Thursday, August 3, 2017

मुरली 4 अगस्त 2017

04-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे - तुम इस बेहद लीला रूपी नाटक को जानते हो, तुम हो हीरो पार्टधारी तुम्हें बाप ने आकर अभी जागृत किया है”
प्रश्न:
बाप का फरमान कौन सा है? जिसे पालन करने से विकारों की पीड़ा से बच सकते हैं?
उत्तर:
बाप का फरमान है - पहले 7 रोज भठ्ठी में बैठो। तुम बच्चों के पास जब कोई आत्मा 5 विकारों से पीडित आती है तो उसे बोलो कि 7 रोज का टाइम चाहिए। कम से कम 7 रोज दो तो तुम्हें हम समझायें कि 5 विकारों की बीमारी कैसे दूर हो सकती है। जास्ती प्रश्न-उत्तर करने वालों को तुम बोल सकते हो कि पहले 7 रोज का कोर्स करो।
गीत:
ओम् नमो शिवाए....   
ओम् शान्ति।
बच्चों ने बाप की महिमा सुनी। यह जो बेहद की लीला रूपी नाटक है, उनकी लीला के आदि मध्य अन्त को तुम बच्चे जानते हो। वो लोग समझते हैं कि ईश्वर की माया अपरमअपार है। अब तुम्हारी बुद्धि में जागृति आई है और तुम सारी बेहद की लीला को जान चुके हो। परन्तु यथार्थ रीति जैसे बाप समझा रहे हैं ऐसे बच्चे नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार ही समझा सकते हैं। मनुष्य उन एक्टर्स को देखने के लिए उनके पिछाड़ी भागते हैं। तुम समझते हो यह बेहद का ड्रामा है, जो दुनिया के मनुष्य नहीं जानते। गाया जाता है मनुष्य कुम्भकरण की आसुरी नींद में सोये पड़े हैं। अब रोशनी मिली है तब तुम जागे हो। यह भी कहेंगे हम तुम सब सोये पड़े थे। अभी तुमको पुरूषार्थ करना है। वह तो कह देते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है। वह अपने से ऐसी-ऐसी बातें कर न सकें। अपने से तुमको बातें करनी हैं। हम आत्मायें बाप से मिली हैं, बाप ने कितना जागृत किया है। यह बेहद की लीला है। उसमें मुख्य एक्टर्स, डायरेक्टर, क्रियेटर कौन हैं, वह जानते हैं इसलिए तुम पूछते हो इस नाटक में कौन-कौन मुख्य एक्टर हैं। शास्त्रों में लिख दिया है कौरव सेना में कौन बड़े हैं, पाण्डव सेना में कौन बड़े हैं। यहाँ फिर है बेहद की बात। मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन के आदि मध्य अन्त को जानना है। ब्रह्मा और विष्णु का पार्ट यहाँ चलता है। विष्णु का रूप है एम-आब्जेक्ट। यह पद पाना है। गाते भी हैं ब्रह्मा देवता नम:... फिर कहते हैं शिव परमात्माए नम:, उनको निराकार ही कहते हैं। परमपिता परमात्मा कहते हैं तो बाप हुआ ना! सिर्फ परमात्मा कह देने से पिता अक्षर नहीं आता तो सर्वव्यापी कह देते हैं इसलिए मनुष्यों को कुछ समझ में नहीं आता, जैसे तुम भी नहीं समझते थे। बाप आकर पतितों को पावन बनाते हैं, यह किसको पता नहीं है। तुम बच्चे अभी कितने समझदार बन गये हो। आदि से लेकर अन्त तक तुम सब कुछ जान गये हो। ड्रामा देखने जो पहले जायेंगे तो जरूर आदि मध्य अन्त सारा देखेंगे और बुद्धि में रहेगा हमने यह-यह देखा है। फिर भी चाहना हो देखने की तो देख सकते हैं। वह तो हुआ हद का नाटक। तुम तो बेहद के नाटक को जान गये हो। सतयुग में प्रालब्ध जाकर पायेंगे। फिर यह नाटक भूल जायेगा। फिर समय पर यह ज्ञान मिलेगा। तो यह भी समझने की बातें हैं। कोई भी बात में प्रश्न-उत्तर करने की दरकार नहीं रहती। 