Sunday, April 9, 2017

मुरली 9 अप्रैल 2017

09/04/17 मधुबन "अव्यक्त-बापदादा" ओम् शान्ति 18-01-2000

“ब्रह्मा बाप समान त्याग, तपस्या और सेवा का वायब्रेशन विश्व में फैलाओ”
आज समर्थ बापदादा अपने समर्थ बच्चों को देख रहे हैं। आज का दिन स्मृति दिवस सो समर्थ दिवस है। आज का दिन बच्चों को सर्व शक्तियां विल में देने का दिवस है। दुनिया में अनेक प्रकार की विल होती है लेकिन ब्रह्मा बाप ने बाप से प्राप्त हुई सर्व शक्तियों की विल बच्चों को की। ऐसी अलौकिक विल और कोई भी कर नहीं सकते हैं। बाप ने ब्रह्मा बाप को साकार में निमित्त बनाया और ब्रह्मा बाप ने बच्चों को निमित्त भव का वरदान दे विल किया। यह विल बच्चों में सहज पावर्स की (शक्तियों की) अनुभूति कराती रहती है। एक है अपने पुरुषार्थ की पावर्स और यह है परमात्म विल द्वारा पावर्स की प्राप्ति। यह प्रभु देन है, प्रभु वरदान है। यह प्रभु वरदान चला रहा है। वरदान में पुरुषार्थ की मेहनत नहीं लेकिन सहज और स्वत: निमित्त बनाकर चलाते रहते हैं। सामने थोड़े से रहे लेकिन बापदादा द्वारा, विशेष ब्रह्मा बाप द्वारा विशेष बच्चों को यह विल प्राप्त हुई है और बापदादा ने भी देखा कि जिन बच्चों को बाप ने विल की उन सभी बच्चों ने (आदि रत्नों ने और सेवा के निमित्त बच्चों ने) उस प्राप्त विल को अच्छी तरह से कार्य में लगाया। और उस विल के कारण आज यह ब्राह्मण परिवार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है। बच्चों की विशेषता के कारण यह वृद्धि होनी थी और हो रही है।

बापदादा ने देखा कि निमित्त बने हुए और साथ देने वाले दोनों प्रकार के बच्चों की दो विशेषतायें बहुत अच्छी रही। पहली विशेषता - चाहे स्थापना के आदि रत्न, चाहे सेवा के रत्न दोनों में संगठन की युनिटी बहुत-बहुत अच्छी रही। किसी में भी क्यों, क्या, कैसे... यह संकल्प मात्र भी नहीं रहा। दूसरी विशेषता - एक ने कहा दूसरे ने माना। यह एकस्ट्रा पावर्स की विल के वायुमण्डल में विशेषता रही, इसलिए सर्व निमित्त बनी हुई आत्माओं को बाबा-बाबा ही दिखाई देता रहा।

बापदादा ऐसे समय पर निमित्त बने हुए बच्चों को दिल से प्यार दे रहे हैं। बाप की कमाल तो है ही लेकिन बच्चों की कमाल भी कम नहीं है। और उस समय का संगठन, युनिटी - हम सब एक हैं, वही आज भी सेवा को बढ़ा रही है। क्यों? निमित्त बनी हुई आत्माओं का फाउण्डेशन पक्का रहा। तो बापदादा भी आज के दिन बच्चों की कमाल के गीत गा रहे थे। बच्चों ने चारों ओर से प्यार की मालायें पहनाई और बाप ने बच्चों की कमाल के गुणगान किये। इतना समय चलना है, यह सोचा था? कितना समय हो गया? सभी के मुख से, दिल से यही निकलता, अब चलना है, अब चलना है.... लेकिन बापदादा जानते थे कि अभी अव्यक्त रूप की सेवा होनी है। साकार में इतना बड़ा हाल बनाया था? बाबा के अति लाडले डबल विदेशी आये थे? तो विशेष डबल विदेशियों का अव्यक्त पालना द्वारा अलौकिक जन्म होना ही था, इतने सब बच्चों को आना ही था इसलिए ब्रह्मा बाप को अपना साकार शरीर भी छोड़ना पड़ा। डबल विदेशियों को नशा है कि हम अव्यक्त पालना के पात्र हैं!

