Thursday, May 18, 2017

मुरली 19 मई 2017

19-05-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– विचार सागर मंथन कर भारत की हिस्ट्री-जाग्रॉफी और नई दुनिया का संवत सिद्ध कर बताओ तो कल्प की आयु सिद्ध हो जायेगी”
प्रश्न:
तुम बच्चों को अभी कौन सी धुन लगी हुई है जो मनुष्यों से भिन्न है?
उत्तर:
तुम्हें धुन है कि विश्व का बेड़ा जो डूबा हुआ है उसे हम सैलवेज करें। सबको सच्ची-सच्ची सत्य नारायण की कथा वा अमरकथा सुनायें जिससे सबकी उन्नति हो। इतने बड़े-बड़े महल, बिजली आदि सब कुछ है परन्तु उन्हें यह पता नहीं है कि यह सब आर्टीफिशल झूठी उन्नति है। सच्ची उन्नति तो सतयुग में थी, जो अब बाप आकर करते हैं।
गीत:
आखिर वह दिन आया आज.....   
ओम् शान्ति।
गरीबनिवाज आया तो सही, परन्तु कोई सही तिथि तारीख नहीं लिखते हैं। कोई डेट, संवत तो होना चाहिए ना। जैसे बताते हैं कि आज फलानी तारीख, फलाना मास, फलाना संवत है। गरीब निवाज कब आया? यह लिखा नहीं है। जैसे लक्ष्मी-नारायण सतयुग आदि में थे तो उनका भी संवत होना चाहिए। इनका फलाने सवंत में राज्य था। लक्ष्मी-नारायण का भी संवत है और भी सबके अपने-अपने संवत हैं। गुरूनानक का भी लिखा होगा कि फलाने संवत में जन्म लिया। संवत बिगर पता नहीं पड़ता। यह लक्ष्मी-नारायण भारत में राज्य करते थे, तो जरूर संवत होना चाहिए, इनका संवत माना स्वर्ग का संवत। लक्ष्मी-नारायण ने सतयुग में राज्य किया, किस संवत से किस संवत तक कहें, तो भी 5 हजार वर्ष ही कहेंगे। गीता जयन्ती का थोड़ा फर्क करना पड़ता है। शिव जयन्ती और गीता जयन्ती में फर्क नहीं है। कृष्ण जयन्ती का फर्क पड़ेगा। लक्ष्मी-नारायण का वही संवत लिखना होगा। यह भी विचार सागर मंथन करना होता है। पब्लिक को यह कैसे बतायें। लक्ष्मी-नारायण का क्यों नहीं संवत दिखाते हैं। विक्रम संवत दिखाते हैं, बाकी विकर्माजीत संवत कहाँ! अभी तुम बच्चों को अच्छी तरह मालूम है। भारत की हिस्ट्री-जॉग्राफी नई दुनिया का संवत भी दिखाना चाहिए। नई दुनिया में राज्य था आदि सनातन देवी-देवताओं का, तो उनका संवत भी कहेंगे। हिसाब करेंगे तो उनको 5 हजार वर्ष हुआ। यह सिद्ध कर बताने से कल्प की आयु सिद्ध हो जायेगी और लाखों वर्ष जो लिखा है वह झूठा हो जायेगा। यह बातें बाप आकर समझाते हैं। जो मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है, सृष्टि के आदि मध्य अन्त को जानने वाला है। लक्ष्मी-नारायण की डिनायस्टी को 5 हजार वर्ष हुआ और 3750 वर्ष हुए राम- सीता को, फिर आगे उनकी डिनायस्टी चली। फिर विक्रम संवत शुरू होता है। विक्रम राजा का जो संवत है वह भी राइट नहीं है, बीच में कुछ वर्ष गुम हैं। होना चाहिए 2500 वर्ष। इस्लामी, बौद्धी का भी थोड़ा समय पीछे शुरू होता है। इन्होंने दो हजार वर्ष से अपना संवत दिया है। त् म जानते हो हम सभी देवी-देवता थे, जो चक्र लगाकर अब ब्राह्मण बने हैं। यह हिस्ट्री-जॉग्राफी अच्छी तरह समझानी है। ब्राह्मण से फिर देवता बनते हैं। हिस्ट्री-जॉग्राफी समझते हो तो संवत भी समझना पड़े। सीढ़ी के चित्र में संवत लिखा हुआ है। भारत का संवत ही गुम हो गया है। जो पूज्य थे, उनका संवत ही गुम कर दिया है। पुजारियों का संवत शुरू हो गया है। देखो, अशोक