Wednesday, June 7, 2017

मुरली 8 जून 2017

08-06-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– देह सहित इन आंखों से जो कुछ देखते हो– उसे भूल एक बाप को याद करो क्योंकि अब यह सब खत्म होने वाला है।”
प्रश्न:
सतयुग में राज्य पद की लाटरी विन करने का पुरूषार्थ क्या है?
उत्तर:
सतयुग में राज्य पद लेना है तो अपने ऊपर पूरी नजर रखो। अन्दर कोई भी भूत न रहे। अगर कोई भी भूत होगा तो लक्ष्मी को वर नहीं सकेंगे। राजा बनने के लिए प्रजा भी बनानी है। 2- यहाँ ही रोना प्रूफ बनना है। किसी देहधारी की याद में शॉक आया, शरीर छूटा तो पद भ्रष्ट हो जायेगा इसलिए बाप की याद में रहने का पुरूषार्थ करना है।
गीत:
आज नहीं तो कल...   
ओम् शान्ति।
शिवबाबा कहते हैं ओम् शान्ति फिर इनकी आत्मा भी कहेगी– ओम् शान्ति। वह है परमात्मा, यह है प्रजापिता। इनकी आत्मा कहती है ओम् शान्ति। बच्चे भी कहते हैं ओम् शान्ति। अपने स्वधर्म को जानना होता है ना। मनुष्य तो अपने स्वधर्म को भी नहीं जानते हैं। ओम् शान्ति अर्थात् अहम् आत्मा शान्त स्वरूप हैं। आत्मा है मन बुद्धि सहित। यह भूलकर मन का नाम ले लेते हैं। अगर कहें आत्मा को शान्ति कैसे मिले तो बोलो, वाह यह भी प्रश्न है? आत्मा तो स्वयं शान्त स्वरूप है, शान्तिधाम में रहने वाली है। शान्ति तो वहाँ मिलेगी ना। आत्मा शरीर छोड़ चली जायेगी, तब शान्ति में रहेगी। यह तो सारी दुनिया है, इसमें आत्माओं को पार्ट बजाना है। शान्त कैसे रहेंगे। काम करना है। मनुष्य शान्ति के लिए कितना भटकते हैं। उनको यह पता नहीं है कि हम आत्माओं का स्वधर्म शान्त है। अब तुमको आत्मा के धर्म का पता है। आत्मा बिन्दी मिसल है। बाप ने समझाया है सब कहते हैं निराकार परमात्माए नम:। परमपिता उनको ही कहा जाता है। वह तो है निराकार। उनको शिव परमात्माए नम: कहा जाता है। अब तुम्हारा बुद्धियोग उस तरफ है। मनुष्य तो सब देह-अभिमानी हैं। उनका योग बाप तरफ नहीं। तुम बच्चों को हर बात समझाई जाती है। गाते भी हैं ब्रह्मा देवताए नम:, ब्रह्मा का नाम लेकर ऐसा कभी नहीं कहेंगे– ब्रह्मा परमात्माए नम:। एक को ही परमात्मा कहा जाता है। वह है रचयिता। तुम जानते हो हम हैं शिवबाबा के बच्चे। उसने हमको ब्रह्मा द्वारा क्रियेट किया है, अपना बनाया है। ब्रह्मा की आत्मा को भी अपना बनाया है, वर्सा देने के लिए। ब्रह्मा की आत्मा को भी कहते हैं मुझे याद करो। बी.के. को भी कहते हैं मामेकम् याद करो। देह का अभिमान छोड़ दो। यह ज्ञान की बातें हैं। 84 जन्म लेते-लेते अब यह शरीर जड़जड़ीभूत हो गया है। बीमार रोगी हो गया है। तुम बच्चे कितने निरोगी थे, सतयुग में कोई भी रोग नहीं था। एवरहेल्दी थे। कभी देवाला नहीं मारते थे। अभी से ही अपना वर्सा 21 जन्मों के लिए ले लेते हैं, इसलिए देवाला मार न सकें। यहाँ तो देवाला मारते ही रहते हैं। बच्चों को समझाया-गाते भी हैं परमपिता परमात्मा शिवाए नम:, ब्रह्मा को परमात्मा नहीं कहेंगे। उनको प्रजापिता कहा जाता है। देवतायें सूक्ष्मवतन में हैं। यह कोई को पता नहीं है कि यह प्रजापिता ही फिर जाकर फरिश्ता बनता है। सूक्ष्मवतन वासी बनता है अर्थात् सूक्ष्म देहधारी। अब बच्चों को बाप ने समझाया है मामेकम् याद करो। तुम भी निराकार हो, हम भी निराकार हैं। मामेकम् याद