Saturday, March 3, 2018

03-03-18 प्रात:मुरली

03-03-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - सर्विस में कभी सुस्त नहीं बनना है, विचार सागर मंथन कर बाबा जो सुनाते हैं, उसे एक्ट में लाना है"
प्रश्न:
बाप किन बच्चों पर सदा ही राज़ी रहते हैं?
उत्तर:
जो अपनी सर्विस आपेही करते हैं। बाप को फालो करते हैं, सपूत हैं। बाप के बताये हुए रास्ते पर चलते रहते हैं। ऐसे बच्चों पर बाप राज़ी रहता है। बाबा कहते बच्चे कभी भी अपने ऊपर अकृपा नहीं करो। अपने को सावधान करने के लिए अपनी एम आबजेक्ट का चित्र पाकेट में रखो और बार-बार देखते रहो तो बहुत खुशी रहेगी। राजाई के नशे में रह सकेंगे।
गीत:-
ओम् नमो शिवाए...  
ओम् शान्ति।
जिसकी महिमा तुम बच्चे सुन रहे हो वह तुम्हारे सम्मुख बैठ तुमको राजयोग सिखा रहे हैं। जो कोई कुछ करके जाते हैं तो उनके पीछे उनकी महिमा गाई जाती है। जैसे शंकराचार्य अपने सन्यास धर्म को स्थापन करके गये हैं तो उनकी महिमा यहाँ ही अब जरूर होगी। सन्यासियों की डिनायस्टी नहीं कहेंगे। अन्य धर्मों में तो डिनायस्टी राजाओं की चलती है। सन्यासियों में राजाओं की डिनायस्टी नहीं चलती। जैसे क्रिश्चियन की राजाई चलती है। धर्म भी है, राजाई भी है। वैसे यह (देवताओं का) धर्म भी है और राजाई भी है, जिसके चित्र भी बने हुए हैं। नीचे राजयोग की तपस्या कर रहे हैं और ऊपर में राजाई का चित्र है। राजाई में तुम्हारा यहाँ का ही चित्र दिया जाता है। भविष्य का चित्र उसी नाम रूप वाला तो हाथ आ न सके। तुम जानते हो हम अभी राजयोग सीख रहे हैं। फिर ताज सहित राजाई करेंगे। वह नाम रूप आदि सब बदल जायेंगे। यह चित्र भी बच्चों को अपने पास रखना चाहिए। जो बच्चे समझते हैं हम भविष्य राजाई पद पायेंगे। हर एक जो भी ब्राह्मण कुल भूषण हैं और जिनको निश्चय है। निश्चय तो सभी को होता ही है। कहते हैं हम श्री नारायण को वरेंगे तो राजयोग का चित्र और ऊपर में राजाई का चित्र और उनके ऊपर शिवबाबा का चित्र हो। इस पर कान्ट्रास्ट दिखाया जाए - वह शंकराचार्य, यह है भगवान शिवाचार्य। यह ज्ञान का सागर है। शंकराचार्य ज्ञान सुनाने वाला ज्ञानवान है। वह किसलिए ज्ञान सुनाते हैं? हठयोगी कर्म सन्यासी बनाने। उनका चित्र ही अलग है। उनका आसन अलग होता है तो उनका भी चित्र बनाना चाहिए। हठयोगी आसन, गेरू कफनी, माथा मुड़ा हुआ.... ऐसे चित्र दिखाने चाहिए। तो कान्ट्रास्ट सिद्ध हो। उन्हों का पुनर्जन्म यहाँ ही होता है। इन बातों पर विचार सागर मंथन कर तुम बहुत काम वा सर्विस कर सकते हो। परन्तु विरला कोई ऐसा पुरुषार्थ करते हैं। माया सर्विस में बहुत सुस्त बनाती है, बहुत धोखा देती है। तो सन्यास धर्म का भी चित्र बनाए लिख देना चाहिए - शंकराचार्य द्वारा स्थापन किया हुआ हठयोग, कर्म सन्यास कब शुरू हुआ, कब पूरा होने वाला है। तुम कोई भी धर्म की तिथि, संवत सहित आयु निकाल सकते हो। सबका मठ पंथ अथवा धर्म पूरा एक ही समय होता है। तो ऐसी-ऐसी बातों पर विचार सागर मंथन कर फिर एक्ट में आना चाहिए। कान्ट्रास्ट दिखाना है। वह शंकराचार्य की स्थापना, यह भगवान शिवाचार्य की स्थापना। यह राजयोग आधाकल्प चलता है। शिवबाबा आते ही तब हैं जबकि हठयोग का विनाश हो और राजयोग की स्थापना होनी है। तो ऐसे युक्ति से चित्र बनाने चाहिए। वह हठयोग द्वापर से कलियुग अन्त तक चलता है। राजयोग की 21 जन्म राजधानी चलती है। फिर लिखना है - वह है हठयोग, उसमें घरबार छोड़ना पड़ता है, इसमें सारी पुरानी सृष्टि का सन्यास करना पड़ता है। अपने तो हर एक चित्र में लिखत है। और कोई के भी चित्र ऐसी लिखत से नहीं होते हैं। तुम तिथि-तारीख सभी जान सकते हो। तो घर में भी अपना राजयोग और राजाई का चित्र देख नशा चढ़ेगा। तुमको देवताओं के चित्र को हाथ जोड़ने की दरकार नहीं है। तुम तो स्वयं वह बनते हो। तो सामने चित्र देख खुशी का पारा चढ़ेगा और दिल दर्पण में अपना मुंह भी देखेंगे, हम ऐसे श्री नारायण को व श्री लक्ष्मी को वरने के लायक हैं? नहीं होंगे तो शर्म आयेगी। जो योग में रह विकर्म विनाश करते हैं, वही इतना ऊंच पद पा सकते हैं। यह है भविष्य के लिए पढ़ाई और सब पढ़ाईयां होती हैं इस दुनिया, इस जन्म के लिए। तुम्हारी भविष्य के लिए पढ़ाई है। यह बुद्धि में रहना चाहिए। मनुष्य जिनकी भक्ति करते हैं तो उनका चित्र पाकेट में रखते हैं। जैसे बाबा श्री नारायण का चित्र रखता था। परन्तु यह ज्ञान नहीं था कि हम ऐसे बनेंगे। अब तो जानते हैं हम यह बनेंगे। बाबा कहते हैं तुम नर से नारायण बन सकते हो। तो यह चित्र और सन्यासियों का भी चित्र पाकेट में पड़ा हो। मित्र सम्बन्धियों आदि को चित्र पर समझाने से वह बहुत खुश होंगे। उन पर भी रहम करना है। फिर कोई समझे या न समझे। अपना काम है हर एक को समझाना। हमको भगवान राजयोग सिखाते हैं, सिवाए उनके और कोई राजयोग से लक्ष्मी-नारायण बना नहीं सकता। तो चित्र देखने से खुशी का पारा चढ़ेगा।
मनुष्य नौकरी पर जाते हैं तो रास्ते में कहाँ मन्दिर देखते हैं तो हाथ जोड़ते हैं। वह है भक्ति। तुमको तो ज्ञान है, हम यह हैं। हम जगदम्बा के बच्चे हैं। जगदम्बा नर से नारायण बनाने का कर्तव्य करती है। तुम भी करते हो ना। तुम भी मास्टर जगदम्बा हो ना। तुम्हारा यादगार मन्दिर भी है। तुम चैतन्य यहाँ बैठे हो। समझानी ऐसी क्लीयर हो जो मनुष्य समझें। देलवाड़ा मन्दिर भी कितना अच्छा यादगार बना हुआ है, नीचे तपस्या के चित्र ऊपर में वैकुण्ठ बनाया है। कैसा अच्छा मन्दिर बना हुआ है। तो यह चित्र बनाकर अपने दफ्तर में भी रख सकते हो, जिससे यह स्मृति आयेगी। मनमनाभव और स्वदर्शन चक्र की भी स्मृति आयेगी। शिवबाबा हमको यह पढ़ाते हैं फिर हम यह राजा रानी बनेंगे। आपेही चित्र बनाए अपने को सावधान करते रहो। हम पुजारी से सो पूज्य बनते हैं 21 जन्मों के लिए, तो चित्र से अपनी भी सर्विस होगी, दूसरे को भी समझाने की सर्विस होगी। ऐसे बच्चों पर बाप भी राज़ी रहेगा। बच्चे फालो नहीं करेंगे, सपूत नहीं बनेंगे तो बाप नाराज़ होगा। कहेंगे बच्चे अपने ऊपर अकृपा करते हैं। बाप के बताये हुए रास्ते पर नहीं चलने से पद भ्रष्ट हो जायेगा। तो ऐसे-ऐसे चित्रों से भी तुमको बहुत अच्छी मदद मिलेगी। तुम बहुत अच्छी रीति किसको समझा सकेंगे। वह है हठयोग, यह है राजयोग। वह गुरू लोग तो यह राजयोग सिखला न सके। हम बेहद के सन्यासी हैं। सन्यास का अर्थ ही है 5 विकारों का सन्यास। वह पवित्र बनते हैं, जंगल में जाकर। हम गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रहते हैं इसलिए यह अलंकार