Tuesday, April 4, 2017

मुरली 5 अप्रैल 2017

05/04/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - योगबल से घाटे के खाते को चुक्तू कर, सुख का खाता जमा करो, व्यापारी बन अपना पूरा हिसाब निकालो”
प्रश्न:
तुम बच्चों ने बाप से कौन सी प्रतिज्ञा की है, उस प्रतिज्ञा को निभाने का सहज साधन क्या है?
उत्तर:
तुमने प्रतिज्ञा की है - मेरा तो एक शिवबाबा, दूसरा न कोई... भक्ति में भी कहते थे - बाबा जब आप आयेंगे तो हम और संग तोड़ एक आप से जोड़ेंगे। अब बाबा कहते हैं बच्चे देह सहित देह के सब सम्बन्धों को बुद्धि से त्यागकर एक मुझे याद करो। इस पुराने शरीर से भी दिल हटा दो, परन्तु इसमें मेहनत है। इस प्रतिज्ञा को निभाने के लिए सवेरे-सवेरे उठ अपने आपसे बातें करो वा ख्याल करो - अब यह नाटक पूरा होता है।
गीत:-
छोड़ भी दे आकाश सिंहासन....  
ओम् शान्ति।
बच्चे पुकारते हैं कि परमधाम से आओ। यह गीत गाया हुआ है पतित मनुष्यों का। वह खुद इनका अर्थ नहीं जानते। पुकारते भी हैं कि पतितों को पावन बनाने आओ क्योंकि इस समय है रावण राज्य। यह भी बच्चे जानते हैं कि भारत में दैवी श्रेष्टाचारी राज्य था। अभी तुम श्रेष्टाचारी बनने का पुरुषार्थ कर रहे हो। बाप कहते हैं बच्चे अभी तुमको वापिस चलना है। पुराना पाप का खाता चुक्तू करना है। व्यापारी लोग 12-12 मास पुराना खाता बन्द करते हैं। घाटे वा फायदे का हिसाब निकालते हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो भारत में हम आधाकल्प फायदे में, आधाकल्प घाटे में रहते हैं अर्थात् आधाकल्प सुख, आधाकल्प दु:ख पाते हैं। उसमें भी दु:ख बहुत थोड़ा पाते हैं, जबकि तमोप्रधान अवस्था होती है, व्यभिचारी भक्ति में चले जाते हैं। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। अब तुमको फायदे में जाना है। घाटे के खाते को अब योगबल से चुक्तू करना है। तुम्हारे पापों का खाता अब कटना चाहिए, फिर सुख का खाता जमा होना चाहिए। जितना तुम मुझे याद करेंगे उतना तुम्हारे पापों का खाता भस्म होगा और फिर पवित्र बन गीता का ज्ञान धारण करना है। यहाँ कोई गीता शास्त्र नहीं सुनाते हैं। यह गीता का ज्ञान भगवान ने दिया है। इस समय मनुष्यों की बुद्धि तमोप्रधान होने के कारण बाप को नहीं जानते इसलिए इनको आरफन्स कहा जाता है। तुम समझाते हो कि भारत पुण्य आत्मा, श्रेष्ठाचारियों की दुनिया थी, जिन्हों के चित्र भी हैं। भारत सतयुग आदि में बहुत साहूकार था और जो इस्लामी, बौद्धी आदि धर्म हैं, आरम्भ में होते ही थोड़े हैं। धर्म स्थापक आया फिर जो भी उस धर्म की आत्मायें हैं, वह आती जाती हैं। वह कोई राजाई में नहीं आते। अपने धर्म में आते हैं। जब लाखों करोड़ों की अन्दाज में हो जाते हैं तब राजा-रानी आदि बनते हैं। यहाँ तुम्हारी तो शुरू से लेकर राजाई चलती है। सतयुग आदि में ही लक्ष्मी-नारायण का राज्य था - भारत महान ऊंच था जब श्रेष्टाचारी था। ऊंचे ते ऊंचा भगवान गाया जाता है। उनको ही ट्रुथ कहते हैं। वह आकर सच्ची नॉलेज देते हैं और सभी बाप के बारे में झूठी ही नॉलेज देते हैं। सभी याद करते हैं ओ गॉड फादर। परन्तु फादर को कोई भी जानते नहीं हैं। कभी तुम पूछो - लौकिक फादर को जानते हो तो यह थोड़ेही कहेंगे