Thursday, April 13, 2017

मुरली 14 अप्रैल 2017

14-04-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– बाप को याद करने की आदत डालो तो देही-अभिमानी बन जायेंगे, नशा वा खुशी कायम रहेगी, चलन सुधरती जायेगी”
प्रश्न:
ज्ञान अमृत पीते हुए भी कई बच्चे ट्रेटर बन जाते हैं– कैसे?
उत्तर:
जो एक ओर ज्ञान अमृत पीते दूसरी ओर जाकर गंद करते अर्थात् आसुरी चलन चल डिससर्विस करते, ईश्वर के बच्चे बनकर अपनी चलन सुधारते नहीं, आपस में मायावी बातें करते, एक दो को दु:खी करते, वह हैं ट्रेटर। बाबा कहते बच्चे, तुम यहाँ आये हो असुर से देवता बनने, तो सदा एक दो में ज्ञान की चर्चा करो, दैवीगुण धारण करो, अन्दर जो भी अवगुण हैं उन्हें निकाल दो। बुद्धि को स्वच्छ, साफ बनाओ।
गीत:
तकदीर जगाकर आई हूँ....   
ओम् शान्ति।
ओम् शान्ति। बच्चों ने गीत सुना और बच्चों ने ही गाया। कोई भी स्कूल में जब जाते हैं तो तकदीर बुद्धि में रहती है कि यह इम्तहान पास करूँगा। बुद्धि में तकदीर की एम ऑब्जेक्ट रहती है। अब तुम बच्चे जानते हो हम अपनी तकदीर में नई दुनिया को धारण कर बैठे हैं। नई दुनिया को रचने वाले परमपिता परमात्मा से हम वर्सा लेने की तकदीर ले आये हैं। कौन सा वर्सा? मनुष्य से देवता वा नर से नारायण बनने का वर्सा। इस रावण के भ्रष्टाचारी राज्य से ले जाते हैं। यह है रावण का भ्रष्टाचारी राज्य, भ्रष्टाचारी विकार से पैदा होते हैं और विकारी को ही भ्रष्टाचारी कहा जाता है। भगवानुवाच, काम महाशत्रु है, तुमको इन पर जीत पानी है, तब ही श्रेष्टाचारी बनेंगे। भारत ही भ्रष्टाचारी, भारत ही श्रेष्टाचारी बनेगा। मूत पलीती को ही भ्रष्टाचारी कहा जाता है। सतयुग में भ्रष्टाचारी होते ही नहीं क्योंकि वहाँ माया का राज्य ही नहीं है। इस समय है ही रावण राज्य। सबमें 5 विकार हैं। सतयुग में भी अगर रावणराज्य होता तो वहाँ भी रावण को जलाते। वहाँ यह बातें होती नहीं। वहाँ हैं श्रेष्ठाचारी। भ्रष्टाचारी दुनिया में कोई ऊंच पोजीशन पर है तो सब उनको मानते हैं। जैसे सन्यासी बहुत अच्छी पोजीशन पर हैं तो सब उनको मानते हैं, क्योंकि वे पवित्र रहते हैं तब ही सब मनुष्य उनको अच्छा समझते हैं। गवर्नमेन्ट भी अपने से अच्छा समझती है। उन्हों को अपना राज-गुरू भी बनाती है। सतयुग में तो गुरू का नाम होता ही नहीं। गुरू अर्थात् सद्गति करने वाले। शास्त्रों में तो कहानियाँ बना दी हैं। राजा जनक ने उन्हें जेल में डाल दिया जिनमें ब्रह्म ज्ञान, राजयोग का ज्ञान नहीं था। जब उन्हें राजयोग का ज्ञान मिला तब सेकेण्ड में जीवनमुक्ति को पाया। भ्रष्टाचारी का सिर्फ यह अर्थ नहीं है कि रिश्वत अ दि खाते हैं। नहीं, बाप कहते हैं जो भी मनुष्य मात्र हैं सब भ्रष्टाचारी