7 रोज भठ्ठी के लिए कहा जाता है। परन्तु 7 रोज बैठना भी बड़ा मुश्किल है। सुनने से ही घबरा जाते हैं। समझाया जाता है - यह क्यों कहा जाता है? क्योंकि आधाकल्प से तुम रोगी बने हो। 5 विकारों रूपी भूत लगे हुए हैं, अब उनसे तुम पीडित हो। तुमको युक्ति बतलायेंगे कि कैसे इस पीड़ा से छूट सकते हो। बाप को याद करना है, जिससे तुम्हारी पीड़ा हमेशा के लिए खत्म हो जायेगी। बाप का फरमान है कि 7 रोज भठ्ठी में बैठना है। गीता भागवत का पाठ रखते हैं तो भी 7 रोज बिठाते हैं। यह भठ्ठी है। सब तो नहीं बैठ सकते। कोई कहाँ, कोई कहाँ हैं। आगे चलकर बहुत वृद्धि को पायेंगे। यह सब है रूद्र ज्ञान यज्ञ की शाखायें। जैसे बाप के बहुत नाम रखे हैं, वैसे इस रूद्र ज्ञान यज्ञ के भी बहुत नाम रख दिये हैं। रूद्र कहा जाता है परमपिता परमात्मा को, सो तुम जानते हो। राजस्व अश्वमेध अर्थात् यह रथ इस यज्ञ में स्वाहा करना है। बाकी जाकर आत्मायें रहती हैं। सबके शरीर स्वाहा होने हैं। होलिका होती है ना। विनाश के समय सबके शरीर इस यज्ञ में स्वाहा होंगे। सबके शरीरों की आहुति पड़नी है। परन्तु तुम बाप से पहले वर्सा लेते हो। जाना तो सभी को है। रावण का बहुत बड़ा परिवार है। तुम्हारा है सिर्फ दैवी परिवार छोटा। आसुरी परिवार तो कितना बड़ा है। वह कोई देवता बनने वाले नहीं हैं। जो और धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं वह निकल आयेंगे। परमपिता परमात्मा ब्रह्मा मुख द्वारा मुख वंशावली रचते हैं। बाबा ने समझाया है पहले हमेशा स्त्री को एडाप्ट करते हैं, फिर रचना रचते हैं। वह तो है - कुख वंशावली। यह सारी रचना है मुख वंशावली। तुम उत्तम ठहरे क्योंकि तुम श्रेष्ठाचारी बनते हो। तुमको सिर्फ बाप को ही याद करना है क्योंकि ब्राह्मणों को बाप के पास ही जाना है। तुम जानते हो वापिस घर जाकर फिर सतयुग में आकर पार्ट बजाना है सुख का। बहुत लोग समझते भी हैं फिर भी 7 रोज देते नहीं हैं। तो समझा जाता है यह अपने घराने का अनन्य नहीं है। अनन्य होंगे तो उनको बड़ा अच्छा लगेगा। कई 5-8- 15 दिन भी रह जाते हैं। फिर संग न मिलने कारण गुम हो जाते हैं। विनाश नजदीक आयेगा तो सबको यहाँ आना ही है। राजधानी स्थापना होनी ही है। नम्बरवार जैसे कल्प पहले पुरूषार्थ किया है वह अभी भी करेंगे। तुम्हारी बुद्धि में है हम बाप से वर्सा ले रहे हैं पुरूषार्थ अनुसार। जितना हम याद करेंगे कर्मातीत बनेंगे, उतना ऊंच पद पायेंगे। पहले-पहले सृष्टि सतोप्रधान थी। अब तो तमोप्रधान है। भारत को ही प्राचीन कहते हैं। तुम जानते हो हम सो देवता थे फिर 84 जन्म पास किये। अब फिर बाप के पास आये हैं वर्सा लेने। बाप आये हैं पावन बनाने। पतित बनाता है रावण। हम बेहद के मुख्य आलराउन्ड पार्टधारी हैं। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी... चक्र लगाकर अब सूर्यवंशी से फिर ब्राह्मण वर्ण में आये हैं। ब्राह्मण तो जरूर चाहिए ना। ब्राह्मण हैं चोटी। ब्राह्मण चोटी रखवाते हैं। देवता धर्म भी बड़ा है। यह तो बुद्धि में है ना। हम बेहद ड्रामा में आलराउन्ड पार्ट बजाने वाले हैं। यह वर्ण भारत के लिए ही गाये गये हैं। अक्सर करके विष्णु को ही दिखाते हैं। उसमें शिवबाबा और ब्राह्मणों की चोटी उड़ा दी है। वह दिखाते नहीं हैं। अभी तुम्हारी बुद्धि में 84 जन्मों का राज बैठा हुआ है। तुम कितने जन्म लेते हो, दूसरे धर्म वाले कितने जन्म लेते हैं। एक जैसे जन्म तो नहीं ले सकते। पीछे आने वालों के जन्म कम हो जायेंगे। पहले-पहले आने वालों के ही 84 जन्म कहेंगे। सब थोड़ेही सूर्यवंशी में आयेंगे। यह भी हिसाब है, इनको डिटेल कहा जाता है। बहुत बच्चे भूल जाते हैं। स्कूल में भी फर्स्ट, सेकेण्ड ग्रेड तो रहती है ना। पहली-पहली नजर टीचर की फर्स्ट ग्रेड वालों की तरफ ही जायेगी। तो तुम्हारी बुद्धि में सारी रोशनी है। बाकी एक-एक की डिटेल में तो जा नहीं सकते। मुख्य धर्मों का समझाया जाता है। सारे ड्रामा की लीला को बुद्धि में रखते हुए फिर भी तुम समझते हो कि हमको अब वापिस लौटना है। जब हम कर्मातीत अवस्था को पायेंगे तब ही गोल्डन एज के लायक बनेंगे। बाप को याद करने से हमारी आत्मा पवित्र बन जायेगी, फिर चोला भी पवित्र मिलेगा। बाप को याद करते-करते हम गोल्डन एज में चले जायेंगे। अपना टैम्प्रेचर देखना होता है, जितना ऊंच जायेंगे उतना खुशी का पारा चढ़ेगा। नीचे उतरने से खुशी का पारा भी नीचे उतर जाता है। सतोप्रधान से नीचे उतरते-उतरते अब बिल्कुल ही तमोप्रधान बन पड़े हो। अब बाप समझा रहे हैं फिर भी माया घड़ी-घड़ी भुला देती है। यह है माया से युद्ध। माया के वश बहुत हो जाते हैं। बाप कहते हैं सच्ची दिल पर साहेब राजी होगा। कितनी अबलायें बाप की याद में सच्ची दिल से रहती हैं। प्रतिज्ञा की हुई है कि हम विकार में कभी नहीं जायेंगे। विघ्न तो बहुत पड़ते हैं। प्रदर्शनी आदि में कितना विघ्न डालते हैं। बड़े फखुर से आते हैं, इसलिए सम्भाल भी बहुत करनी है। मनुष्यों की वृत्ति बहुत खराब रहती है। पंचायती राज्य है ना। फिर सतयुग में होते हैं 100 परसेन्ट रिलीजस, राइटियस, लॉ फुल, सालवेंट, डीटी गवर्मेन्ट। तो तुम बच्चों को बड़ी मेहनत करनी है, चित्र भी बहुत बनते रहते हैं। इतना बड़ा चित्र हो जो मनुष्य दूर से ही पढ़ सकें। यह बहुत समझने और समझाने की बात है, जिससे मनुष्य समझें कि बरोबर हम स्वर्गवासी थे, अब नर्कवासी बने हैं, फिर पावन बनना है। ड्रामा का राज भी समझाना है। यह चक्र कैसे फिरता है, कितना समय लगता है। हम ही विश्व के मालिक थे, आज तो एकदम कंगाल बन पड़े हैं। रात-दिन का फर्क है। यह भी अपने विकर्मों का फल है जो भोगना पड़ता है। अब बाप कर्मातीत अवस्था बनाने आये हैं। भारत क्या था, अब क्या है। अब इस युद्ध में सारी दुनिया स्वाहा होनी है। यह भी तुम बच्चे जानते हो। बाप कहते हैं खूब पुरूषार्थ कर महाराजा महारानी बनकर दिखाओ। चित्रों पर बहुत अच्छी रीति समझाना है। बुद्धि में यही याद रहे कि हम कितना ऊंच थे फिर कितना नीचे गिरे हैं। गिरे हुए तो बहुत तुम्हारे पास आयेंगे। गणिकाओं, अहिल्याओं को भी उठाना है। उन्हों को जब तुम उठाओ तब ही तुम्हारा नाम बाला होगा। अब तक किसकी बुद्धि में बैठता नहीं