Sunday, January 8, 2017

मुरली 8 जनवरी 2017

08-01-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:10-01-82 मधुबन

“स्वराज्य अधिकारी आत्माओं का आसन– कर्मातीत स्टेज”
आज बापदादा राज्य सभा को देख रहे हैं। हरेक बच्चा स्वराज्य अधिकारी अपने नम्बरवार कर्मातीत स्टेज के तख्त अधिकारी हैं। वर्तमान संगमयुगी स्वराज्य अधिकारी आत्माओं का आसन कहो वा सिंहासन कहो, वह है कर्मातीत स्टेज। कर्मातीत अर्थात् कर्म करते भी कर्म के बन्धनों से अतीत। कर्मों के वशीभूत नहीं लेकिन कर्मेन्द्रियों द्वारा हर कर्म करते हुए अधिकारीपन के नशे में रहने वाले। बापदादा हर बच्चे के नम्बरवार राज्य अधिकार के हिसाब से नम्बरवार सभा देख रहे हैं। तख्त भी नम्बरवार है और अधिकार भी नम्बरवार है। कोई सर्व अधिकारी है और कोई अधिकारी है। जैसे भविष्य में विश्व महाराजा और महाराजा-अन्तर है। ऐसे यहाँ भी सर्व कर्मेन्द्रियों के अधिकारी अर्थात् सर्व कर्मों के बन्धन से मुक्त– इसको कहा जाता है सर्व अधिकारी। और दूसरे सर्व नहीं, लेकिन अधिकारी हैं। तो दोनों ही नम्बर की तख्तनशीन दरबार देख रहे हैं। हरेक राज्य अधिकारी के मस्तक पर बहुत सुन्दर रंग-बिरंगी मणियां चमक रही हैं। यह मणियां हैं– दिव्य गुणों की। जितना-जितना दिव्य गुणधारी बने हो उतनी ही मणियां मस्तक पर चमक रही हैं। किसकी ज्यादा हैं, किसकी कम हैं। चमक भी हरेक की अपनी-अपनी है। ऐसा अपना राज्य सभा का राज्य अधिकारी चित्र नॉलेज के दर्पण में दिखाई दे रहा है? सभी के पास दर्पण तो है? कर्मातीत चित्र देख सकते हो ना? देख रहे हो अपना चित्र? कितनी सुन्दर राज्य सभा है। कर्मातीत स्टेज का तख्त कितना श्रेष्ठ तख्त है। इसी स्टेज की अधिकारी आत्मायें अर्थात् तख्तनशीन आत्मायें विश्व के आगे ईष्ट देव के रूप में प्रत्यक्ष होंगी। स्वराज्य अधिकारी सभा अर्थात् ईष्ट देव सभा। सभी अपने को ऐसे इष्ट देव आत्मा समझते हो? ऐसे परम पवित्र, सर्व प्रति रहमदिल, सर्व प्रति मास्टर वरदाता, सर्व प्रति मास्टर रूहानी स्नेह के सागर, सर्व प्रति शुभ भावनाओं के सागर, ऐसे पूज्य ईष्ट देव आत्मा हो। सभी ब्राह्मण आत्माओं में नम्बरवार यह सब संस्कार समाये हुए हैं। लेकिन इमर्ज रूप में अभी तक कम हैं। अभी इस ईष्ट देवात्मा के संस्कार इमर्ज करो। वर्णन करने के साथ स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप बन स्टेज पर आओ। इस वर्ष में सर्व आत्मायें यही अनुभव करें कि जिन्हें हम ढूंढते हैं, जिन आत्माओं को हम चाहते हैं, जिन श्रेष्ठ आत्माओं से हम कुछ चाहना रखते थे, वही श्रेष्ठ आत्मायें यही हैं। सबके मुख से वा मन से यही आवाज निकले, कि यह वही हैं। ऐसे अनुभव करें बस इन्हों से मिले तो बाप से मिले। जो कुछ मिला है इन्हों द्वारा ही मिला है। यही मास्टर हैं, गाइड हैं, एंजिल हैं, मैसेन्जर हैं। बस यही हैं, यही हैं, और वही हैं– यह धुन सभी के अन्दर लग जाए। इन्हीं दो शब्दों की धुन हो– “यही हैं और वही हैं”। मिल गये-मिल गये...