहुत गुरू किये थे। शास्त्र आदि पढ़े थे तो समझाना भी ऐसे चाहिए। प्रजापिता ब्रह्मा का नाम कभी सुना है? ब्रह्मा है तो जरूर पहले ब्राह्मण चाहिए। वर्ण भी मुख्य हैं। चक्र में भी वर्ण दिखाते हैं। ब्राह्मण कुल है सबसे छोटा। उन्हों के ज्ञान लेने का समय भी थोड़ा है। कितने थोड़े ब्राह्मण हैं। फिर उनसे जास्ती देवतायें, उनसे जास्ती क्षत्रिय, उनसे जास्ती वैश्य, शूद्र। तो तुम ब्राह्मण कितने थोड़े हो। इन थोड़ों में भी वह बहुत थोड़े हैं, जिनको सदैव खुशी का पारा चढ़ा रहता है। बाप ने समझाया है खुशी का पारा चढ़ेगा अमृतवेले। दिन को और रात को वायुमण्डल बहुत गन्दा रहता है, उस समय याद मुश्किल रहती है। अमृतवेले का समय गाया हुआ है। उसी समय सभी आत्मायें थक कर शरीर से डिटैच होकर सो जाती हैं। वह है शुभ महूर्त। यूं तो बाप की याद चलते फिरते दिल में रहनी चाहिए। बाकी हठ से एक जगह बैठ याद करेंगे तो ठहरेगी नहीं। ऋषि मुनि भक्त लोग भी अमृतवेले उठ कीर्तन आदि करते हैं क्योंकि उस समय शुद्ध वायुमण्डल रहता है। तो कोई भी आये उनको समझाना है कि हम पढ़ रहे हैं। इसमें कोई अन्धश्रधा की तो बात ही नहीं। निराकार बाप टीचर के रूप से हमको सहज राजयोग सिखा रहे हैं। तो मनुष्य आश्चर्य खायेंगे कि इन्हों को निराकार कैसे पढ़ाते हैं। भगवानुवाच भी बरोबर है तो जरूर शरीर में आकर राजयोग सिखाया होगा। कोई शरीर का लोन लिया होगा तो पहले युक्ति से बाप का परिचय देना चाहिए। सर्वव्यापी कहने से वर्सा क्या मिलेगा। जब तक भगवान के महावाक्य कानों पर न पड़े तब तक कोई समझ न सके। भगवान है निराकार, ब्रह्मा है साकार प्रजापिता, तुम हो ब्रह्माकुमार कुमारियां। निराकार परमात्मा ब्रह्मा तन से पढ़ाते हैं। हमारा एम आबजेक्ट है मनुष्य से देवता बनना। बाप का परिचय देंगे तो बाप की याद रहेगी। कोई-कोई लिखते हैं भगवान निराकार है, तो उनको समझाना चाहिए। कोई फिर लिखते हैं कि हम जानते ही नहीं, अरे तुम बाप को नहीं जानते हो? परमपिता परमात्मा कहते हो तो जरूर कोई तो होगा ना! बच्चे तो जानते हैं हम परमपिता परमात्मा से भविष्य जन्म-जन्मान्तर के लिए आजीविका प्राप्त करते हैं। इसमें जो विघ्न डालते हैं उन पर कितना पाप चढ़ता होगा। सो भी समझकर विघ्न डालते हैं! बेसमझ पर तो कोई दोष नहीं। वह तो सारी दुनिया बेसमझ है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार... इसके एक-एक अक्षर का अर्थ तुम बच्चे जानते हो। पहले-पहले मात-पिता फिर बापदादा। मात-पिता उनको कहा जाता जो स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। फिर यह हो गये बापदादा। फिर कहते जगदम्बा, यह बड़ी गुह्य बातें हैं। सबसे गुह्य पहेली यह है, जिसको समझने से मनुष्य को बहुत फ़ायदा हो जाए। फिर कहते हैं सिकीलधे, यह है दूसरी पहेली। फिर कहते हैं ब्राह्मण कुल भूषण, स्वदर्शन चक्रधारी - यह भी नई पहेली है। एक-एक बात में पहेली है। अच्छा!
स्वदर्शन चक्रधारी नूरे रत्नों प्रति यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अमृतवेले के शुभ महूर्त में बाप को बहुत प्यार से याद कर खुशी का पारा चढ़ाना है। चलते-फिरते भी याद का अभ्यास करना है।
2) पाप कर्मों से बचने वा ज्ञान की अच्छी धारणा करने के लिए एक बाप से बुद्धियोग जोड़ने की मेहनत करनी है।
वरदान:
सन्तुष्ट रहने और सर्व को सन्तुष्ट करने वाले शुभ भावना शुभ कामना सम्पन्न भव!
ब्राह्मण अर्थात् सदा सन्तुष्ट रहने और सर्व को सन्तुष्ट करने वाले इसलिए कुछ भी हो जाए, कोई कितना भी हिलाने की कोशिश करे लेकिन सन्तुष्ट रहना है और करना है - यह स्मृति रहे तो कभी गुस्सा नहीं आयेगा। यदि कोई बार-बार गलती करता है तो उसे परिवर्तन करने के लिए गुस्सा नहीं करो, बल्कि रहमदिल बनकर शुभ भावना, शुभ कामना की दृष्टि रखो तो वह सहज परिवर्तन हो जायेंगे।
स्लोगन:
परमात्म प्यार के अनुभवी बनो तो कोई भी रुकावट रोक नहीं सकती।