Saturday, April 22, 2017

मुरली 23 अप्रैल 2017

23-04-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:22-03-82 मधुबन 

राज्य-सत्ता और धर्म-सत्ता के अधिकारी बच्चों से बापदादा की मुलाकात
बापदादा अपने सर्व अधिकारी बच्चों को देख रहे हैं। आप श्रेष्ठ आत्माओं के लिए जो गायन है कि राज्य सत्ता और धर्म की सत्ता– दोनों सत्ता एक के हाथ में रहती है। यह महिमा आपके भविष्य प्रालब्ध रूप की गाई हुई है। लेकिन भविष्य प्रालब्ध का आधार वर्तमान श्रेष्ठ जीवन है। बापदादा चारों ओर के बच्चों को देख रहे हैं कि राज्य सत्ता और धर्म सत्ता दोनों कहाँ तक प्राप्त की हैं। संस्कार सब इस समय ही आत्मा में भरते हैं। अब के राजे वही भविष्य में राज्य अधिकारी बन सकते हैं। अब की धारणा स्वरूप आत्मायें ही धर्म सत्ता प्राप्त कर सकती हैं। तो दोनों ही सत्तायें हरेक ने अपने में कहाँ तक धारण की हैं? राज्य सत्ता अर्थात् अधिकारी, अथॉरिटी स्वरूप। राज्य सत्ता वाली आत्मा अपने अधिकार द्वारा जब चाहे, जैसे चाहे वैसे अपनी स्थूल और सूक्ष्म शक्तियों को चला सकती है। यह अथॉरिटी राज्य सत्ता की निशानी है। दूसरी निशानी– राज्य सत्ता वाले हर कार्य को ला एण्ड आर्डर द्वारा चला सकते हैं। राज्य सत्ता अर्थात् मात-पिता के स्वरूप में अपनी प्रजा की पालना करने की शक्ति वाला। राज्य सत्ता अर्थात् स्वयं भी सदा सर्व में सम्पन्न और औरों को भी सम्पन्नता में रखने वाले। राज्य सत्ता अर्थात् विशेष सर्व प्राप्तियाँ होंगी– सुख, शान्ति, आनन्द, प्रेम सर्व गुणों के खजाने से भरपूर। स्वयं भी और सर्व भी खजानों से भरपूर। राज्य सत्ता वाले अर्थात् अधिकारी आत्मायें बने हो? मात-पिता के समान पालना की विशेषता अनुभव करते हो? जो भी आत्मायें सम्बन्ध वा सम्पर्क में आवें, वे अनुभव करें कि यही श्रेष्ठ आत्मायें हमारे पूर्वज हैं। इन्हीं आत्माओं द्वारा जीवन का सच्चा प्रेम और जीवन की उन्नति का साधन प्राप्त हो सकता है क्योंकि पालना द्वारा ही प्रेम और जीवन की उन्नति प्राप्त होती है। पालना द्वारा आत्मा योग्य बन जाती है। छोटा सा बच्चा भी पालना द्वारा अपनी जीवन की मंजिल को पहुंचने के लिए हिम्मतवान बन जाता है। ऐसे रूहानी पालना द्वारा आत्मा निर्बल से शक्ति स्वरूप बन जाती है। अपनी मंजिल की ओर तीव्रगति से पहुंचने की हिम्मतवान बन जाती है। पालना में वह सदा प्रेम के सागर बाप द्वारा सच्चे अथाह प्रेम की अनुभूति करती है। ऐसे राज्य सत्ता की निशानियां अपने में अनुभव करते हो? अधीनता के संस्कार परिवर्तन हो, अधिकारीपन के संस्कार अनुभव करते हो? राज्य सत्ता के संस्कार भर गये हैं? निशानियां तो यहाँ दिखाई देंगी वा भविष्य में? राज्य सत्ता की एक और भी विशेषता है, जानते हो? सदा अटल और अखण्ड राज्य। यह महिमा अपने राज्य की करते हो ना! यह भी निशानी चेक करो कि राज्य सत्ता की जो भी निशानियां हैं वह अटल और अखण्ड हैं? सत्ता खण्डित तो नही होती! अभी-अभी अधिकारी, अभी-अभी अधीन होगा तो उनको अखण्ड कहा जायेगा? इससे ही अपने आपको जान सकते हो कि मेरी प्रालब्ध क्या है– राज्य अधिकारी हूँ वा राज्य के अन्दर रहने वाला हूँ? इसी रीति धर्म सत्ता अर्थात् हर धारणा की शिक्त स्वयं में अनुभव करने वाली आत्मा। जैसे पवित्रता के धारणा की शक्ति अनुभव करने वाली। पवित्रता की शक्ति से सदा परमपूज्य बन जाते। पवित्रता की शक्ति से इस पतित दुनिया को परिवर्तन कर लेते हो। पवित्रता की शक्ति विकारों की अग्नि में जलती हुई आत्माओं को शीतल बना देती है। पवित्रता की शक्ति आत्मा को अनेक जन्मों के विकर्मों के बन्धन से छुड़ा देती है। पवित्रता की शक्ति नेत्रहीन को तीसरा नेत्र दे देती है। पवित्रता की शक्ति से इस सारे सृष्टि रूपी मकान को गिरने से थमा सकते हैं। पवित्रता पिलर्स हैं जिसके आधार पर द्वापर से यह सृष्टि कुछ न कुछ थमी हुई है। पवित्रता लाइट का क्राउन है। ऐसे पवित्रता की धारणा– यह है धर्म सत्ता। इसी प्रकार हर गुण की धारणा, हर गुण की विशेषता आत्मा में समाई हुई हो, इसको कहा जाता है धर्म सत्ता। धर्म सत्ता अर्थात् धारणा की सत्ता। ऐसी धर्म सत्ता वाली आत्मायें