Wednesday, June 14, 2017

मुरली 15 जून 2017

15-06-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– तुम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मणों को बेहद के बाप से 21 जन्मों का पूरा वर्सा लेने के लिए श्रीमत पर जरूर चलना है”
प्रश्न:
तुम बच्चे कौन सी तैयारी कर रहे हो? तुम्हारा प्लैन क्या है?
उत्तर:
तुम अमरलोक में जाने के लिए तैयारी कर रहे हो। तुम्हारा प्लैन है भारत को स्वर्ग बनाने का। तुम अपने ही तन-मन-धन से इस भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा में लगे हो। तुम बाप के साथ पूरे मददगार हो। अहिंसा के बल से तुम्हारी नई राजधानी स्थापना हो रही है। मनुष्य तो विनाश के लिए प्लैन बनाते रहते हैं।
गीत:
माता ओ माता...   
ओम् शान्ति।
यह महिमा किसकी सुनी? दो माताओं की। एक तो बाप की महिमा होती है तुम मात-पिता... निराकार की भी ऐसी महिमा होती है, तुम मात पिता... क्योंकि पिता है तो माता भी जरूर होगी। तुम जानते हो परमपिता परमात्मा को जब सृष्टि रचनी होती है तो माता जरूर चाहिए। बाप को तो आना ही है कोई साधारण तन में। शिव जयन्ती वा शिवरात्रि गाई जाती है। जरूर परमपिता परमात्मा अवतार लेते हैं। किसलिए? नई रचना रचने के लिए, पुरानी रचना का विनाश करने के लिए। ब्रह्मा द्वारा ही रचना रचनी है। लौकिक बाप भी हद का ब्रह्मा है। वह अपनी स्त्री द्वारा हद की रचना रचते हैं। तो उनको बच्चे ही मात-पिता कहेंगे। सभी तो नहीं कहेंगे– तुम मात-पिता हम बालक तेरे, क्योंकि यह तो बहुत बच्चों का क्वेश्चन है। प्रजापिता ब्रह्मा को हैं ढेर बच्चे। तो जरूर ब्रह्मा मुख कमल से ब्राह्मण कुल अथवा ब्राह्मण वर्ण बेहद के बाप ने रचा होगा। उनकी हुई मुख की पैदाइस। उस माँ बाप की होती है कुख की पैदाइस। वह यह महिमा कर नहीं सकेंगे। यह महिमा है ही बेहद के माँ बाप की। तुम मात पिता... आपने आकर हमको अपना बनाया है। बस, आपसे हमको स्वर्ग के 21 जन्म सुख घनेरे मिलते हैं। तो ब्रह्मा मुख द्वारा तुम शिवबाबा के पोत्रे पोत्रियां हो गये। ब्रह्मा की मुख वंशावली जगत अम्बा सरस्वती बनती है। भारत में गाते हैं तुम मात-पिता... तो जरूर जगत अम्बा, जगतपिता चाहिए। उनके मुख द्वारा ही तुम धर्म के बच्चे बने हो। वर्सा तुमको शिवबाबा से मिलता है, इस ब्रह्मा से नहीं। जिसमें प्रवेश हुआ, जिसको माँ कहा जाता है। माँ से वर्सा नहीं मिलता है। वर्सा हमेशा बाप से मिलता है। तुमको भी वर्सा बेहद के बाप से मिल रहा है। भक्ति मार्ग में जो गायन होता आया है तो जरूर फिर उनको आना ही पड़े। बच्चे बहुत दु:खी हैं। दु:खधाम के बाद सुखधाम आना है। सतयुग में है सतोप्रधान सुख फिर त्रेता में कुछ कम। दो कला कम कहेंगे। द्वापर कलियुग में उससे कम होता जाता है। अब इस चक्र को तो फिरना ही है। बच्चे जानते हैं बेहद का बाप ही स्वर्ग की रचना रचते हैं। उनको जरूर पहले सूक्ष्मवतन रचना पड़े क्योंकि ब्रह्मा तो जरूर चाहिए। ब्रह्मा को भी शिवबाबा एडाप्ट करते हैं। कहते हैं तुम मेरे हो। यह भी कहता है बाबा मैं आपका हूँ, तो ब्रह्मा वल्द शिव हो गया। शिवबाबा के तीन बच्चे, तीनों की बायोग्राफी बतलाते हैं। यह व्यक्त ब्रह्मा फिर अव्यक्त बनता है। तुम भी व्यक्त ब्रह्मा की औलाद फिर अव्यक्त औलाद बनते हो। यह बड़ी गुह्य बातें हैं। परमपिता परमात्मा विश्व का रचयिता है। पहले-पहले रचता है स्वर्ग। बाप से वर्सा तो स्वर्ग का मिलना चाहिए ना। अभी हम नर्क में हैं। वर्सा तो जरूर तब दिया होगा– जब हमको रचा होगा। बाप कहते हैं– अभी हम रच रहा हूँ। 