करना है और जो भी देहधारी हैं उनसे बुद्धियोग हटाना है। देह सहित इन आंखों से जो कुछ देखते हो सब खत्म होने वाला है। फिर तुमको जाना है– सुखधाम वाया शान्तिधाम। उस सुखधाम अथवा कृष्णपुरी की ही तुमको चाहना रहती है। तो बाप कहते है शान्तिधाम सुखधाम को याद करो। भल सतयुग में भी पवित्रता सुख शान्ति रहती है, परन्तु उनको शान्तिधाम नहीं कहेंगे। कर्म तो सबको करना है। राजाई करनी है। सतयुग में भी कर्म करते हैं परन्तु वह विकर्म नहीं बनता क्योंकि वहाँ माया ही नहीं। यह तो सहज समझने की बात है। ब्रह्मा का दिन है, दिन में धक्का नहीं खाया जाता। रात अन्धेरे में धक्के खाये जाते हैं। तो आधाकल्प भक्ति, ब्रह्मा की रात। आधाकल्प ब्रह्मा का दिन। बाबा ने बताया– एक स्थान पर 6 मास दिन, 6 मास रात होती है। परन्तु वह बात कोई शास्त्रों में नहीं गाई जाती। यह ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात शास्त्रों में गाई हुई है। अब विष्णु की रात क्यों नहीं कहते! वहाँ उनको यह ज्ञान ही नहीं। ब्राह्मणों को मालूम है– ब्रह्मा और ब्रह्माकुमार कुमारियों के लिए यह बेहद का दिन और रात है। शिवबाबा का दिन और रात नहीं कहेंगे। बच्चे जानते हैं हमारा आधाकल्प दिन फिर आधाकल्प रात है। खेल भी ऐसा है, प्रवृत्ति मार्ग वालों को सन्यासी नहीं जानते। वह तो निवृत्ति मार्ग वाले हैं। वह स्वर्ग और नर्क की बात नहीं जानते। वह तो कहते स्वर्ग कहाँ से आया क्योंकि शास्त्रों में सतयुग को भी नर्क बना दिया है। अब बाप बहुत मीठी-मीठी बातें सुनाते हैं। कहते हैं बच्चे मैं निराकार ज्ञान का सागर हूँ। मेरा पार्ट ज्ञान देने का इस समय इमर्ज होता है। बाप अपना परिचय देते हैं। भक्ति मार्ग में मेरा ज्ञान इमर्ज नहीं होता है। उस समय सारा रसम-रिवाज भक्ति मार्ग का चलता है। ड्रामा अनुसार जो भक्त जिस भावना से पूजा करते हैं उनको साक्षात्कार कराने मैं निमित्त बना हुआ हूँ। उस समय मेरी आत्मा में ज्ञान का पार्ट इमर्ज नहीं है। वह अभी इमर्ज हुआ है। जैसे तुम्हारा 84 जन्मों का रील भरा हुआ है। मेरा भी जो जो पार्ट ड्रामा में जब नूंधा हुआ है, वह उसी समय बजता है। इसमें संशय की बात नहीं। अगर मेरे में ज्ञान इमर्ज होता तो भक्ति मार्ग में भी किसको सुनाता। लक्ष्मी-नारायण को वहाँ यह ज्ञान है ही नहीं। ड्रामा में नूंध ही नहीं। मनुष्य मात्र को अगर कोई कहते कि हमको फलाना गुरू सद्गति देते हैं। परन्तु गुरू लोग सद्गति कैसे देंगे? उनका भी तो पार्ट है और कोई कहते हैं बरोबर दुनिया रिपीट होती रहती है। यह चक्र फिरता रहता है। उन्होंने फिर चर्खा रख दिया है। सृष्टि का चक्र है। वन्डर देखो, चर्खा फिराने से पेट पूजा होती है। यहाँ इस सृष्टि चक्र को जानने से 21 जन्मों के लिए तुमको प्रालब्ध मिलती है। बाबा यथार्थ रीति अर्थ बैठ सुनाते हैं। बाकी सब अयथार्थ सुनाते हैं। तुम्हारी बुद्धि का ताला खुला हुआ है। ऊंचे ते ऊंच है भगवान फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर हैं सूक्ष्मवतनवासी। फिर स्थूल वतन में पहले लक्ष्मी-नारायण फिर जगत अम्बा, जगतपिता हैं। वह संगम के हैं। हैं तो मनुष्य ही। भुजायें आदि कुछ भी हैं नहीं। ब्रह्मा को भी दो भुजा हैं। भक्ति मार्ग के चित्रों में कितनी भुजायें दे दी हैं। अगर