हैं क्योंकि सबके शरीर विकार से पैदा होते हैं। तुम्हारा शरीर भी विकार से पैदा हुआ है। परन्तु अभी तुम अपने को आत्मा समझ बाप के बने हो, देह- अभिमान छोड़ दिया है इसलिए तुम परमपिता परमात्मा की मुख वंशावली हो, ईश्वरीय सन्तान हो। परमपिता परमात्मा ने आकर तुम आत्माओं को अपना बनाया है। यह बहुत गुह्य बातें हैं। हम आत्मा परमपिता परमात्मा की वंशावली बने हैं। आत्मा कहती है– बाबा। सतयुग में आत्मा कोई परमात्मा को बाबा नहीं कहेगी। वहाँ तो जीव आत्मा, जीव आत्मा को बाबा कहेगी। तुम जीव आत्मा हो। अब बाबा ने कहा है अपने को आत्मा निश्चय कर परमात्मा को याद करो। सबसे उत्तम जन्म तुम ब्राह्मणों का है। आत्मा कहती है हम आपके बच्चे बने हैं। गर्भ से थोड़ेही निकले हैं। बाबा को पहचान कर उनके बने हैं। शिवबाबा हम आपके ही हैं और आपकी ही मत पर चलेंगे। कितनी सूक्ष्म बातें हैं। बाबा ने कहा है, जब बाबा के पास जाते हो तो यह निश्चय करो कि हम शिवबाबा के सामने बैठे हैं। आत्मा भी निराकार है तो शिवबाबा भी निराकार है। शिवबाबा की याद से ही विकर्म विनाश होते हैं। याद नहीं किया तो भ्रष्टाचारी बनें। कितनी कड़ी बातें हैं, परन्तु बहुत बच्चों को यह भूल जाता है कि मैं आत्मा परमपिता परमात्मा की गोद में बैठी हूँ। भूलने के कारण वह नशा और खुशी नहीं रहती है। बाबा को याद करने की आदत पड़ जाए तो देही-अभिमानी बन जावें। विलायत में बहुत बच्चियाँ हैं, सम्मुख नहीं हैं। परन्तु बाबा को याद करती हैं। बाबा को बहुत प्यार से याद करना है। जैसे सजनी साजन को कितना प्यार से याद करती है। चिठ्ठी नहीं आती है तो सजनी बहुत हैरान हो जाती है। तुम सजनियों को तो धक्का खा-खा कर साजन मिला है तो याद अच्छी रहनी चाहिए। चलन भी बड़ी अच्छी चाहिए। आसुरी चलन वाले का गला ही घुट जाता है। बाबा चलन से ही समझ जाते हैं– यह याद नहीं करते हैं इसलिए धारणा नहीं होती है। सर्विस नहीं कर सकते हैं तो पद भी नहीं पा सकेंगे। पहले पहले तो बाप का बनना है। बी.के. बनना पड़े। बी.के. को जरूर शिवबाबा ही याद रहेगा क्योंकि दादे से वर्सा लेना है। याद में रहना बड़ी मेहनत है। ऐसे कोई मत समझे भोग लगता है हम वह खाते हैं तो बुद्धियोग बाबा से लग जायेगा। नहीं, यह तो शुद्ध भोजन है। परन्तु वह मेहनत न करे तो कुछ भी नहीं हुआ। श्रेष्टाचारी याद से ही बनेंगे। पवित्रता फर्स्ट है। आत्मा को शुद्ध बनाने के लिए योग का बल चाहिए, पानी में स्नान आदि करने से तो पावन बन नहीं सकते क्योंकि पतित आत्मा ही बनती है। ऐसे थोड़ेही कहेंगे– जेवर झूठा है, सोना सच्चा है। वो लोग समझते हैं आत्मा शुद्ध है। जेवर (शरीर) झूठा है, उनको हम साफ करते हैं। परन्तु नहीं। आत्मा अगर शुद्ध होती तो शरीर