Tuesday, May 23, 2017

मुरली 24 मई 2017

24-05-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– जिस बाप को तुमने आधाकल्प याद किया, अब उसका फरमान मिलता है तो उसे पालन करो इससे तुम्हारी चढ़ती कला हो जायेगी”
प्रश्न:
तुम बच्चों को अपनी नेचर-क्योर आपेही करनी है, कैसे?
उत्तर:
एक बाप की याद में रहने और यज्ञ की प्यार से सेवा करने से नेचर-क्योर हो जाती है क्योंकि याद से आत्मा निरोगी बनती है और सेवा से अपार खुशी रहती है। तो जो याद और सेवा में बिजी रहते हैं उनकी नेचर क्योर होती रहती है।
गीत:
तूने रात गंवाई...   
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना। मालायें फेरते-फेरते युग बीते। कितने युग? दो युग। सतयुग त्रेता में तो कोई भी माला नहीं फेरते हैं। कोई की भी बुद्धि में यह नहीं है कि हम ऊंच जाते हैं फिर नीचे आते हैं। हमारी अब चढ़ती कला होती है। हमारी अर्थात् भारत की। जितनी भारतवासियों की चढ़ती कला और उतरती कला होती है उतना और कोई की भी नहीं। भारत ही श्रेष्ठाचारी और भ्रष्टाचारी बनता है। भारत ही निर्विकारी, भारत ही विकारी। और खण्डों वा धर्मों से इतना तैलुक नहीं है। वह कोई हेविन में नहीं आते हैं। भारतवासियों के ही चित्र हैं। बरोबर राज्य करते थे। तो बाप समझाते हैं तुम्हारी अब चढ़ती कला है। जिसका हाथ पकड़ा है वह तुमको साथ ले जायेंगे। हम भारतवासियों की ही चढ़ती कला है। मुक्ति में जाकर फिर जीवनमुक्ति में आयेंगे। आधाकल्प देवी-देवता धर्म का राज्य चलता है। 21 पीढ़ी चढ़ते हैं, फिर उतरती कला हो जाती है। कहते हैं चढ़ती कला तेरे भाने सर्व का भला। अब सर्व का भला होता है ना। परन्तु चढ़ती कला और उतरती कला में तुम आते हो। इस समय भारत जितना कर्ज लेता है उतना और कोई नहीं लेते। बच्चे जानते हैं हमारा भारत सोने की चिडि़या था। बहुत साहूकार थे। अभी भारत की उतरती कला पूरी होती है। विद्वान आदि तो समझते हैं कलियुग की आयु अजुन 40 हजार वर्ष चलनी है। बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में हैं। समझाना भी बड़ी युक्ति से है, नहीं तो भगत लोग चमक जाते हैं। पहले-पहले तो परिचय दो बाप का देना है। भगवानुवाच है कि गीता सबका माई बाप है। वर्सा गीता से मिलता है, बाकी सब हैं उनके बच्चे। बच्चों से वर्सा मिल न सके। तुम बच्चों को गीता से वर्सा मिल रहा है ना। गीता माता का फिर पिता भी है। बाइबिल आदि कोई को भी माता नहीं कहेंगे। तो पहले-पहले पूछना ही यह है कि परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या तैलुक है? सभी का बाप एक है ना। सभी आत्मायें भाई-भाई हैं ना। एक बाप के बच्चे। बाप मनुष्य सृष्टि रचते हैं प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा, तो फिर तुम आपस में भाई-बहन हो जाते हो। तो जरूर पवित्र रहते होंगे। पतित-पावन बाप ही आकर तुमको पावन बनाते हैं युक्ति से। बच्चे जानते हैं पवित्र बनेंगे तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। बहुत भारी आमदनी है। कौन मूर्ख होगा– जो 21 जन्म की बादशाही लेने के लिए पवित्र नहीं बनेंगे। और फिर श्रीमत भी मिलती है। जिस बाप को आधाकल्प याद किया है उसका फरमान तुम नहीं