विष्णु को दिखाते हैं। हम ऐसे बनते हैं, समझाने में बड़ी अच्छी चतुराई चाहिए, बाप भी चतुर है ना। तुम्हें फिर दैवीगुण भी धारण करने है। बहुत स्वीट टेम्पर (मिजाज़) होना चाहिए। बाप के टेम्पर को देखो कितना प्यारा है। भल उनको कालों का काल भी कहते हैं, परन्तु वह कड़ा थोड़ेही है। वह तो समझाते हैं मैं आकर सबको ले जाता हूँ, इसमें डरने की तो कोई बात ही नहीं। तुम बच्चों को गुल-गुल बनना है श्रीमत पर। तुम सब आत्माओं को भी पुराना शरीर छुड़ाए वापिस ले जाऊंगा। ड्रामा अनुसार तुमको जाना ही है। तुमको अब ऐसे कर्म सिखलाता हूँ, जो कर्म कूटना न पड़े फिर तुम सबको ले जाता हूँ। यह भी बतायेंगे - कैसे जाते हैं, कौन रहते हैं। आगे जब नजदीक होंगे तो सब बतायेंगे। जब तक जीते हैं नई-नई युक्तियां समझाते रहेंगे। बाप के डायरेक्शन पर अमल होता है तो बाप को खुशी होती है। सबको सर्विस में मदद मिलेगी। खुशी का पारा चढ़ेगा। बाबा युक्तियां तो बहुत बताते हैं। बड़े चित्र भी बनाए सेन्टर पर तुम रख सकते हो तो मनुष्य कान्ट्रास्ट देखें। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बच्चों को रूहानी बाप की नमस्ते।

रात्रि क्लास - 28-3-68

बाप ने समझाया है ऐसी प्रैक्टिस करो, यहाँ सब कुछ देखते हुए, पार्ट बजाते हुए बुद्धि बाप की तरफ लगी रहे। जानते हैं यह पुरानी दुनिया खत्म हो जानी है। इस दुनिया को छोड़ हमको अपने घर जाना है। यह ख्याल और कोई की बुद्धि में नहीं होगा। और कोई भी यह समझते नहीं। वह तो समझते हैं यह दुनिया अभी बहुत चलनी है। तुम बच्चे जानते हो हम अभी अपनी नई दुनिया में जा रहे हैं। राजयोग सीख रहे हैं। थोड़े ही समय में हम सतयुगी नई दुनिया में अथवा अमरपुरी में जायेंगे। अभी तुम बदल रहे हो। आसुरी मनुष्य से बदल दैवी मनुष्य बन रहे हो। बाप मनुष्य से देवता बना रहे हैं। देवताओं में दैवीगुण होते हैं। वह भी हैं मनुष्य, परन्तु उनमें दैवीगुण हैं। यहाँ के मनुष्यों में आसुरी गुण हैं। तुम जानते हो यह आसुरी रावणराज्य फिर नहीं रहेगा। अभी हम दैवीगुण धारण कर रहे हैं। अपने जन्म-जन्मान्तर के पाप भी योगबल से भस्म कर रहे हैं। करते हो वा नहीं वह तो हरेक अपनी गति को जानते। हरेक को अपने को दुर्गति से सद्गति में लाना है अर्थात् सतयुग में जाने लिये पुरुषार्थ करना है। सतयुग में है विश्व की बादशाही। एक ही राज्य होता है। यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के महाराजन हैं ना। दुनिया को इन बातों का पता नहीं है। वन-वन से इन्हों की राजाई शुरू होती है। तुम जानते हो हम यह बन रहे हैं। बाप अपने से भी बच्चों को ऊंच ले जाते हैं इसलिये बाबा नमस्ते करते हैं। ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा, ज्ञान लक्की सितारे। तुम लक्की हो। समझते हो बाबा बिल्कुल ठीक अर्थ सहित नमस्ते करते हैं। बाप आकर बहुत सुख घनेरे देते हैं। यह ज्ञान भी बड़ा वन्डरफुल है। तुम्हारी राजाई भी वन्डरफुल है। तुम्हारी आत्मा भी वन्डरफुल है। रचयिता और रचना के आदि मध्य अन्त का सारा नॉलेज तुम्हारी बुद्धि में है। तुमको आप समान बनाने लिये कितनी मेहनत करनी पड़ती है। हरेक की तकदीर है तो कल्प पहले वाली, फिर भी बाप पुरुषार्थ कराते रहते हैं। यह नहीं