किसको आठ भुजा हो तो आठ टांगे भी होनी चाहिए। ऐसे तो होता नहीं। रावण को दस शीश दिखाते हैं तो टांगे भी 20 देनी चाहिए। यह सब है गुडि़यों का खेल। कुछ भी समझते नहीं। रामायण जब सुनाते हैं तो बहुत रोते हैं। बाप समझाते हैं– यह सब है भक्ति मार्ग, जब से तुम वाम मार्ग में गये हो तब से काम चिता पर बैठ तुम काले बन गये हो। अब एक जन्म में ज्ञान चिता का हथियाला बांधने से 21 जन्म के लिए वर्सा मिलता है। वहाँ आत्म-अभिमानी रहते हैं। एक पुराना शरीर छोड़ दूसरा नया ले लेते हैं। रोने आदि की बात नहीं रहती। यहाँ बच्चा पैदा होगा तो बधाई देंगे। धूमधाम से मनायेंगे। कल बच्चा मर गया तो या हुसैन मचा देंगे। दु:खधाम है ना। जानते हो भारत पर ही सारा खेल है। भारत अविनाशी खण्ड है। उनमें ही सुख दु:ख, नर्क स्वर्ग का वर्सा होता है। हेविनली गॉड फादर ने ही जरूर हेविन स्थापना किया होगा। लाखों वर्ष की बात हो तो कोई को याद भी कैसे पड़े। किसको भी पता नहीं है– स्वर्ग फिर कब होगा! कह देते हैं कलियुग की आयु अभी चालीस हजार वर्ष है। अब चालीस हजार वर्ष में कितने जन्म लेने पड़े! जबकि पांच हजार वर्ष में 84 जन्म हैं। अब तुम बच्चों की समझ में आता है। तुम रोशनी में हो। बाकी जिनको ज्ञान नहीं, वह अज्ञान नींद में सोये पड़े हैं। अज्ञान अन्धियारी रात है अर्थात् सृष्टि चक्र का ज्ञान नहीं है। हम एक्टर हैं, यह सृष्टि चक्र के चार भाग हैं। इन बातों को मनुष्य ही जानेंगे। अभी तुम बच्चे जानते हो, बाप नॉलेजफुल है। उनमें जो जो खूबियाँ हैं, वह सब तुमको दान देते हैं। ज्ञान के सागर से तुम वर्सा लेते हो। बाबा हमेशा कहते हैं देहधारी को याद नहीं करो। भल मैं भी देह द्वारा सुनाता हूँ। परन्तु याद तुम मुझ निराकार को ही करना। याद करते रहेंगे तो धारणा भी होगी, बुद्धि का ताला भी खुलेगा। 15 मिनट वा आधा घण्टा से शुरू करो फिर बढ़ते रहो। पिछाड़ी के समय सिवाए एक बाप के कोई की याद न रहे इसलिए सन्यासी सब कुछ छोड़ देते हैं। तपस्या में बैठते हैं, जब शरीर छोड़ते हैं उस समय आसपास का वायुमण्डल भी शान्ति का हो जाता है। जैसे कोई शहर में कोई महापुरूष ने शरीर छोड़ा है। तुमको तो अब ज्ञान है। आत्मा अविनाशी है, वह लीन हो न सके। उनमें तो यह ज्ञान नहीं है। बाबा समझाते हैं आत्मा कभी विनाश होती नहीं। उनमें जो ज्ञान है वह भी कभी विनाश नहीं होता। इम्प्रैसिबुल ड्रामा है। सतयुग त्रेता द्वापर कलियुग... यह चक्र फिरता रहता है। तुम फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हो फिर नम्बरवार और धर्म वाले भी आते हैं। गॉड फादर इज वन। सतयुग से कलियुग तक वृद्धि को पाते रहते हैं, दूसरे झाड़ बन न सकें। चक्र भी एक ही है। याद भी एक को ही करते हैं। गुरूनानक को याद करते हैं परन्तु उनको फिर अपने समय पर आना पड़े। जन्म-मरण में तो सबको आना है। लोग समझते हैं– कृष्ण हाजिराहजूर है। कोई किसको मानते, कोई किसको। बाबा समझाते हैं-बच्चे युक्ति से समझाओ– ईश्वर सबका एक निराकार है। गीता में है भगवानुवाच। तो गीता है सबकी माँ बाप क्योंकि उनसे ही सबको सद्गति मिलती है। बाप सबका दु:ख हर्ता, सुख कर्ता है। भारत सबका तीर्थ स्थान है। सद्गति बाप द्वारा ही मिलती है। यह उनका बर्थ प्लेस है, सब उनको याद करते हैं। फादर ही आकर