भी शुद्ध होता। यहाँ एक भी श्रेष्ठ नहीं है। सतयुग में ऐसे नहीं कहेंगे। वह तो सम्पूर्ण निर्विकारी हैं, चोला विकारी हो तो आत्मा फिर पवित्र कैसे हो सकती। सोना पवित्र है और जेवर झूठे बनें, यह कैसे हो सकता। यह अच्छी तरह समझाना है, इस समय कोई भी श्रेष्ठाचारी नहीं है। बाप को भी नहीं जानते हैं और पवित्र भी नहीं हैं। तुम बच्चे जानते हो कि गरीब ही गुप्त पुरूषार्थ करके राज्य भाग्य लेते हैं बाकी तो सबका विनाश होना है। यह ज्ञान है भारत के लिए। बाबा कहते हैं मेरे भक्तों को यह ज्ञान सुनाओ। शिव के पुजारी हो या देवताओं के पुजारी हों। दूसरे धर्मों में भी बहुत कनवर्ट हो गये हैं। उनसे भी निकल आयेंगे। मूल बात है यहाँ की पवित्रता, तब तो अपवित्र मनुष्य उन्हों को अपना गुरू बनाए माथा टेकते हैं। परमात्मा तो है एवर पवित्र। उनको सम्पूर्ण निर्विकारी भी नहीं कह सकते हैं। परमात्मा की महिमा अलग है। देवताओं की महिमा अलग गाई जाती है– सम्पूर्ण निर्विकारी ...। उनको फिर विकारी जरूर बनना है। यह बातें बुद्धि में धारण कर फिर औरों को भी समझाना है। यादव और कौरव... यथा राजा रानी तथा प्रजा सबने विनाश को पाया है। बाकी जयजयकार पाण्डव सेना की हुई। वह है गुप्त। शास्त्रों में तो दिखाया है– पाण्डव पहाड़ों पर गल गये। प्रलय का हिसाब निकाल दिया है, परन्तु प्रलय तो होती नहीं है। गीता का भगवान कहते हैं मैं धर्म की स्थापना करता हूँ। पतित दुनिया में आया हूँ पावन राज्य बनाने। राजयोग सिखाने आया हूँ। यह जो प्रदर्शनी होती है, उसमें राजयोग भी सिखाया जाता है। तुम्हारा सारा मदार है समझाने पर। बाबा ने कहा था यह चित्र बनाओ कि कैसे हम राजयोग में रहते हैं। ऊपर में शिवबाबा का चित्र हो। हम शिवबाबा की याद में बैठे हैं। उनकी मत पर चलते हैं। वह है श्री श्री रूद्र, जो हमको श्रेष्ठ बनाते हैं। श्री श्री का टाइटिल वास्तव में उनका ही है। यह भारत क्यों इतना गिरा है? एक तो ईश्वर को सर्वव्यापी समझ बैठे और अपने को ईश्वर मान बैठे। तुम जानते हो सतगुरू तो एक ही बाप है। उनकी यह जन्म भूमि है। सच्ची-सच्ची सत्य नारायण की कथा बाप ही आकर सुनाए बेड़ा पार करते हैं। बाप कहते हैं– पतित-पावन तो तुम मुझे ही कहते हो ना। मुझे ही सबको वापिस ले जाना है। यह है कयामत का समय, जबकि हिसाब-किताब चुक्तू कर हम वापिस जाते हैं। सब कहते हैं नव भारत, नव देहली हो। अब नव भारत तो स्वर्ग ही था। अब तो नर्क है ना। भ्रष्टाचारी बनते जाते हैं। यह समझने और समझाने की बातें हैं। आत्मा और परमात्मा का रूप भी कोई नहीं जानते हैं। भल कहते हैं हम आत्मा, परमात्मा की सन्तान हैं परन्तु नॉलेज चाहिए ना। बाप में नॉलेज है। आत्मा में नॉलेज कहाँ है। हम आत्मा कितने