वह सर्वव्यापी है। फादर माना फादर। फादर से तो वर्सा मिलता है। बाप समझाते हैं - मैं हूँ बेहद का रचयिता। मुझे बुलाते ही हैं पतित दुनिया में। प्रलय तो होती नहीं। यह सारी पतित दुनिया है। मुझे तुम बच्चों के लिए ही आना पड़ता है। तुम बच्चों को ही समझाता हूँ। मनुष्य गुरू आदि करते हैं - शान्ति के लिए। परन्तु वह सब हैं भक्ति मार्ग के लिए, हठयोग आदि सिखलाते हैं। उनसे कोई बेहद का वर्सा मिल नहीं सकता। गुरू करते हैं, उनसे अल्पकाल के लिए थोड़ा सुख मिलता है। वह सब हैं हद का सुख देने वाले। बेहद का बाप है बेहद का सुख देने वाला। बाप मुक्ति-जीवनमुक्ति की सौगात ले आते हैं। सतयुग में सिर्फ एक ही धर्म होता है। यहाँ तो कितने अनेक धर्म हैं, वृद्धि होती ही रहती है। अब फिर इतनी सब आत्माएं वापिस जायेंगी शान्तिधाम में। यह तुम बच्चों को सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान मिल रहा है। बाप है इस मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, उनके पास सारी नॉलेज है। सर्वव्यापी कहने से ज्ञान वा भक्ति की कोई बात ठहरती ही नहीं है। भगवान सर्वव्यापी है तो फिर भगवान की भक्ति करने की क्या दरकार है! भक्ति करते हैं परन्तु समझते नहीं हैं। पत्थर ठिक्कर सबकी भक्ति करते रहते हैं। गंगा में कितने स्नान करने जाते हैं। अगर वह पतित-पावनी हो तो फिर सबको पावन होना चाहिए। मुक्ति-जीवनमुक्ति धाम में जाना चाहिए। लेकिन जाता कोई नहीं है। एक गुरू वापिस जाये तो और फालोअर्स को भी ले जाये। लेकिन न खुद जाते, न फालोअर्स को कुछ कह सकते हैं। देह-अभिमान में बहुत हैं। ऐसे कोई भी नहीं कह सकेंगे कि हम निराकार परमपिता परमात्मा तुम बच्चों का बाप हूँ। तुमको साथ ले जाने आया हूँ। यह बाप को ही हक है। अब पुरानी दुनिया को छोड़ना है, इसलिए योगबल जरूर चाहिए। गफलत करने से पद नहीं पायेंगे।



तुम बच्चे जानते हो बाबा हमको लायक बना रहे हैं। बच्चे जो ना-लायक बन जाते हैं वह देवाला मारते हैं। कल्प-कल्प तुमको 100 परसेन्ट सालवेन्ट बनाता हूँ। फिर रावण तुमको इनसालवेन्ट बना देते हैं। समझते भी हैं बात ठीक है, अब बरोबर कलियुग का अन्त है, सतयुग आदि का संगम है। समझो मकान की आयु 100 वर्ष है। अगर 25 वर्ष बीत गये तो 1/4 पुराना हुआ। 50 वर्ष होंगे तो पुराना नाम रख देंगे। यह भी 4 भाग रखे जाते हैं। सतो रजो तमो अब फिर यह पुरानी दुनिया से नई दुनिया होगी। गोया सारी दुनिया को नया जन्म मिलना है। यह पुरानी दुनिया है। बाप कहते हैं अब मैं नया जन्म दे रहा हूँ। दुनिया पुराने से नई हो रही है। तुम आये हो राजयोग सीखने। तुम भी जानते हो इस ड्रामा के अन्दर हम एक्टर हैं। हम आत्मायें भी शरीर लेकर यहाँ पार्ट बजाने आई हैं। दुनिया में यह कोई नहीं जानता। अपने को एक्टर समझें तो क्रियेटर, डायरेक्टर को भी जान जायें। कहने मात्र सिर्फ कहते हैं यह कर्मक्षेत्र है। परन्तु कब से खेल शुरू हुआ, उनका क्रियेटर कौन है, कुछ भी नहीं जानते। मनुष्य को ही जानना चाहिए ना। बाकी यह आपस में लड़ना तो आरफन्स का काम हैं। देवताओं को आरफन्स नहीं कहेंगे। वहाँ लड़ाई-झगड़ा होता ही नहीं। यहाँ तो देखो बच्चे बाप को भी मार देते हैं। सभी पतित भ्रष्टाचारी हैं इसलिए दु:ख