यह खुशी की तालियां बजायें। ऐसे अनुभव कराओ। ऐसी अनुभूति कराने के लिए विशेष अष्ट शक्ति स्वरूप, अलंकारी शक्ति स्वरूप चाहिए। लेकिन शक्ति स्वरूप भी मां के स्वरूप में चाहिए। आजकल सिर्फ शक्ति स्वरूप से भी सन्तुष्ट नहीं होंगे लेकिन शक्ति माँ। जो प्रेम और पालना देकर हर बाप के बच्चे को खुशी के झूले में झुलाये, तब बाप के वर्से के अधिकारी बन सकें। बाप से मिलाने के योग्य बनाने में आप निमित्त शक्ति के रूप में ऐसा पवित्र प्रेम और अपनी प्राप्तियों द्वारा श्रेष्ठ पालना दो, योग्य बनाओ अर्थात् योगी बनाओ। मास्टर रचयिता बनना तो सबको आता है। अल्पकाल प्राप्ति कराने वाले नामधारी जो महान आत्मायें हैं, वे भी रचना तो बहुत रच लेते हैं, प्रेम भी देते हैं लेकिन पालना नहीं दे सकते हैं इसलिए फालोअर्स बन जाते हैं लेकिन पालना से बड़ा कर बाप से मिलायें अर्थात् पालना द्वारा बाप के अधिकारी योग्य आत्मा बनायें, यह नहीं कर सकते हैं इसलिए फालोअर्स ही रह जाते, बच्चे नहीं बनते। बाप के वर्से के अधिकारी नहीं बनते हैं। ऐसे ही आप ब्राह्मण आत्माओं में भी रचना बहुत जल्दी रच लेते हो अर्थात् निमित्त बनते हो लेकिन प्रेम और पालना द्वारा उन आत्माओं को अविनाशी वर्से के अधिकारी बनाना, इसमें बहुत कम योग्य आत्मायें हैं। जैसे लौकिक जीवन में मां बच्चे को पालना द्वारा शक्तिशाली बनाती है, जिससे वह सदा किसी भी समस्या का सामना कर सके। सदा तन्दुरूस्त रहे, सम्पत्तिवान रहे। ऐसे आप श्रेष्ठ आत्मायें जगत माता बन एक दो आत्माओं की माँ नहीं, जगत माँ, बेहद की माँ बन, मन से ऐसा शक्तिशाली बनाओ जो सदा आत्मायें अपने को विघ्न-विनाशक, शक्ति सम्पन्न हेल्दी और वेल्दी अनुभव करें। अब ऐसी पालना की आवश्यकता है। ऐसी पालना वाले बहुत कम हैं। परिवार का अर्थ ही है प्रेम और पालना की अनुभूति कराना। इसी पालना की प्यासी आत्मायें हैं। तो समझा– इस वर्ष क्या करना है? सबके मुख से यही निकले कि हमारे समीप के सम्बन्धी हमें मिल गये हैं। पहले रिलेशन की अनुभूति कराओ फिर कनेक्शन सहज हो जायेगा। “हमारे हमको मिल गये”, ऐसी लहर चारों ओर फैल जाए। तब मुख से निकलेगा– जिन्हें पाना था वह पा लिया। जैसे बाप को भिन्न-भिन्न सम्बन्ध से आप अधिकारी आत्मायें अनुभव करती हो। ऐसे वो तड़पती हुई आत्मायें यही अनुभव करें कि जो कुछ मिलना है, जो कुछ पाना है, इन्हीं द्वारा ही मिलना है, पाना है। फिर नाम भिन्न-भिन्न कहेंगे। ऐसे वायुमण्डल बनाओ। माँ भी बच्चे को बाप का परिचय स्वयं ही देती है। माँ ही बच्चे को बाप से मिलाती है। अपने तक नहीं बनाना है लेकिन बाप से कनेक्शन जोड़ने योग्य बनाना है। सिर्फ माँ-माँ कहते रहें, ऐसे छोटे बच्चे नहीं बनाना। लेकिन बाबा-बाबा सिखाना। वर्से के अधिकारी बनाना। समझा। जैसे बाप के लिए सबके मुख से एक ही आवाज निकलती