सबको रावण के राज्य से छुड़ाते हैं। अभी यह रौरव नर्क है। अब बाप कहते हैं हे देहधारी आत्मायें अब वापिस चलना है, सिर्फ मुझे याद करो। कभी भी देहधारी में लटके तो रोना पड़ेगा। एक को याद करना है, वहाँ आना है। तुम्हारा रोना 21 जन्मों के लिए बन्द हो जाता है। कोई मरे और तुम रोने लग पड़ेंगे फिर रोने प्रूफ तो बनेंगे नहीं। किसकी याद में शाक आ जाए और मर जाएं तो दुर्गति हो जाये। तुमको याद तो शिवबाबा को करना है ना। हार्ट फेल भी हो जाते हैं। तुमको तो उठते-बैठते एक बाप को याद करना है। यह भी बुद्धि में बिठाया जाता है क्योंकि सारे दिन में याद नहीं करते हैं तो संगठन में बिठाया जाता है। सबका इकठ्ठा फोर्स होता है। अगर और किसी की याद बुद्धि में रहेगी तो फिर जन्म लेना पड़ेगा। कुछ भी हो जाय, स्थेरियम रहना है। देह का भान न रहे। जितना बाप को याद करते हो, वह याद रिकार्ड में नूँध जाती है। तुमको खुशी भी बहुत होगी। हम जल्दी चले जायेंगे। जाकर तख्त पर बैठेंगे, बाप हमेशा कहते हैं- बच्चे तुम्हें कभी रोना नहीं है, रोती तो विधवायें हैं। तुमको सर्व गुण सम्पन्न यहाँ ही बनना है, जो फिर अविनाशी हो जाता है। मेहनत चाहिए। अपने पर नजर रखनी है, कोई भी भूत होगा तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। नारद भक्त था-लक्ष्मी को वरने चाहता था, परन्तु शक्ल देखी तो बन्दर मिसल...। तुम पुरूषार्थ कर रहे हो लक्ष्मी को वरने के लिए, जिसमें 5 भूत होंगे वह कैसे वर सकेंगे। बहुत मेहनत चाहिए। बड़ी जबरदस्त लाटरी विन करते हो। हम राजा जरूर बनेंगे तो प्रजा भी होगी। हजारों लाखों वृद्धि होती रहेगी। पहले-पहले कोई भी आते हैं तो उनको बाप का परिचय दो। पतित-पावन, परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है! जरूर कहना पड़ेगा वह पिता है। अच्छा लिखो। एक ही पतित-पावन, सर्व को पावन बनाने वाला है। लिखवा लेने से फिर कोई बहस नहीं करेंगे। बोलो, तुम यहाँ सुनने आये हो वा सुनाने? सर्व का सद्गति दाता तो एक निराकार है ना। वह कब आकार साकार में नहीं आता है। अच्छा फिर प्रजापिता से क्या सम्बन्ध है? वह है साकारी, वह है निराकारी बाबा। हम एक बाप को याद करते हैं। हमारा एम आब्जेक्ट यह है। इनसे हम राजाई पायेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) किसी भी देहधारी में अपनी बुद्धि नहीं लटकानी है। याद का रिकार्ड ठीक रखना है। कभी भी रोना नहीं है।
2) अपने शान्ति स्वधर्म में स्थित रहना है। शान्ति के लिए भटकना नहीं है। सबको इस भटकने से छुड़ाना है। शान्तिधाम और सुखधाम को याद करना है।
वरदान:
कल्प-कल्प के विजय की नूंध को स्मृति में रख सदा निश्चिंत रहने वाले निश्चयबुद्धि विजयी भव
निश्चयबुद्धि बच्चे व्यवहार वा परमार्थ के हर कार्य में सदा विजय की अनुभूति करते हैं। भल कैसा भी साधारण कर्म हो, लेकिन उन्हें विजय का अधिकार अवश्य प्राप्त होता है। वे कोई भी कार्य में स्वयं से दिलशिकस्त नहीं होते क्योंकि निश्चय है कि कल्प-कल्प के हम विजयी हैं। जिसका मददगार स्वयं भगवान है उसकी विजय नहीं होगी तो किसकी होगी, इस भावी को कोई टाल नहीं सकता! यह निश्चय और नशा निश्चिंत बना देता है।
स्लोगन:
सदा खुशी की खुराक द्वारा तन्दरूस्त, खुशी के खजाने से सम्पन्न खुशनुम: बनो।