बने हो? धर्म में दो विशेषतायें होती हैं। धर्म सत्ता स्व को और सर्व को सहज परिवर्तन कर लेती है। परिवर्तन शक्ति स्पष्ट होगी। सारे चक्र में देखो जो भी धर्म सत्ता वाली आत्मायें आई हैं उन्हों की विशेषता है– मनुष्य आत्माओं को परिवर्तन करना। साधारण मनुष्य से परिवर्तन हो कोई बौद्धी, कोई क्रिश्चियन बना, कोई मठ पंथ वाले बने। लेकिन परिवर्तन तो हुए ना! तो धर्म सत्ता अर्थात् परिवर्तन करने की सत्ता। पहले स्वयं को फिर औरों को। धर्म सत्ता की दूसरी विशेषता है– परिपक्वता। हिलने वाले नहीं। परिपक्वता की शक्ति द्वारा ही परिवर्तन कर सकेंगे। चाहे सितम हों, ग्लानी हो, आपोजिशन हो लेकिन अपनी धारणा में परिपक्व रहें। यह हैं धर्म सत्ता की विशेषतायें। धर्म सत्ता वाले हर कर्म में निर्माण होंगे। जितना ही गुणों की धारणा सम्पन्न होंगे अर्थात् गुणों रूपी फल स्वरूप होंगे उतना ही फल सम्पन्न होते भी निर्माण होंगे। अपनी निर्माण स्थिति द्वारा ही हर गुण को प्रत्यक्ष कर सकेंगे। जो भी ब्राह्मण कुल की धारणायें हैं उन सर्व धारणाओं की शक्ति होना अर्थात् धर्म सत्ताधारी होना। तो राज्य सत्ता और धर्म सत्ता दोनों संस्कार हर आत्मा में भर गये हैं! दोनों का बैलेन्स है? आज बापदादा सभी बच्चों का यह चार्ट देख रहे थे कि कहाँ तक धर्म सत्ता और राज्य सत्ता अधिकारी बने हैं! नम्बरवार होंगे वा सभी एक जैसे होंगे? मेरा नम्बर क्या है, यह जान सकते हो? यहाँ सब राजे बैठे हो ना! प्रजा बनाने वाले हो ना! स्वयं तो प्रजा नहीं हो ना! तो सभी अपने को ऐसे राज्य सत्ता और धर्म सत्ता अधिकारी बनाओ। समझा– राज्य वंश की निशानियाँ क्या हैं? देहली और महाराष्ट्र जोन वाले बैठे हैं ना! राजधानी वाले भी राज्य अधिकारी बनेंगे ना! और महाराष्ट्र वाले महान बनेंगे। महान अर्थात् राज्य अधिकारी। तो दोनों ही स्थान की महान श्रेष्ठ आत्मायें आई हुई हैं। और विदेशी क्या बनेंगे? राज्य करने वाले वा राज्य को देखने वाले बनेंगे? सबसे आगे जायेंगे ना! अच्छा। ऐसे राज्य सत्ता और धर्म सत्ता अधिकारी, सदा सम्पन्न बन औरों को सम्पन्न बनाने वाले, परिवर्तन शक्ति द्वारा स्व परिवर्तन और विश्व परिवर्तन करने वाली श्रेष्ठ आत्मायें, सारा कल्प महिमा और पूजन होने वाली पवित्र आत्मायें, सदा अपने पवित्रता के गुण द्वारा सर्व को गुणवान बनाने वाली गुण मूर्त आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते। पार्टियों के साथ समय के प्रमाण स्वयं को परिवर्तन करो अभी समय के प्रमाण परिवर्तन की गति तीव्र चाहिए। जब समय तीव्रगति में जा रहा है और परिवर्तन करने वाले तीव्रगति में नहीं होंगे तो समय परिवर्तन हो जायेगा और स्वयं कमी वाले ही रह जायेंगे। कमी वाली आत्माओं की निशानी क्या दिखाई है? कमान। तो कमानधारी बनना है वा छत्रधारी बनना है? सूर्यवंशी बनना है ना? तो सूर्य सदा तेज होता है और तीव्रगति में कार्य करता है। सूर्य के अन्तर में चन्द्रमा शीतल गाया जाता है। तो पुरूषार्थ में शीतल नहीं होना है। पुरूषार्थ में शीतल हुए तो चन्द्रवंशी हो जायेंगे। सूर्यवंशी की निशानी है तीव्र पुरूषार्थ– सोचा और किया, ऐसे नहीं सोचा एक वर्ष पहले और किया दूसरे वर्ष में। तीव्र पुरूषार्थ अर्थात् उड़ती कला वाले। अभी चढ़ती कला वाले का समय भी चला गया। अब तो आगे बढ़ने का बहुत सहज साधन मिला हुआ है सिर्फ एक शब्द की गिफ्ट है– वह कौन सी? “मेरा बाबा”– यही एक शब्द ऐसी लिफ्ट है जो एक सेकण्ड में नीचे से ऊपर जा सकते हो। क्या यह लिफ्ट यूज करने नहीं आती? अब लिफ्ट का जमाना है फिर सीढ़ी क्यों चढ़ते हो! लिफ्ट में कोई थकावट नहीं होती। सोचा और पहुँचा। तो कौन हो? एक ही शब्द की लिफ्ट है, ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं एक शब्द एक नम्बर में पहुँचा देगा। जब “मेरा बाबा” हुआ तो मैं उसमें समा गई। इतनी सहज लिफ्ट यूज करो– यूज करने वाले पहुंच जाते और देखने वाले, सोचने वाले रह जाते। तो अब एक शब्द के स्मृति स्वरूप होकर सदा समर्थ आत्मा बन आओ। सदा हर कदम बढ़ाते दूसरों को भी आगे बढ़ाते रहो। जितना स्वयं सम्पन्न होंगे उतना औरों को भी सम्पन्न बना सकेंगे।