देते रहते हैं। आधाकल्प सम्पूर्ण निर्विकारी देवी-देवताओं का राज्य था। अभी तो एक भी सम्पूर्ण निर्विकारी नहीं है। अभी बाप तुमको श्रीमत देते हैं। यह पुरानी दुनिया खत्म होने वाली है। मैं आया हूँ नई दुनिया स्थापन करने। तुम प्रतिज्ञा भी करते हो बाबा आप आयेंगे तो हम और संग तोड़ एक आपके संग जोड़ेंगे। मेरा तो एक बाबा दूसरा न कोई। अब बाबा आये हैं कहते हैं, बच्चे देह सहित देह के सभी सम्बन्धों का त्याग कर मुझे याद करो। इसमें ही मेहनत है, कहते हैं - बाबा हम जानते हैं यह जो भी मित्र सम्बन्धी आदि हैं, यह सब मरे पड़े हैं। यह शरीर भी खत्म हो जायेगा, पुराना है। अब हम पुराना शरीर छोड़ नये में जायेंगे। पुराने शरीर से दिल हट जाती है। अभी हम गये कि गये। पुरानी दुनिया भस्म होनी है। बाप समझाते हैं सवेरे उठकर ऐसे-ऐसे ख्याल करो। अभी नाटक पूरा होता है, हमको वापिस जाना है। अब एक ही बाप की श्रीमत पर चलना है। अभी नई दुनिया में जाना है इसलिए जीते जी सबसे बुद्धियोग तोड़ एक से जोड़ना पड़े, इसमें बड़ा अभ्यास चाहिए। अभ्यास के लिए ही बाप कहते हैं सवेरे उठा। दिन में तो शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करना है। रात का अभ्यास वृद्धि को पाता है। जितना टाइम मिले बाबा को याद करो। बाबा की याद में तुम कितना भी पैदल करते जाओ, कभी थक नहीं सकते। योगबल की खुशी रहती है। याद का अभ्यास होगा तो कहाँ भी बैठे याद आ जायेगी। खाने पर भी याद में रहना है। फालतू वार्तालाप नहीं चलना चाहिए। बाप की याद से ही विकर्म विनाश होंगे। फिर अन्त मती सो गति हो जायेगी। अभी वापिस जाना है। सभी का सद्गति दाता, सबको श्रेष्टाचारी बनाने वाला, शान्तिदेश में ले जाने वाला एक ही बाप है। जन्म-जन्मान्तर तुमको बाप टीचर गुरू मिले परन्तु वह सब हैं जिस्मानी। कोई भी देही-अभिमानी बनना नहीं सिखलाते हैं। यह तो बेहद का बाप ज्ञान का सागर है। जो भी आत्मायें हैं उनमें संस्कार भरे हुए हैं। फिर शरीर धारण करने से वह इमर्ज होते हैं। अभी तुमको सारे ड्रामा की नॉलेज है और तो सभी मनुष्य घोर अन्धियारे में हैं। गाया भी हुआ है ज्ञान अंजन सतगुरू दिया। तो ज्ञान अंजन देने वाला ज्ञान सूर्य बाप है। सतयुग को दिन, कलियुग को रात कहा जाता है। आत्माएं उस निराकारी बाप को याद करती हैं। बाप समझाते हैं मैं तुम बच्चों को ब्रह्मा मुख द्वारा कल्प पहले मुआफिक सब भक्ति मार्ग के शास्त्रों का राज़ समझाता हूँ। यह सब भक्ति मार्ग की सामग्री है, जो आधाकल्प से चलती आती है। मनुष्य तो कह देते यह परम्परा से चलते आये हैं। रावण को भी परम्परा से जलाते आये हैं। त्योहार जो मनाते हैं वह सब कहते हैं परम्परा से चल रहे हैं। परम्परा का अर्थ क्या है? वह समझते नहीं। सतयुग की आयु लाखों वर्ष लिख दी है, तो मनुष्य घोर अन्धियारे में हैं ना। भक्ति कब से शुरू हुई, पावन कब बनें, कुछ भी जानते नहीं। भगवान पतितों को पावन कब बनाने आये? कहते भी हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले स्वर्ग था, परन्तु फिर भी अनेक मत हैं ना। कितनी मतें दुनिया में काम कर रही हैं। बाप आकर श्रेष्ठ मत देते हैं। श्रीमत से तुम श्रेष्ठ सो देवता बनते हो। रूद्र माला भी है। रूद्र भी