बता सकते कि आठ रत्न कौन बनेंगे। बताने का पार्ट ही नहीं है। आगे चल तुम अपने पार्ट को भी जान जायेंगे। जो जैसा पुरुषार्थ करेगा ऐसा भाग्य बनायेंगे। बाप है रास्ता बताने वाला। जितना जो उस पर चलेंगे। इनको तो सूक्ष्मवतन में देखते ही है, प्रजापिता ब्रह्मा यहाँ साथ में बैठा है। ब्रह्मा से विष्णु बनना सेकण्ड का काम है। विष्णु सो ब्रह्मा बनने में 5,000 वर्ष लगते हैं। बुद्धि से लगता है बात तो बरोबर ठीक है। भल त्रिमूर्ति बनाते हैं - ब्रह्मा-विष्णु-शंकर। परन्तु यह कोई नहीं समझते होंगे। अभी तुम समझते हो। तुम कितने पदमापदम भाग्यशाली बच्चे हो। देवताओं के पांव में पदम दिखाते हैं ना। पदमपति नाम भी बाला है। पद्मपति बनते भी गरीब साधारण ही हैं। करोड़पति तो कोई आते ही नहीं। 5-7 लाख वाले को साधारण कहेंगे। इस समय 20-40 हजार तो कुछ है नहीं। पदमपति कोई है सो भी एक जन्म के लिये। करके थोड़ा ज्ञान लेंगे। समझ कर स्वाहा तो नहीं करेंगे ना। सभी कुछ स्वाहा करने वाले थे जो पहले आये। फट से सभी का पैसा काम में लग गया। गरीबों का तो लग ही जाता है। साहूकारों को कहा जाता है अभी सर्विस करो। ईश्वरीय सर्विस करनी है तो सेन्टर खोलो, मेहनत भी करो। दैवीगुण भी धारण करो। बाप भी गरीब निवाज कहलाते हैं। भारत इस समय सभी से गरीब है। भारत की ही सभी से जास्ती आदमसुमारी है क्योंकि शुरू में आये हैं ना। जो गोल्डन एज में थे वही आयरन एज में आये हैं। एकदम गरीब बन पड़े हैं। खर्चा करते करते सभी खत्म कर दिया है। बाप समझाते हैं अभी तुम फिर से देवता बन रहे हो। निराकार गाड तो एक ही है। बलिहारी एक की है, दूसरों को समझाने की तुम कितनी मेहनत करते हो। कितने चित्र बनाते हो। आगे चलकर अच्छी रीत समझते जायेंगे। ड्रामा की टिक टिक तो चलती रहती है। इस ड्रामा की टिक टिक को तुम जानते हो। सारी दुनिया की एक्ट हूबहू एक्युरेट कल्प कल्प रिपीट होती रहती है। सेकण्ड बाई सेकण्ड चलती रहती है। बाप यह सभी बातें समझाते फिर भी कहते हैं मन्मनाभव। बाप को याद करो। कोई पानी वा आग से पार हो जाते हैं उससे फायदा क्या। इससे कोई आयु थोड़ेही बड़ी हो जाती है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों को बाप दादा का याद प्यार गुडनाईट।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपना मिजाज (टैम्पर) बहुत स्वीट बनाना है। श्रीमत पर बाप समान प्यारा बन स्वयं को गुलगुल (फूल) बनाना है।
2) अपने ऊपर आपेही कृपा करनी है। अपने को सावधान करने के लिए एम-आबजेक्ट को सामने रखना है। मित्र-सम्बन्धियों पर भी रहम करना है।
वरदान:
अपनी उदारता द्वारा सर्व को अपने पन का अनुभव कराने वाले बाप समान सर्वंश त्यागी भव
सर्व-वंश त्यागी वह है जिसका संकल्प, स्वभाव, संस्कार, नेचर बाप समान है। जो बाप का स्वभाव वही आपका हो, संस्कार सदा बाप समान स्नेह, रहम और उदारता के हों, जिसे ही बड़ी दिल कहते हैं। बड़ी दिल अर्थात् सर्व अपनापन अनुभव हो। बड़ी दिल में तन, मन, धन, संबंध में सफलता की बरक्कत होती है। छोटी दिल वाले को मेहनत ज्यादा, सफलता कम होती है। बड़ी दिल, उदार दिल वाले ही बाप समान बनते हैं, उन पर साहेब राज़ी रहता है।
स्लोगन:
परिपक्व बनने के लिए परीक्षाओं को गुड-साइन समझ हर्षित रहो।