पिल्लर कहते हैं। द्वापर में अशोक (शोक रहित) तो कोई है नहीं। अशोक पिल्लर तो आधाकल्प सतयुग त्रेता तक चलता है। उनकी यह महिमा है। शोक पिल्लर की महिमा नहीं है। यहाँ तो दु:ख ही दु:ख है। अशोका होटल नाम रखा है, परन्तु है नहीं। आधाकल्प क्षणभंगुर सुख को अशोक कह देते हैं। यहाँ अशोक कुछ है नहीं। मास-मदिरा, गन्द खाते रहते हैं। कुछ भी समझते नहीं कि हम दु:खी कैसे हुए? कारण क्या है? अभी तुम समझते हो यह बातें सुनेंगे वही जो कल्प पहले स्वर्ग में सुखी थे। जो वहाँ थे नहीं, वह सुनेंगे भी नहीं। जिन्होंने भक्ति पूरी की होगी वह कुछ न कुछ आकर शिक्षा लेंगे। नॉलेज को सुनकर लोग खुश होंगे। चित्र भी क्लीयर हैं। संवत भी लिखा हुआ है। ब्रह्मा विष्णु का जन्म भी तो यहाँ होना चाहिए। बाकी शंकर तो सूक्ष्मवतन का है और शिव है मूलवतन में। सूक्ष्म, मूल को भी जानते नहीं, इसलिए शिव शंकर को मिला दिया है। शिव है परमपिता परमात्मा, शंकर है देवता। दोनों को मिला न सकें। अभी तुम बच्चों को कितनी समझ मिली है। कितना नशा चढ़ता है। रात-दिन यही तात लगी रहे कि लोगों को कैसे समझावें। बेसमझ को ही समझाया जाता है। तुम समझते हो कि भारत पहले क्या था फिर डाउनफाल कैसे हुआ है। दुनिया तो समझती हमने बहुत उन्नति की है। आगे तो इतने बड़े महल, बिजली आदि कुछ नहीं था। अभी तो बहुत उन्नति में जा रहा है क्योंकि उन्हों को तो यह पता ही नहीं है कि यह आर्टाफीशियल झूठी है। सच्ची उन्नति तो सतयुग में थी। यह समझाना है, वे अपनी धुन में हैं, तुम्हारी धुन अपनी ही है। तुमको खुशी है तो विश्व का बेड़ा जो डूबा हुआ था, उनको हम बाबा की नॉलेज द्वारा सैलवेज कर रहे हैं। बाबा हमें सत्य नारायण की कथा वा अमर कथा फिर से सुनाते हैं। भक्ति मार्ग में तो अनेक कथायें सुनाते हैं। तुम समझते हो कि वे सब झूठी कथायें हैं जिससे कोई फायदा नहीं। यह शास्त्र आदि पढ़ते आये हैं फिर भी सृष्टि तो तमोप्रधान होती ही जाती है। सीढ़ी उतरते आये फायदा क्या हुआ? सिक्ख लोगों का भी मेला लगता है। वहाँ तालाब में स्नान करते हैं। वह गंगा जमुना आदि को नहीं मानते हैं। कुम्भ के मेले पर सिक्ख लोग नहीं जाते हैं। वह अपने तालाब पर जाते होंगे। उनका फिर खास प्रोग्राम होता है। कभी उनको साफ करने भी जाते हैं। सतयुग में तो यह बातें होती नहीं। सतयुग में तो नदियां आदि बिल्कुल साफ हो जायेंगी। वहाँ कभी गंगा, जमुना में गन्द, किचड़ा नहीं पड़ता। वहाँ के गंगा जल और यहाँ के गंगा जल में रात-दिन का फर्क है। यहाँ तो बहुत किचड़ा पड़ता है। वहाँ तो हर एक चीज फर्स्टक्लास होती है। तुम बच्चों को अब बहुत खुशी है कि हमारी राजधानी ऐसी होगी। हम फिर से 5 हजार वर्ष बाद श्रीमत पर स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। नाम ही है स्वर्ग, बैकुण्ठ, जिसमें लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। शान्तिधाम अथवा निर्वाणधाम एक ही है। तुम जानते हो कि हम शान्तिधाम में कैसे रहते हैं। ऊपर में है शिवबाबा फिर ब्रह्मा-विष्णु-शंकर, फिर देवताओं की माला फिर क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र। निराकारी झाड़ से आत्मायें नम्बरवार आती रहती हैं। जो सतयुग में आने वाले नहीं