निराकार भगवान ही ठहरे। वह है श्री श्री। देवताओं को कहेंगे श्री अर्थात् श्रेष्ठ। अभी तुम बच्चे जानते हो कि श्री श्री द्वारा श्रेष्ठ दुनिया बनती है। बाप श्री श्री है श्री बनाने वाला। यह सब बातें याद करनी है। कल्प पहले वाले ही समझेंगे। यह ज्ञान सब धर्म वालों के लिए है। सबको बाप कहते हैं - अपने को आत्मा समझो। बेहद के बाप से कितना सुख मिल रहा है। बेहद का बाप आकर इतने बच्चों को एडाप्ट करते हैं। यह मुख वंशावली हैं ना। कितने ढेर बी.के. हैं, जो फिर देवता बनने वाले हैं। यह है ईश्वरीय कुल। दादा है निराकार। उनके बच्चे का नाम है प्रजापिता ब्रह्मा, इन द्वारा एडाप्ट करते हैं। तुम ब्राह्मण हो शिवबाबा की फैमिली, फिर वृद्धि होती है। अभी तुम्हारी नम्बरवन बिरादरी है। तुम सर्विस करते हो, सबका कल्याण करते हो। तुम्हारा जड़ यादगार मन्दिर एक्यूरेट बना हुआ है। यहाँ तुम चैतन्य में बैठे हो। जानते हो हम फिर से स्थापना करते हैं। भक्ति में हमारे यादगार मन्दिर बनेंगे। शिवबाबा न होता तो तुम कहाँ होते। ब्रह्मा विष्णु शंकर कहाँ हैं? अभी शिवबाबा रचना रच रहे हैं ना। प्रजापिता ब्रह्मा का चित्र अलग होना चाहिए। त्रिमूर्ति ब्रह्मा कहते हैं परन्तु उनका तो कोई अर्थ ही नहीं।



तुम जानते हो - परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते हैं। करनकरावनहार शिवबाबा है। यह सब बातें धारण करने की हैं। शिवबाबा खुद राजयोग सिखला रहे हैं। नॉलेज दे रहे हैं तो वह धारण करनी चाहिए, इसमें प्योरिटी फर्स्ट है। हिम्मत भी दिखानी है। गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र रह दिखाना है। कोई बच्ची को बचाने के लिए भी स्वयंवर करते हैं, जिसको गन्धर्वी विवाह कहते हैं। फिर उसमें भी कोई फेल हो जाते हैं। कोई-कोई ऐसे भी होते हैं, जो शादी कर फिर पवित्र रहते हैं। पवित्र रह फिर नॉलेज भी लेनी है। धारण कर औरों को भी आप समान बनाकर दिखावें तब ऊंच पद पा सकें। इस ज्ञान-यज्ञ में विघ्न भी बहुत पड़ते हैं। यह तो सब होगा। ड्रामा में नूँध है। कई बच्चियाँ कहती हैं - हमें साहूकारी क्या करनी, इससे तो बर्तन मांज कर रोटी खाना अच्छा है, पवित्र तो रहेंगी। परन्तु हिम्मत चाहिए बहुत। अच्छा।



मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) भोजन करते समय याद में रहना है, फालतू वार्तालाप नहीं करनी है। याद से पापों का खाता चुक्तू करना है।
2) दिन में शरीर निर्वाह अर्थ कर्म कर, रात को जाग अपने आपसे बातें करनी हैं। ख्याल करना है कि यह नाटक पूरा हुआ, हम अब वापिस जाते हैं इसलिए जीते जी ममत्व मिटाना है।
वरदान:
एक बाप में सारे संसार की अनुभूति करते हुए एक की याद में रहने वाले सहज योगी भव
सहजयोग का अर्थ ही है-एक को याद करना। एक बाप दूसरा न कोई। तन-मन-धन सब तेरा, मेरा नहीं। ऐसे ट्रस्टी बन डबल लाइट रहने वाले ही सहजयोगी हैं। सहजयोगी बनने की सहज विधि है - एक को याद करना, एक में सब कुछ अनुभव करना। बाप ही संसार है तो याद सहज हो गई। आधाकल्प मेहनत की अभी बाप मेहनत से छुड़ाते हैं। लेकिन यदि फिर भी मेहनत करनी पड़ती है तो उसका कारण है अपनी कमजोरी।
स्लोगन:
महान आत्मा वह है जो पवित्रता रूपी धर्म को जीवन में धारण करता है।