5 हजार वर्ष पहले भी मैंने ऐसे ही आकर ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण कुल को रचा था। यह जो रूद्र ज्ञान यज्ञ है, उनकी ब्राह्मण ही सम्भाल कर सकते हैं। तो यह हुए ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण। उन ब्राह्मणों को कहेंगे कुख वंशावली ब्राह्मण। ऐसे नहीं कहेंगे कि ब्रह्मा के मुख वंशावली ब्राह्मण। तो अब तुम बच्चे हो ब्रह्मा के मुख वंशावली। पहले जरूर ब्राह्मण चाहिए। ब्राह्मण कहाँ से कनवर्ट किये? शूद्र वर्ण यहाँ पर है। तुम बच्चों को अब ब्राह्मण वर्ण में लाया। पैर से फिर चोटी ब्राह्मण, ब्राह्मण से देवता बनना है। यह वर्ण आदि सनातन देवी-देवता धर्म वालों के लिए ही हैं, और धर्म वालों के लिए वर्ण नहीं हैं। 21 जन्म तुम देवता वर्ण में रहते हो। ब्राह्मण वर्ण का यह एक जन्म या डेढ़ भी हो सकता है क्योंकि जो बच्चे संस्कार ले शरीर छोड़ चले जाते हैं फिर आकर ज्ञान ले सकते हैं। तो बाप समझाते हैं बच्चे अगर स्वर्ग का मालिक बनना है तो पवित्र जरूर बनना है। 63 जन्म तुमने गोते खाये हैं, अब तुम महा दु:ख में हो। सारे भारत का क्वेश्चन है ना। ऐसे नहीं कि अब सारा भारत सुखी है। हाँ, भारत में धनवान बहुत हैं। देखो एक आया था, भल करोड़पति था परन्तु टांग बांह नहीं चलती थी, तो दु:ख हुआ ना। दुनिया में एक भी दु:ख वाला है तो जरूर दु:खधाम कहेंगे। सतयुग में एक भी दु:खी नहीं होता। भारत सुखधाम था। किसने स्वर्ग को रचा? बाप ने। हम बच्चे हकदार हैं। 5 हजार वर्ष पहले भी हम स्वर्ग में जरूर थे। कहते हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले गीता सुनाने आये। तो 5 हजार वर्ष का टाइम हुआ ना। 2 हजार वर्ष क्राइस्ट के और 3 हजार वर्ष उनके आगे। तो अब गीता सुनाने आया है ना। बरोबर देवता धर्म भी प्राय:लोप है। तुम बच्चे हो पाण्डव, जिन्हों का सहायक है गीता का भगवान। वह है निराकार। शास्त्रों में भी है रूद्र ज्ञान यज्ञ, वास्तव में है शिवरात्रि, शिव जयन्ती। रूद्र जयन्ती वा रूद्र रात्रि नहीं कहते। शिव रात्रि क्यों कहते हैं? अभी बेहद की रात्रि, घोर अन्धियारा है ना। बाप कहते हैं मैं आता हूँ बेहद की रात के समय। अब दिन होने वाला है। मेरा जन्म प्राकृतिक मनुष्यों सदृश्य नहीं होता है। कृष्ण ने तो माँ के गर्भ महल से जन्म लिया। अब तुम बच्चे जानते हो उस मात-पिता से स्वर्ग के सुख घनेरे मिल रहे हैं। दुनिया तो जानती नहीं कि स्वर्ग और नर्क किस चिडि़या का नाम है। अब तुम यहाँ पढ़ने आये हो, श्रीमत पर चलते हो। श्रीमत पर चलने से तुम स्वर्ग के श्री लक्ष्मी-नारायण बनते हो। सतयुग के मालिक हैं तो जरूर कलियुग के अन्त में उनका 84 वां अन्तिम जन्म होगा, तब राजयोग सीखे होंगे। सिर्फ एक तो नहीं, सारा सूर्यवंशी घराना राजयोग सीखता है। जो आकर बेहद के बाप से सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी राज्य का वर्सा ले रहे हैं। बाप कहते हैं अब तुम मुझसे पवित्र रहने की प्रतिज्ञा करो क्योंकि मैं पवित्र दुनिया की स्थापना करता हूँ। 63 जन्म तुम पतित बनते आये, इसलिए दु:खी हुए हो। स्वर्ग में तो बहुत सुखी थे। यह भारत जो कौड़ी मिसल है फिर हीरे मिसल बनेगा। यह एक ही बाप है जो कहते हैं मैं तुमको फिर से राजयोग सिखलाने आया हूँ। बेहद का बाप कहते हैं तुम यह अन्तिम जन्म पवित्र बनो। इस माँ बाप से तुमको अमृत पीना है, विष पीना छोड़ना है। काम चिता से उतर ज्ञान चिता पर बैठो। श्रीमत तुमको मिलती है। जिनको वर्सा लेने का निश्चय नहीं है वह कहते बाबा विष छोड़ना तो बड़ी मुसीबत है। अरे तुमको 21 जन्म सुख की प्राप्ति होती है, उसके लिए तुम यह नहीं छोड़ सकते हो। भक्ति, जप, तप आदि करने से हद का सुख मिलता है। बेहद का सुख बेहद के बाप से मिलता है। बाप कहते हैं मैं साधुओं का भी उद्धार करता हूँ क्योंकि शिवबाबा को न जानने के कारण सद्गति को कोई भी नहीं पाते हैं, वापिस घर में भी कोई जा नहीं सकते। अगर बाप के घर का रास्ता जानते तो वहाँ आवें जावें ना। सभी को पुनर्जन्म लेना ही है। सतो, रजो, तमो में आना ही है। अभी तो है झूठी माया, झूठी काया। जिसने धर्म स्थापना किया उसके नाम पर ही शास्त्र निकलते हैं, जिसको धर्म शास्त्र कहते हैं। क्राइस्ट ने आकर क्या किया? खुद आया उनके पिछाड़ी उनके घराने की आत्माओं को आना है। वृद्धि होनी है। अब देखो क्रिश्चियन बनाते जाते हैं। बहुत करके हिन्दू धर्म वालों को कनवर्ट करते जाते हैं। उन्हों को अपने धर्म का पता ही नहीं है। अभी तुम जानते हो हम देवता वर्ण में जायेंगे। कृष्ण की आत्मा भी अब पढ़ रही है। परन्तु संगम होने के कारण मिक्स कर दिया है। यह चित्र आदि जो भी हैं सभी हैं भक्तिमार्ग की सामग्री। ज्ञान सागर तो परमपिता परमात्मा है, उन द्वारा सबकी सद्गति होनी है। सतयुग में तो थोड़े होंगे। बाकी सब हिसाब-किताब चुक्तू कर मुक्तिधाम में चले जायेंगे। उनको शान्ति तुमको सुख मिलेगा। अभी तुम पढ़ते हो सुख घनेरे लेने के लिए। जिनका पार्ट है वही कल्प-कल्प पुरूषार्थ करते हैं। जो ब्राह्मण बनेंगे, वही स्वर्ग के मालिक बनेंगे– परन्तु नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। अब देवी-देवता धर्म का कलम लग रहा है। जो कल्प पहले आये होंगे, वही आयेंगे। ड्रामा तुमसे पुरूषार्थ भी जरूर करायेगा। इस समय सब पत्थरबुद्धि हैं। पारसबुद्धि होते हैं सतयुग में। वहाँ यथा राजा रानी तथा प्रजा पारस बुद्धि हैं। अब तुम पाण्डव सेना हो। तुम बाप की मदद से स्वर्ग का फाउण्डेशन लगा रहे हो। तुम स्वर्ग का प्लैन बना रहे हो। अमरलोक जाने की तैयारी कर रहे हो। बाकी जो सब प्लैन बना रहे हैं वह अपने ही विनाश के लिए। तुम हो अहिंसक। वह सब हैं हिंसक। हिंसक आपस में ही लड़कर खत्म होते हैं, फिर जयजयकार हो जायेगा। तुम बच्चे जानते हो ड्रामा अनुसार जो कल्प पहले आये थे, वही वृद्धि को पाते रहते हैं। कोई तो बाप के बनकर फिर फारकती दे देते हैं। बाप कहते हैं अगर तुम श्रीमत पर चलेंगे तो सूर्यवंशी महाराजा महारानी बनेंगे। यहाँ तो मेहनत की बात है। भल वह बहुत ढंग से शास्त्रों की कथायें सुनाते हैं। सो तो सुनते आये। सुनते-सुनते नर्कवासी होते गये, कलायें कमती होती गई। भल कहते हैं पति ही ईश्वर है, फिर भी गुरू करते हैं। कला कमती होती है ना। सृष्टि को तमोप्रधान बनना ही है। बाप आत्माओं से बात करते हैं। बाप कहते हैं मीठे बच्चे अब तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए। अब देही-अभिमानी भव। मामेकम् याद करो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सच्चे-सच्चे ब्राह्मण बन इस रूद्र ज्ञान यज्ञ की सम्भाल भी करनी है और साथ-साथ जैसे व्यक्त ब्रह्मा अव्यक्त बनता है, ऐसे अव्यक्त बनने का पुरूषार्थ करना है।
2) 21 जन्मों तक सुखी बनने के लिए इस एक जन्म में बाप से पावन रहने की प्रतिज्ञा करनी है। काम चिता को छोड़ ज्ञान चिता पर बैठना है। श्रीमत पर जरूर चलना है।
वरदान:
रूहानी सिम्पेथी द्वारा सर्व को सन्तुष्ट करने वाले सदा सम्पत्तिवान भव
आज के विश्व में सम्पत्ति वाले तो बहुत हैं लेकिन सबसे बड़े से बड़ी आवश्यक सम्पत्ति है सिम्पेथी। चाहे गरीब हो, चाहे धनवान हो लेकिन आज सिम्पेथी नहीं है। आपके पास सिम्पेथी की सम्पत्ति है इसलिए किसी को और भले कुछ भी नहीं दो लेकिन सिम्पेथी से सबको सन्तुष्ट कर सकते हो। आपकी सिम्पेथी ईश्वरीय परिवार के नाते से है, इस रूहानी सिम्पेथी से तन मन और धन की पूर्ति कर सकते हो।
स्लोगन:
हर कार्य में साहस को साथी बना लो तो सफलता अवश्य मिलेगी।