है-“मेरा बाबा”। ऐसे आप हर श्रेष्ठ आत्मा के प्रति यह भावना हो, महसूसता हो, जो हरेक समझे कि यह मेरी माँ है। यह है बेहद की पालना। हरेक से मेरे-पन की भासना आये। हरेक समझे कि यह मेरे शुभचिन्तक, सहयोगी सेवा के साथी हैं। इसको कहा जाता है– बाप समान। इसको ही कहा जाता है कर्मातीत स्टेज के तख्तनशीन। जो सेवा के कर्म के भी बन्धन में न आओ। हमारा स्थान, हमारी सेवा, हमारे स्टूडेन्ट, हमारी सहयोगी आत्मायें, यह भी सेवा के कर्म का बन्धन है। इस कर्मबन्धन से कर्मातीत। तो समझा– इस वर्ष क्या करना है? कर्मातीत बनना है और “यह वही हैं, यही सब कुछ हैं,” यह महसूसता दिलाए आत्माओं को समीप लाना है। ठिकाने पर लाना है। अपने प्रति भी सुनाया और सेवा के प्रति भी सुनाया। अच्छा– सबका संकल्प था ना कि अभी क्या करना है? कौन-सी लहर फैलानी है। अच्छा। ऐसे स्वराज्य अधिकारी, कर्मातीत स्टेज के तख्तनशीन, सर्व को समीप सम्बन्ध की अनुभूति कराने वाले, बेहद की प्रेम भरी पालना देने वाले, ऐसे ईष्ट देव आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते। शक्ति सेना को देख बाप अति हर्षित होते हैं। शक्तियां सदा बाप के साथी हैं इसीलिए गायन ही है शिव शक्ति। शक्तियों के साथ बाप का भी यादगार है, तो कम्बाइन्ड हो गई ना। शक्ति शिव से अलग नहीं, शिव शक्ति से अलग नहीं। ऐसे कम्बाइन्ड। एक-एक जगतजीत हो, कम नहीं हो। सारे जगत पर जीत पाती हो। जगत पर राज्य करना है ना! उस सेना में टुकडि़यां होती हैं, दो टुकड़ी, चार टुकड़ी। यहाँ बेहद है। बेहद बाप की सेना और बेहद के ऊपर विजय। बापदादा को भी खुशी होती है, एक-एक बच्चा हद का नहीं, बेहद का मालिक है। सभी बच्चे बाप के मुख हो ना? बाप के मुख अर्थात् मुख द्वारा बाप का परिचय देने वाले इसलिए गऊमुख का भी गायन है। सदा मुख द्वारा बाबा-बाबा निकलता है, तो मुख का भी महत्व हो गया ना। बापदादा सभी बच्चों को बाप के घर का और बाप का श्रृंगार कहते हैं, तो बाप के घर का श्रृंगार जा रहे हो, औरों को श्रृंगार कराने के लिए। कितनों को श्रृंगार करके लायेंगे? एक-एक को बाप के आगे गुलदस्ता लाना पड़ेगा। सभी रत्न अमूल्य हो क्योंकि बाप को जाना और बाप से सब कुछ पाया। तो सदा अपने को इसी खुशी में रखना और सबको यही खुशी बांटते रहना। अच्छा। संगमयुग है ही चलने और चलाने का युग। किसी भी बात में रूकना नहीं है। चलते चलने में अपना और सर्व का कल्याण है। संगम पर बापदादा सदा आपके साथ हैं क्योंकि अभी ही बाप बच्चों के आगे हाजर-नाजर होते हैं। याद किया और हाजर हुए। देखते हुए न देखो, सुनते हुए न सुनो, बाप की सुनो तो चलते चलेंगे। अच्छा।

लण्डन ग्रुप के साथ अव्यक्त-बापदादा की मुलाकात (8-1-82)