मानेंगे! उनके फरमान पर नहीं चलेंगे तो तुम पाप आत्मा बन जायेंगे। यह दुनिया ही पाप आत्माओं की है। राम राज्य पुण्य आत्माओं की दुनिया थी। अब रावण राज्य पाप आत्माओं की दुनिया है। अभी तुम बच्चों की चढ़ती कला है। तुम विश्व के मालिक बनते हो। कैसे गुप्त बैठे हो। सिर्फ बाप को याद करना है। माला आदि फेरने की कोई बात नहीं। बाप को याद करते तुम काम करो। बाबा आपके यज्ञ की सेवा स्थूल, सूक्ष्म दोनों हम कैसे इकठ्ठे करते हैं। बाबा ने फरमान किया है ऐसे याद करो। नेचर-क्योर कराते हैं ना। तुम्हारी आत्मा क्योर होने से शरीर भी क्योर हो जायेगा। सिर्फ बाप की ही याद से तुम पतित से पावन बनते हो। पावन भी बनो और यज्ञ की सेवा भी करते रहो। सर्विस करने में बड़ी खुशी होगी। हमने इतना समय बाप की याद में रह अपने को निरोगी बनाया अथवा भारत को शान्ति का दान दिया। भारत को तुम शान्ति और सुख का दान देते हो श्रीमत पर। दुनिया में आश्रम तो ढेर हैं। परन्तु वहाँ कुछ भी है नहीं। उनको यह पता नहीं कि 21 पीढ़ी स्वर्ग का राज्य कैसे मिलता है। तुम अभी राजयोग की पढ़ाई करते हो। वो लोग भी कहते रहते हैं कि गॉड फादर आ गया है। कहाँ है जरूर। सो तो जरूर होगा ना। विनाश के लिए बाम्ब्स भी निकल चुके हैं। जरूर बाप ही हेविन की स्थापना, हेल का विनाश कराते होंगे। यह तो नर्क है ना। कितनी लड़ाई मारामारी आदि हैं। बहुत डर है। बच्चों को कैसे भगाकर ले जाते हैं। कितने उपद्रव होते हैं। अभी तुम जानते हो कि यह दुनिया बदल रही है। कलियुग बदल फिर सतयुग हो रहा है। हम सतयुग स्थापना में बाबा के मददगार हैं। ब्राह्मण ही मददगार होते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा से ब्राह्मण पैदा होते हैं। वह हैं कुख वंशावली, तुम हो मुखवंशावली। वह ब्रह्मा की सन्तान तो हो न सकें। तुमको एडाप्ट किया जाता है। तुम ब्राह्मण हो-ब्रह्मा की औलाद। प्रजापिता ब्रह्मा तो संगम पर ही हो सकता है। ब्राह्मण सो फिर देवी-देवता बनते हैं। तुम उन ब्राह्मणों को भी समझा सकते हो कि तुम कुख वंशावली हो। कहते हो ब्राह्मण देवी देवताए नम:। ब्राह्मणों को भी नमस्ते, देवताओं को भी नमस्ते करते हैं। परन्तु ब्राह्मणों को नमस्ते तब करें जबकि अभी हों। समझते हैं यह ब्राह्मण लोग हैं, तन-मन-धन से बाबा की श्रीमत पर चलते हैं। वह ब्राह्मण जिस्मानी यात्रा पर ले जाते हैं। यह तुम्हारी है रूहानी यात्रा। तुम्हारी यात्रा कितनी मीठी है। वह जिस्मानी यात्रायें तो ढेर हैं। गुरू लोग भी ढेर हैं। सबको गुरू कह देते। अभी तुम बच्चे जानते हो हम मीठे शिवबाबा की मत पर चल उनसे वर्सा ले रहे हैं ब्रह्मा द्वारा। वर्सा शिवबाबा से लेते हैं। तुम यहाँ आते हो तो फट से पूछता हूँ– किसके पास आये हो? बुद्धि में है यह शिवबाबा का लोन लिया हुआ रथ है। हम उनके पास जाते हैं। सगाई ब्राह्मण लोग कराते हैं। परन्तु कनेक्शन सजनी साजन का आपस में होता है, न कि सगाई कराने वाले ब्राह्मण से। स्त्री पति को याद करती है या हथियाला बांधने वाले को याद करती है? तुम्हारा भी साजन है शिव। फिर किसी देहधारी को तुम क्यों याद करते हो? याद करना है शिव को। यह लॉकेट आदि भी बाबा ने बनवाये हैं समझाने के लिए। बाबा खुद