अव्यक्त मुरलियों से (प्रश्न-उत्तर)

प्रश्न: कोई भी पुरूषार्थ की सिद्धि का आधार क्या है?

उत्तर: यथार्थ विधि। जो भी संकल्प करते हो, अगर यथार्थ विधि-पूर्वक है तो सिद्धि जरूर प्राप्त होगी। अगर विधि नहीं है तो समझो कि सिद्धि भी नहीं है इसलिए भक्ति मार्ग में भी जो कोई कार्य करते हैं या कराते हैं, वैल्यु उसकी विधि पर ही होती है।

प्रश्न: किस विधि से सेवा करने से ही सिद्धि की प्राप्ति होगी?

उत्तर: तीन रूपों से और तीन रीति से साथ-साथ सर्विस करो तो सिद्धि प्राप्त होगी। वह तीन रूप हैं: 1) नॉलेजफुल 2) पावरफुल और 3) लवफुल- लव में लॉ भी आ जाता है। इसके साथ तीन रीति हैं– मन्सा-वाचा और कर्मणा। जब वाणी द्वारा सर्विस करते हो, तो मन्सा भी पॉवरफुल हो। पॉवरफुल स्टेज से उसकी मन्सा को चेन्ज कर फिर वाणी द्वारा उसको नॉलेजफुल बना दो और फिर कर्मणा द्वारा अर्थात् जो भी सम्पर्क में आते हैं तो ऐसा लवफुल सम्पर्क हो जो ऑटोमेटिकली वह स्वयं महसूस करे कि हम कोई अपने ईश्वरीय परिवार (गॉडली फेमिली) में ही पहुंच गया हूँ। आपकी चलन ऐसी हो जिससे वह स्वयं महसूस करे कि वास्तव में यही मेरा असली परिवार है।

प्रश्न: पॉवरफुल स्टेज की निशानी क्या होगी?