ब्रह्मा बाप का त्याग ड्रामा में विशेष नूंधा हुआ है। आदि से ब्रह्मा बाप का त्याग और आप बच्चों का भाग्य नूंधा हुआ है। सबसे नम्बरवन त्याग का एक्जैम्पुल ब्रह्मा बाप बना। त्याग उसको कहा जाता है - जो सब कुछ प्राप्त होते हुए त्याग करे। समय अनुसार, समस्याओं के अनुसार त्याग श्रेष्ठ त्याग नहीं है। शुरू से ही देखो तन, मन, धन, सम्बन्ध, सर्व प्राप्ति होते हुए त्याग किया। शरीर का भी त्याग किया, सब साधन होते हुए स्वयं पुराने में ही रहे। साधनों का आरम्भ हो गया था। साधन होते हुए भी साधना में अटल रहे। यह ब्रह्मा की तपस्या आप सब बच्चों का भाग्य बनाकर गई। ड्रामानुसार ऐसे त्याग का एक्जैम्पुल रूप में ब्रह्मा ही बना और इसी त्याग ने संकल्प शक्ति की सेवा का विशेष पार्ट बनाया। जो नये-नये बच्चे संकल्प शक्ति से फास्ट वृद्धि को प्राप्त कर रहे हैं। तो सुना ब्रह्मा के त्याग की कहानी।

ब्रह्मा की तपस्या का फल आप बच्चों को मिल रहा है। तपस्या का प्रभाव इस मधुबन भूमि में समाया हुआ है। साथ में बच्चे भी हैं, बच्चों की भी तपस्या है लेकिन निमित्त तो ब्रह्मा बाप कहेंगे। जो भी मधुबन तपस्वी भूमि में आते हैं तो ब्राह्मण बच्चे भी अनुभव करते हैं कि यहाँ का वायुमण्डल, यहाँ के वायब्रेशन सहजयोगी बना देते हैं। योग लगाने की मेहनत नहीं, सहज लग जाता है और कैसी भी आत्मायें आती हैं, वह कुछ न कुछ अनुभव करके ही जाती हैं। ज्ञान को नहीं भी समझते लेकिन अलौकिक प्यार और शान्ति का अनुभव करके ही जाते हैं। कुछ न कुछ परिवर्तन करने का संकल्प करके ही जाते हैं। यह है ब्रह्मा और ब्राह्मण बच्चों की तपस्या का प्रभाव। साथ में सेवा की विधि - भिन्न-भिन्न प्रकार की सेवा बच्चों से प्रैक्टिकल में कराके दिखाई। उसी विधियों को अभी विस्तार में ला रहे हो। तो जैसे ब्रह्मा बाप के त्याग, तपस्या, सेवा का फल आप सब बच्चों को मिल रहा है। ऐसे हर एक बच्चा अपने त्याग, तपस्या और सेवा का वायब्रेशन विश्व में फैलाये। जैसे साइन्स का बल अपना प्रभाव प्रत्यक्ष रूप में दिखा रहा है, ऐसे साइन्स की भी रचयिता साइलेन्स बल है। साइलेन्स बल को अभी प्रत्यक्ष दिखाने का समय है। साइलेन्स बल का वायब्रेशन तीव्रगति से फैलाने का साधन है - मन-बुद्धि की एकाग्रता। यह एकाग्रता का अभ्यास बढ़ना चाहिए। एकाग्रता की शक्तियों द्वारा ही वायुमण्डल बना सकते हो। हलचल के कारण पावरफुल वायब्रेशन बन नहीं पाता।

बापदादा आज देख रहे थे कि एकाग्रता की शक्ति अभी ज्यादा चाहिए। सभी बच्चों का एक ही दृढ़ संकल्प हो कि अभी अपने भाई-बहिनों के दु:ख की घटनायें परिवर्तन हो जाएं। दिल से रहम इमर्ज हो। क्या जब साइन्स की शक्ति हलचल मचा सकती है तो इतने सभी ब्राह्मणों के साइलेन्स की शक्ति, रहमदिल भावना द्वारा वा संकल्प द्वारा हलचल को परिवर्तन नहीं कर सकते! जब करना ही है, होना ही है तो इस बात पर विशेष अटेन्शन दो। जब आप ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर के बच्चे हैं, आपके ही सभी बिरादरी हैं, शाखायें हैं, परिवार हैं, आप ही भक्तों के ईष्ट देव हो। यह नशा है कि हम ही ईष्ट देव हैं? तो भक्त चिल्ला रहे हैं, आप सुन रहे हो! वह पुकार रहे हैं - हे ईष्ट देव, आप सिर्फ सुन रहे हो, उन्हों को रेसपान्ड नहीं करते हो? तो बापदादा कहते हैं हे भक्तों के ईष्ट देव अभी पुकार सुनो, रेसपान्ड दो, सिर्फ सुनो नहीं। क्या रेसपान्ड देंगे? परिवर्तन का वायुमण्डल बनाओ। आपका रेसपान्ड उन्हों को नहीं मिलता तो वह भी अलबेले हो जाते हैं। चिल्लाते हैं फिर चुप हो जाते हैं।