ही दलाल बन सगाई कराते हैं। तो दलाल को याद नहीं करना है। सजनियों का योग साजन के साथ है। मम्मा बाबा आकर तुम बच्चों द्वारा मुरली सुनाते हैं, बाबा कहते हैं बहुत ऐसे बच्चे हैं जिनकी भ्रकुटी के बीच हम बैठ मुरली चलाता हूँ– कल्याण करने अर्थ। कोई को साक्षात्कार कराने, मुरली सुनाने, कोई का कल्याण करने आता हूँ। ब्राह्मणियों में इतनी ताकत नहीं, जानता हूँ इनको यह ब्राह्मणी उठा नहीं सकेगी तो मैं ऐसा तीर लगाता हूँ जो वह ब्राह्मणी से भी तीखा जाये। ब्राह्मणी समझती हैं इनको हमने समझ् या। देह-अभिमान में आ जाते हैं। वास्तव में यह अहंकार भी नहीं आना चाहिए। सब कुछ शिवबाबा करने वाला है। यहाँ तो तुमको कहते हैं बाबा को याद करो। कनेक्शन शिवबाबा से होना चाहिए। यह तो बीच में दलाल है, इनको उसका एवजा मिल जाता है। फिर भी यह वृद्ध अनुभवी तन है। यह बदल नहीं सकता। ड्रामा में नूंध है। ऐसे नहीं दूसरे कल्प में दूसरे के तन में आयेंगे। नहीं, जो लास्ट में है उनको ही फिर पहले जाना है। झाड़ में देखो पिछाड़ी में खड़े हैं ना। अभी तुम संगम पर बैठे हो। बाबा ने इस प्रजापिता ब्रह्मा में प्रवेश किया है। जगत अम्बा है कामधेनु और कपिलदेव भी कहते हैं। कपल अर्थात् जोड़ी, बाप-दादा मात-पिता, यह कपल जोड़ी हुई ना। माता से वर्सा नहीं मिलेगा। वर्सा फिर भी शिवबाबा से मिलता है। तो उनको याद करना पड़े। मैं आया हूँ तुमको ले जाने इनके द्वारा। ब्रह्मा भी शिवबाबा को याद करते हैं। शंकर के आगे भी शिव का चित्र रखते हैं। यह सब हैं महिमा के लिए। इस समय तो शिवबाबा आकर अपना बच्चा बनाते हैं। फिर तुम बाप को बैठ थोड़ेही पूजेंगे। बाप आकर बच्चों को गुल-गुल बनाते हैं। गटर से निकालते हैं। फिर प्रतिज्ञा भी करते हैं हम कभी पतित नहीं बनेंगे। बाप कहते हैं गोद लेकर फिर काला मुंह नहीं करना। अगर किया तो कुल कलंकित बन पड़ेंगे। हारने से उस्ताद का नाम बदनाम कर देंगे। माया से हारे तो पद भ्रष्ट हो पड़ेगा। और कोई सन्यासी आदि यह बातें नहीं सिखलाते हैं। कोई हैं जो कहेंगे मास में एक बार विकार में जाओ। कोई कहते 6 मास में एक बार जाओ। कोई तो बहुत अजामिल होते हैं। बाबा ने तो बहुत गुरू किये हुए हैं। वह ऐसे कभी नहीं कहेगे कि पवित्र बनो। समझते हैं हम ही नहीं रह सकते हैं। सेन्सीबुल जो होगा, वह झट कहेगा तुम ही नहीं रह सकते हो, हमको कैसे कहते हो। फिर भी कहते हैं जनक मिसल सेकेण्ड में जीवनमुक्ति का रास्ता बताओ। फिर गुरू लोग कहते हैं– ब्रह्म को याद करो तो तुम निर्वाणधाम में जायेंगे। जाते तो कोई नहीं हैं, ताकत ही नहीं। सर्व आत्माओं के रहने का स्थान है मूलवतन, जहाँ हम आत्मायें स्टार मिसल रहती हैं। यह पूजा के लिए बड़ा लिंग बनाते हैं। बिन्दी की पूजा कैसे होगी? कहते भी हैं भ्रकुटी के बीच चमकता है अजब सितारा। तो आत्मा का बाप भी ऐसे होगा ना। बाप को देह नहीं है। उस स्टार की पूजा कैसे हो सकती। बाप को परम आत्मा कहा जाता है। वह तो फादर है। जैसे आत्मा है वैसे परमात्मा है। वह कोई बड़ा नहीं है। उनमें यह नॉलेज है। इस बेहद के झाड़ को और कोई भी नहीं जानते हैं। बाप ही नॉलेजफुल है। ज्ञान में भी फुल है, पवित्रता में भी फुल है। सर्व का सद्गति दाता