हैं, वे पढ़ने के लिए कभी आयेंगे नहीं। हिन्दू धर्म ही जैसे अलग हो पड़ा है। किसको पता नहीं कि आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। वह धर्म कैसे और कब स्थापना हुआ, किसको पता नहीं है। तुमको यह नॉलेज अब दी गई है कि दूसरों को भी समझाओ। चित्र तो बहुत सहज हैं। कोई को भी समझा सकते हो कि इन्होंने यह राज्य कब और कैसे लिया? और कितना समय तक राज्य किया? राम-सीता का भी होना चाहिए कि फलाने संवत से फलाने संवत तक इन्होंने राज्य किया। पीछे फिर पतित राजायें शुरू हो जाते हैं। यह देवतायें हैं मुख्य, जिनकी पूजा होती है। वास्तव में महिमा सारी एक पूज्य की होनी चाहिए। भक्ति मार्ग में तो सबको पूजते रहते हैं। अपने-अपने समय पर हर एक की महिमा होती है। मन्दिरों में जाकर पूजा आदि करते हैं, परन्तु उनको जानते बिल्कुल ही नहीं। अभी तुम समझाते हो तो सुनकर खुश होते हैं, तब तो सेन्टर्स खोलते हैं। समझते हैं कि इस नॉलेज से हम सो देवता बनेंगे। बाप ने गरीबों को आकर साहूकार बनाया है। बाप आकर बच्चों को समझाते हैं, बच्चे फिर औरों को समझाकर उन्हों का भाग्य खोलें। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी अभी तुम बाप द्वारा सुनते हो। वह समझने से तुम सब कुछ जान जाते हो। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी तो जरूर वर्ल्ड का रचयिता बीजरूप ही सुनायेंगे। वही नॉलेजफुल है। वह है निराकार शिव। देहधारी को भगवान रचयिता कह नहीं सकते। निराकार ही सभी आत्माओं का पिता है। वह बैठ आत्माओं को समझाते हैं। मैं परमधाम में रहने वाला हूँ। अभी मैं इस शरीर में आया हूँ। मैं भ् आत्मा हूँ। मैं बीजरूप, नॉलेजफुल होने कारण तुम बच्चों को समझाता हूँ। इसमे आशीर्वाद, कृपा आदि की कोई बात नहीं है। न अल्पकाल सुख की बात है। अल्पकाल का सुख तो लोग दे देते हैं। एक को कुछ फायदा हुआ तो बस नाम चढ़ जाता है। तुम्हारी प्राप्ति तो 21 जन्म के लिए है। सो तो सिवाए बाप के ऐसी प्राप्ति कोई करा न सके। 21 जन्मों के लिए निरोगी काया कोई बना न सके। भक्ति मार्ग में मनुष्यों को थोड़ा भी सुख मिलता है तो खुश हो जाते हैं। यहाँ तो 21 जन्म के लिए प्रालब्ध पाते हैं। तो भी बहुत हैं जो पुरूषार्थ नहीं करते। उन्हों की तकदीर में नहीं है। तदबीर तो सभी को एक समान ही कराते हैं। उस पढ़ाई में तो कभी अलग टीचर भी मिल जाते हैं। यह तो एक ही टीचर है। भल तुम खास बैठ समझाते होंगे। लेकिन नॉलेज तो एक है, सिर्फ हर एक के उठाने पर मदार है। यह भी एक कहानी है, जिसमें सारा राज आ जाता है। बाबा सत्य नारायण की कथा सुनाते हैं। तुम अंगे अखरे (तिथि-तारीख) सब सुना सकते हो। कोई-कोई सत्य नारायण की कथा सुनाने वाले नामीग्रामी होंगे। उनको सारी कथा कण्ठ हो जाती है। तुम फिर यह सच्ची सत्य नारायण की कथा कण्ठ कर लो। बहुत सहज है। बाप पहले तो कहते हैं मन्मनाभव, फिर बैठ हिस्ट्री समझाओ। इन लक्ष्मी-नारायण का तो संवत बता सकते हो ना। आओ तो हम आपको समझावें कि बाप कैसे संगमयुग पर आता है। ब्रह्मा तन में आकर सुनाते हैं। किसको? ब्रह्मा मुखवंशावली को। जो फिर देवता बनते हैं, 84 जन्म की कहानी है। ब्राह्मण सो देवता बनते हैं। पूरी नॉलेज है, यह सुनकर फिर बैठकर रिपीट करो तो बुद्धि में सब आ जायेगा कि हम देवता थे फिर ऐसे चक्र लगाया। यह है सत्य नारायण की कथा। कितनी सहज है, कैसे राज्य लिया फिर कैसे गवॉया .. कितना समय राज्य किया। लक्ष्मी-नारायण और उनका कुल, घराना था ना। सूर्यवंशी घराना, फिर चन्द्रवंशी घराना फिर संगम पर बाप आकर शूद्रवंशियों को ब्राह्मण वंशी बनाते हैं। यह सच्ची-सच्ची कथा तुम सुन रहे हो। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण के हीरे जवाहरों के महल थे। अभी तो क्या है। बाप ने यह तो कथा सुनाई है ना। अब बाप कहते हैं कि मुझे याद करो तो खाद निकल जायेगी। जितना खाद निकलेगी उतना ऊंच पद पायेंगे। नम्बरवार समझते हैं। बाबा जानते हैं कि कौन-कौन अच्छी रीति बुद्धि में धारण कर सकते हैं। समझाने में कोई तकलीफ नहीं है। बिल्कुल सहज है। मनुष्य से देवता बनना तो मशहूर है। घड़ी-घड़ी यही सत्य नारायण की कथा सुनाते रहो। वह है झूठी, यह है सच्ची। सेन्टर पर भी सत्य-नारायण की कथा सुनाते रहो वा मुरली सुनाते रहो तो बहुत सहज है। कोई भी सेन्टर चला सकते हैं। परन्तु फिर लक्षण भी अच्छे चाहिए। एक दो में लूनपानी नहीं होना चाहिए। आपस में मीठे होकर नहीं चलते हैं तो आबरू (इज्जत) गंवाते हैं। बाप कहते हैं कि मेरी निंदा करायेंगे तो ऊंच पद नहीं पा सकेंगे। उन गुरूओं ने फिर अपने लिए कह दिया है। अब तो वह कोई ठौर बताते नहीं। ठौर बताने वाला तो एक ही है, उसकी निन्दा करायेंगे तो नुकसान के भागी बन जायेंगे। फिर पद भी भ्रष्ट हो पड़ता है। काला मुंह करते हैं तो अपनी सत्यानाश करते हैं। ऐसे भी हैं जो हार खा लेते हैं फिर कोई तो सच्चाई से लिखते हैं, कोई झूठ भी बोलते हैं। अगर सच्ची कथा सुनाते रहें तो बुद्धि से झूठ निकल जाये। ऐसी चलन नहीं चलनी चाहिए जिससे बाप की निन्दा हो। जिनकी ऐसी अवस्था है वह जहाँ भी जाते हैं तो ऐसी ही चलन चलते हैं। खुद भी समझते हैं कि हम सुधर नहीं सकेंगे तो फिर राय दी जाती है– घर गृहस्थ में रहो। जब धारणा हो जाये तब फिर सर्विस करना। घर में रहेंगे तो तुम्हारे ऊपर इतना पाप नहीं चढ़ेगा। यहाँ फिर ऐसी कामन चलन चलते हैं तो निन्दा करा देते हैं, इससे तो गृहस्थ व्यवहार में कमल फूल समान रहना अच्छा है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अन्दर से झूठ निकल जाये उसके लिए सदा सत्य नारायण की कथा सुननी और सुनानी है। कभी ऐसी चलन नहीं चलनी है जो बाप की निन्दा हो।
2) आपस में बहुत मीठा होकर रहना है, कभी लूनपानी नहीं होना है। अच्छे लक्षण धारण कर फिर सेवा करनी है।
वरदान:
सन्तुष्टता के आधार पर दुआयें देने और लेने वाले सहज पुरुषार्थी भव
सर्व की दुआयें उन्हें मिलती हैं जो स्वयं सन्तुष्ट रहकर सबको सन्तुष्ट करते हैं। जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ दुआयें हैं। यदि सर्व गुण धारण करने वा सर्व शक्तियों को कन्ट्रोल करने में मेहनत लगती हो, तो उसे भी छोड़ दो, सिर्फ अमृतवेले से लेकर रात तक दुआयें देने और दुआयें लेने का एक ही कार्य करो तो इसमें सब कुछ आ जायेगा। कोई दु:ख भी दे तो भी आप दुआयें दो तो सहज पुरुषार्थी बन जायेंगे।
स्लोगन:
जो समर्पित स्थिति में रहते हैं उनके आगे सर्व का सहयोग स्वत: समार्पित हो जाता है।