ब्रह्मा बाप के हर कार्य के उत्साह को तो देखा ही है। जैसे शुरू में उमंग था, चाबी चाहिए। अभी भी ब्रह्मा बाप यही शिव बाप से कहते - अभी घर के दरवाजे की चाबी दो। लेकिन साथ जाने वाले भी तो तैयार हों। अकेला क्या करेगा! तो अभी साथ जाना है ना या पीछे-पीछे जाना है? साथ जाना है ना? तो ब्रह्मा बाप कहते हैं कि बच्चों से पूछो अगर बाप चाबी दे दे तो आप एवररेडी हो? एवररेडी हो या रेडी हो? रेडी नहीं, एवररेडी। त्याग, तपस्या, सेवा तीनों ही पेपर तैयार हो गये हैं? ब्रह्मा बाप मुस्कराते हैं कि प्यार के आंसू बहुत बहाते हैं और ब्रह्मा बाप वह आंसू मोती समान दिल में समाते भी हैं लेकिन एक संकल्प जरूर चलता कि सब एवररेडी कब बनेंगे! डेट दे देवें। आप कहेंगे कि हम तो एवररेडी हैं, लेकिन आपके जो साथी हैं उन्हें भी तो बनाओ या उनको छोड़कर चल पड़ेंगे? आप कहेंगे ब्रह्मा बाप भी तो चला गया ना! लेकिन उनको तो यह रचना रचनी थी। फास्ट वृद्धि की जिम्मेवारी थी। तो सभी एवररेडी हैं, एक नहीं, सभी को साथ ले जाना है ना या अकेले-अकेले जायेंगे? तो सभी एवररेडी हैं या हो जायेंगे? बोलो। कम से कम 9 लाख तो साथ जायें। नहीं तो राज्य किस पर करेंगे? अपने ऊपर राज्य करेंगे? तो ब्रह्मा बाप की यही सभी बच्चों के प्रति शुभ कामना है कि एवररेडी बनो और एवररेडी बनाओ।

आज वतन में भी सभी विशेष आदि रत्न और सेवा के आदि रत्न इमर्ज हुए। एडवांस पार्टी कहती है हम तो तैयार हैं। किस बात के लिए तैयार हैं? वह कहते हैं यह प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजायें तो हम सभी प्रत्यक्ष होकर नई सृष्टि की रचना के निमित्त बनेंगे। हम तो आह्वान कर रहे हैं कि नई सृष्टि की रचना करने वाले आवें। अभी काम सारा आपके ऊपर है। नगाड़ा बजाओ। आ गया, आ गया... का नगाड़ा बजाओ। नगाड़ा बजाने आता है? बजाना तो है ना! अभी ब्रह्मा बाप कहते हैं डेट ले आओ। आप लोग भी कहते हो ना कि डेट के बिना काम नहीं होता है। तो इसकी भी डेट बनाओ। डेट बना सकते हो? बाप तो कहते हैं आप बनाओ, आज ही बनाओ। कान्फ्रेन्स की डेट फिक्स किया है और यह, इसकी भी कान्फ्रेन्स करो ना! विदेशी क्या समझते हैं, डेट फिक्स हो सकती है? डेट फिक्स करेंगे? हाँ या ना! अच्छा - दादी जानकी के साथ राय करके करना। अच्छा।

देश विदेश के चारों ओर के, बापदादा के अति समीप, अति प्यारे और न्यारे, बापदादा देख रहे हैं कि सभी बच्चे लगन में मगन हो लवलीन स्वरूप में बैठे हुए हैं। सुन रहे हैं और मिलन के झूले में झूल रहे हैं। दूर नहीं हैं लेकिन नयनों के सामने भी नहीं, समाये हुए हैं। तो ऐसे सम्मुख मिलन मनाने वाले और अव्यक्त रूप में लवलीन बच्चे, सदा बाप समान त्याग, तपस्या और सेवा का सबूत दिखाने वाले सपूत बच्चे, सदा एकाग्रता की शक्ति द्वारा विश्व का परिवर्तन करने वाले विश्व परिवर्तक बच्चे, सदा बाप समान तीव्र पुरुषार्थ द्वारा उड़ने वाले डबल लाइट बच्चों को बापदादा का बहुत-बहुत-बहुत यादप्यार और नमस्ते।
वरदान:
अपने स्नेह के शीतल स्वरूप द्वारा विकराल ज्वाला रूप को भी परिवर्तन करने वाले स्नेही-मूर्त भव
स्नेह के रिटर्न में वरदाता बाप बच्चों को यही वरदान देते हैं कि “सदा हर समय, हर एक आत्मा से, हर परिस्थिति में स्नेही मूर्त भव।” कभी भी अपनी स्नेही मूर्त, स्नेह की सीरत, स्नेही व्यवहार, स्नेह के सम्पर्क-सम्बन्ध को छोड़ना, भूलना मत। चाहे कोई व्यक्ति, चाहे प्रकृति, चाहे माया कैसा भी विकराल रूप, ज्वाला रूप धारण कर सामने आये लेकिन उसे सदा स्नेह की शीतलता द्वारा परिवर्तन करते रहना। स्नेह की दृष्टि, वृत्ति और कृति द्वारा स्नेही सृष्टि बनाना।
स्लोगन:
कठिनाईयों को पार करने से ताकत आती है इसलिए उनसे घबराओ मत।