है। सर्व को सुख-शान्ति देने वाला। तुम बच्चों को कितना भारी वर्सा मिलता है और कोई को मिल न सके। मनुष्य तो कितना गुरू को पूजते हैं। अपने बादशाह को भी इतना नहीं पूजते हैं। तो यह सब अन्धश्रद्धा है ना। क्या-क्या करते रहते हैं। सबमें ग्लानी ही ग्लानी है। कृष्ण को लार्ड भी कहते हैं तो गॉड भी कहते हैं। गॉड कृष्णा हेविन का पहला प्रिन्स, लक्ष्मी-नारायण के लिए भी कहते हैं यह दोनों गॉड-गॉडेज हैं। पुराने-पुराने चित्रों को बहुत खरीद करते हैं। पुरानी-पुरानी स्टेम्प्स भी बिकती हैं ना। वास्तव में सबसे पुराना तो शिवबाबा है ना। परन्तु किसको पता नहीं। महिमा सारी शिवबाबा की है। वह चीज तो मिल न सके। पुराने ते पुरानी चीज कौन सी है? नम्बरवन शिवबाबा। कोई भी समझ नहीं सकते कि हमारा फादर कौन है? उनका नाम रूप क्या है? कह देते उनका कोई नाम रूप नहीं है, तब पूजते किसको हो? शिव नाम तो है ना। देश भी है, काल भी है। खुद कहते हैं मैं संगम पर आता हूँ। आत्मा शरीर द्वारा बोलती है ना। अभी तुम बच्चे समझते हो शास्त्रों में कितनी दन्त कथायें लगा दी हैं, जिससे उतरती कला हो गई है। चढ़ती कला सतयुग त्रेता, उतरती कला द्वापर कलियुग। अब फिर चढ़ती कला होगी। बाप बिगर कोई चढ़ती कला बना न सके। यह सब बातें धारण करनी होती हैं। तो कोई भी काम आदि करते याद में रहना है। जैसे श्रीनाथ द्वारे में मुँह को कपड़ा बांध काम करते हैं। श्रीनाथ कृष्ण को कहते हैं। श्रीनाथ का भोजन बनता है ना। शिवबाबा तो भोजन आदि नहीं खाते हैं। तुम पवित्र भोजन बनाते हो तो याद में रह बनाना चाहिए, तो उससे बल मिलेगा। कृष्ण लोक में जाने के लिए व्रत नेम आदि रखते हैं। अभी तुम जानते हो हम कृष्णपुरी में जा रहे हैं इसलिए तुमको लायक बनाया जाता है। तुम बाप को याद करते तो फिर बाबा गैरन्टी करते हैं तुम कृष्णपुरी में जरूर जायेंगे। तुम जानते हो हम अपने लिए कृष्णपुरी स्थापना कर रहे हैं फिर हम ही राज्य करेंगे। जो श्रीमत पर चलेंगे वह कृष्णपुरी में आयेंगे। लक्ष्मी-नारायण से भी अधिक कृष्ण का नाम बाला है। कृष्ण छोटा बच्चा है तो महात्मा के समान है। बाल अवस्था सतोप्रधान है इसलिए कृष्ण का नाम जास्ती है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपना पूरा कनेक्शन एक शिवबाबा से रखना है। कभी किसी भी देहधारी को याद नहीं करना है। कभी अपने उस्ताद (बाप) का नाम बदनाम नहीं करना है।
2) अपने द्वारा यदि किसी का कल्याण होता है, तो मैंने इसका कल्याण किया, इस अहंकार में नहीं आना है। यह भी देह-अभिमान है। कराने वाले बाप को याद करना है।
वरदान:
निमित्त पन की स्मृति से हर पेपर में पास होने वाले एवररेडी, नष्टोमोहा भव
एवररेडी का अर्थ ही है– नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप। उस समय कोई भी संबंधी अथवा वस्तु याद न आये। किसी में भी लगाव न हो, सबसे न्यारा और सबका प्यारा। इसका सहज पुरूषार्थ है निमित्त भाव। निमित्त समझने से “निमित्त बनाने वाला” याद आता है। मेरा परिवार है, मेरा काम है-नहीं। मैं निमित्त हूँ। इस निमित्त पन की स्मृति से हर पेपर में पास हो जायेंगे।
स्लोगन:
ब्रह्मा बाप के संस्कार को अपना संस्कार बनाना ही फालो फादर करना है।