पुनर्जन्म लेती हैं, कहाँ रहती हैं, फिर कैसे आती हैं, क्यों दु:खी बनती हैं..... कुछ भी समझ नहीं है। तुम बच्चे जानते हो बाबा हम आत्माओं को पवित्र बनाने आया है। तो वह दैवीगुण भी चाहिए। मैं देवता बन रहा हूँ, तो मेरे में कोई भी अवगुण नहीं होना चाहिए। नहीं तो सौ गुणा दण्ड खाना पड़ेगा। पवित्रता की प्रतिज्ञा करके फिर कोई बुरा कर्तव्य करते हैं तो 100 प्रतिशत अपवित्र भी बन पड़ते हैं। सर्विस के बदले और ही डिससर्विस करते हैं, इसलिए फिर पद भ्रष्ट हो जाता है। हमेशा आपस में एक दो में ज्ञान की चर्चा चलनी चाहिए। हम बाबा के पास आये हैं कांटे से फूल अथवा मनुष्य से देवता बनने, बाप से स्वर्ग का वर्सा लेने। यही बात एक दो को सुनानी चाहिए। आत्मा और परमात्मा का रूप भी कोई जानते ही नहीं। भल कहते हैं आत्मा परमात्मा की सन्तान है। परन्तु नॉलेज चाहिए, धारणा चाहिए, जो मायावी बातें करते हैं, किसको दु:खी करते हैं उनको ट्रेटर कहा जाता है। यह भी दिखाया है ना कि असुरों को ज्ञान अमृत पिलाया फिर वह बाहर जाकर गंद करते थे। ऐसे भी बहुत हैं जो ज्ञान अमृत पीते भी रहते हैं और डिस-सर्विस भी करते रहते हैं। वास्तव में तुम सब कन्याये हो, अरे अधर-कुमारी के तो मन्दिर बने हुए हैं। देलवाड़ा तो तुम्हारा एक्यूरेट यादगार है। तुम्हारे में भी किसकी बुद्धि में मुश्किल बैठता है। बुद्धि बड़ी साफ चाहिए। तुम अभी ईश्वरीय परिवार के हो। तो ख्याल करना चाहिए कि हमारी चलन कितनी अच्छी चाहिए। जो मनुष्य समझें कि इनको बरोबर श्रीमत मिलती है। यहाँ श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनें, तब वहाँ पद मिले। श्रेष्ठ यहाँ बनना है। गृहस्थ व्यवहार में रहते यह अन्तिम जन्म पवित्र रहना है। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) शुद्ध भोजन खाते हुए भी आत्मा को पावन बनाने के लिए याद की मेहनत जरूर करनी है। याद से ही श्रेष्टाचारी बनना है। विकर्म विनाश करने हैं।
2) इस कयामत के समय में जबकि घर वापिस जाना है तो पुराना सब हिसाब-किताब चुक्तू कर देना है। आपस में ज्ञान की चर्चा करनी है। मायावी बातें नहीं करनी है।
वरदान:
समय और वायुमण्डल को परखकर स्वयं को परिवर्तन करने वाले सर्व के स्नेही भव
जिसमें परिवर्तन शक्ति है वो सबका प्यारा बनता है, वह विचारों में भी सहज होगा। उसमें मोल्ड होने की शक्ति होगी। वह कभी ऐसे नहीं कहेगा कि मेरा विचार, मेरा प्लैन, मेरी सेवा इतनी अच्छी होते हुए भी मेरा क्यों नहीं माना गया। यह मेरापन आया माना अलाए मिक्स हुआ इसलिए समय और वायुमण्डल को परखकर स्वयं को परिवर्तन कर लो-तो सर्व के स्नेही, नम्बरवन विजयी बन जायेंगे।
स्लोगन:
समस्याओं को मिटाने वाले बनो-समस्या स्वरूप नहीं।