उत्तर: जिन बच्चों की पावरफुल स्टेज है वे एक सेकेण्ड में कोई भी वायुमण्डल या वातावरण को, माया की कोई भी समस्या को खत्म कर देंगे, वे कभी हार नहीं खायेंगे। जो भी आत्मायें समस्या का रूप बनकर आती हैं, वह उनके ऊपर बलिहार जायेंगी जिसको दूसरे शब्दों में प्रकृति दासी कहते हैं।

प्रश्न: सर्व सब्जेक्ट्स में हम कहाँ तक पास हैं, इसकी परख क्या है?

उत्तर: जो जिस सब्जेक्ट्स में जितना पास होगा उतना ही उस सब्जेक्ट्स के आधार पर उन्हें ऑब्जेक्ट (लक्ष्य) और रेसपेक्ट मिलेगी। साथ-साथ प्राप्ति का अनुभव भी होगा। जैसे ज्ञान की सब्जेक्ट है तो उससे लाइट और माइट की प्राप्ति का अनुभव करेंगे। उस नॉलेज की सब्जेक्ट के आधार पर चाहे दैवी परिवार से, चाहे अन्य आत्माओं से रेस्पेक्ट भी इतनी मिलेगी। ऐसे ही योग की सब्जेक्ट्स की आबजेक्ट– वो जो भी संकल्प करेंगे वह समर्थ होगा। जो भी कोई समस्या आने वाली होगी, उनका पहले ही योग की शक्ति से अनुभव होगा कि यह होने वाला है इसलिए वे कभी भी हार नहीं खायेंगे। योग की शक्ति द्वारा अपने पिछले संस्कारों का बोझ खत्म होता जायेगा। कोई भी संस्कार अपने पुरूषार्थ में विघ्न रूप नहीं बनेगा।

प्रश्न: किसी भी सबजेक्ट की आबजेक्ट को चेक करने का साधन क्या है?

उत्तर: आबजेक्ट को चेक करने का साधन है रेस्पेक्ट। अगर मैं नॉलेजफुल हूँ तो जिसको भी नॉलेज देती हूँ वह इस नॉलेज को इतना रेस्पेक्ट देंगे। नॉलेज को रेस्पेक्ट देना अर्थात् नॉलेजफुल को रेसपेक्ट देना। जब हर सब्जेक्ट में व संकल्प में आब्जेक्ट और रेस्पेक्ट की प्राप्ति होगी तो परफेक्ट बन जायेंगे।

प्रश्न: जो हर सबजेक्ट में परफेक्ट हैं-उनकी निशानी क्या होगी?

उत्तर: जो परफेक्ट हैं वह कोई भी इफेक्ट से दूर होंगे। शरीर के, संकल्पों के, सम्पर्क में आने वाली आत्माओं के वायब्रेशन या वायुमण्डल के प्रभाव अथवा इफेक्ट से परे हो जायेंगे। अच्छा– ओम् शान्ति।
वरदान:
मास्टर स्नेह के सागर बन घृणा भाव को समाप्त करने वाले नॉलेजफुल भव
नॉलेजफुल अर्थात् ज्ञानी तू आत्मा बच्चे हर एक के प्रति मास्टर स्नेह के सागर होते हैं। उनके पास स्नेह के बिना और कुछ है ही नहीं। आजकल सम्पत्ति से भी ज्यादा स्नेह की आवश्यकता है। तो मास्टर स्नेह के सागर बन अपकारी पर भी उपकार करो। जैसे बाप सभी बच्चों के प्रति रहम और कल्याण की भावना रखते हैं, ऐसे बाप समान क्षमा के सागर और रहमदिल बच्चों में भी किसी के प्रति घृणा भाव नहीं हो सकता।
स्लोगन:
हदों को समाप्त कर बेहद की दृष्टि और वृत्ति को अपनाना ही युनिटी का आधार है।