है। देहली से आवाज निकलना चाहिए, वहाँ झट नाम होगा। परन्तु अजुन देरी दिखाई देती है। अबलाओं, गणिकाओं को बाप कितना ऊंच आकर उठाते हैं। तुम ऐसे-ऐसे का जब उद्धार करेंगे तब नाम बाला होगा। बाबा कहते हैं ना - अभी तक आत्मा अजुन रजो तक आई है, अभी सतो तक आना है। बाबा तो कहते हैं कुछ करके दिखाओ। तुम बच्चों को तो बहुत सर्विस करनी है। परन्तु चलते-चलते कोई न कोई ग्रहचारी बैठ जाती है। कमाई में ग्रहचारी होती है ना। माया बिल्ली बेहोश कर देती है। गुलबकावली का खेल है ना। बच्चे तो खुद समझ सकते हैं कि बापदादा के दिल पर कौन चढ़ सकते हैं। संशय की कोई बात नहीं। कई प्रश्न पूछते हैं - यह कैसे हो सकता है? अरे तुम साक्षी होकर देखो। ड्रामा में जो नूँध है सो पार्ट चलना है। ड्रामा के पट्टे से गिर पड़ते हैं। जिनको समझ में आता है वह नहीं गिरते हैं। तुम क्यों गिरते हो, ड्रामा में जो नूँध है वही होता है ना। भारत में हजारों को साक्षात्कार होता है। यह क्या है? इतनी आत्मायें निकलकर आती हैं क्या? यह सब ड्रामा का खेल समझने का है, इसमें संशय की बात नहीं हो सकती। कितने संशय में आकर पढ़ाई छोड़ देते हैं। अपना ही खाना खराब करते हैं। कोई भी हालत में संशयबुद्धि नहीं बनना है। बाप को पहचाना फिर बाप में संशय आ सकता है क्या? बच्चे जानते हैं हम पतित-पावन बाप के पास जाते हैं, पावन बनकर। तो गाया हुआ है - पतित-पावन को आना है और पतितों को पावन बनाना है। जो बनेंगे वही पवित्र दुनिया में चलेंगे और अमर बनेंगे। बाकी जो पवित्र नहीं बनेंगे वह अमर नहीं होंगे। तुम अमर दुनिया के मालिक बनते हो। बाप कितना ऊंच वर्सा देते हैं। पवित्र ऐसा बनते हैं जो फिर 21 जन्म पवित्र रहते हैं। सन्यासी तो फिर भी विकार से जन्म लेते हैं। अमरपुरी के लायक नहीं बनते हैं। अमरपुरी का लायक बाबा बनाते हैं। यह अमरकथा पार्वतियों को अमरनाथ बाबा शिव ही सुना रहे हैं। बच्चे आये हैं बेहद बाबा के पास, वर्सा तो लेना ही है ना। यहाँ सागर के पास आते ही हो रिफ्रेश होने के लिए। फिर जाकर आप समान बनाना है। तो बच्चों का भी यही धन्धा हुआ। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमर्निङ। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) किसी भी बात में संशय नहीं उठाना है। ड्रामा को साक्षी हो देखना है। कभी भी अपना रजिस्टर खराब नहीं करना है।
2) कर्मातीत अवस्था तक पहुँचने के लिए याद में रहने का पूरा पुरूषार्थ करना है। सच्चे दिल से बाप को याद करना है। अपनी स्थिति का टैम्प्रेचर अपने आप देखना है।
वरदान:
सम्पन्नता के आधार पर सन्तुष्टता का अनुभव करने वाले सदा तृप्त आत्मा भव
जो सदा भरपूर वा सम्पन्न रहते हैं, वे तृप्त होते हैं। चाहे कोई कितना भी असन्तुष्ट करने की परिस्थितियां उनके आगे लाये लेकिन सम्पन्न, तृप्त आत्मा असन्तुष्ट करने वाले को भी सन्तुष्टता का गुण सहयोग के रूप में देगी। ऐसी आत्मा ही रहमदिल बन शुभ भावना और शुभ कामना द्वारा उनको भी परिवर्तन करने का प्रयत्न करेगी। रूहानी रॉयल आत्मा का यही श्रेष्ठ कर्म है।
स्लोगन:
याद और सेवा का डबल लॉक लगाओ तो माया आ नहीं सकती।