आज विशेष लण्डन निवासी बच्चों से मिलन मनाने के लिए आये हैं। वैसे तो सभी बापदादा के लिए सदा प्रिय हैं, सभी को विशेष मिलने का चांस मिला है लेकिन आज निमित्त लण्डन निवासियों से मिलना है। लण्डन निवासी बच्चों ने सेवा में दिल व जान, सिक व प्रेम से अपना सहयोग दिया है और देते ही रहेंगे। स्व के उड़ती कला में भी अच्छा अटेन्शन है। नम्बरवार तो हैं ही। फिर भी पुरूषार्थ की रफ्तार अच्छी है। (एक पक्षी उड़ता हुआ क्लास में आ गया) सभी उड़ना देख करके खुश हो रहे हो। ऐसे ही स्वयं की भी उड़ती कला कितनी प्रिय होगी। जब उड़ते हो तो फ्री हो, स्वतन्त्र हो। और उड़ने के बजाए नीचे आ जाते हो तो बन्धन में आ जाते हो। उड़ती कला अर्थात् बन्धनमुक्त, योगयुक्त। तो लण्डन निवासी क्या समझते हैं? उड़ती कला है ना? नीचे तो नहीं आते हो? अगर नीचे आते भी हो तो नीचे वालों को ऊपर ले जाने के लिए आते हो, वैसे नहीं आते। जो नीचे की स्टेज पर स्थित हैं उन्हों को हिम्मत और उल्लास दिलाकर उड़ाने के लिए सेवा के प्रति नीचे आये और फिर ऊपर चले गये– ऐसी प्रैक्टिस है? क्या समझते हो? लण्डन निवासी ग्रुप सदा देह और देह के दुनिया की आकर्षण से न्यारे और सदा बाप के प्यारे हैं। इसको कहा जाता है कमल-पुष्प समान। सेवा अर्थ रहते हुए भी न्यारे और प्यारे। तो न्यारा-प्यारा ग्रुप है ना? लण्डन से सारे विदेश के सेवाकेन्द्रों का सम्बन्ध है। तो लण्डन निवासी इस सेवा के वृक्ष का फाउण्डेशन हो गये। फाउण्डेशन कमजोर तो सारा वृक्ष कमजोर हो जायेगा इसलिए फाउण्डेशन को सदा अपने ऊपर सेवा की जिम्मेवारी सहित अटेन्शन रखना है। वैसे तो हरेक के ऊपर अपनी और विश्व के सेवा की जिम्मेवारी है। उस दिन सुनाया था कि सब जिम्मेवारी के ताजधारी हैं। फिर भी आज लण्डन निवासी बच्चों को विशेष अटेन्शन दिला रहे हैं। यह जिम्मेवारी का ताज सदा के लिए डबल लाइट बनाने वाला है। बोझ वाला ताज नहीं है। सर्व प्रकार के बोझ को मिटाने वाला है। अनुभवी भी हो कि जब तन-मन-धन, मंसा-वाचा-कर्मणा सब रूप से सेवाधारी बन सेवा में बिजी रहते हो तो सहज ही मायाजीत, जगतजीत बन जाते हो। देह का भान स्वत: ही, सहज ही भूला हुआ होता है, मेहनत नहीं करनी पड़ती। अनुभव है ना? सेवा के समय बाप और सेवा के सिवाए और कुछ नहीं सूझता। खुशी में नाचते रहते हो। तो यह जिम्मेवारी का ताज हल्का है ना? अर्थात् हल्का बनाने वाला है इसलिए बापदादा सभी बच्चों को रूहानी सेवाधारी का टाइटल विशेष याद दिलाते हैं। बापदादा भी रूहानी सेवाधारी बन करके आते हैं। तो जो बाप का स्वरूप वह बच्चों का स्वरूप। तो सभी डबल विदेशी ताजधारी हो ना? बाप समान सदा रूहानी सेवाधारी। आंख खुली, मिलन मनाया और सेवा के क्षेत्र पर उपस्थित हुए। गुडमार्निग से सेवा शुरू होती है और गुडनाइट तक सेवा ही सेवा है। जैसे निरन्तर योगी, ऐसे ही निरन्तर रूहानी सेवाधारी। चाहे कर्मणा सेवा भी करते हो तो कर्मणा द्वारा भी रूहों को रूहानियत की शक्ति भरते हो क्योंकि कर्मणा के साथ-साथ मन्सा सेवा भी करते हो। तो कर्मणा सेवा में भी रूहानी सेवा। भोजन बनाते हो तो रूहानियत का बल भोजन में भर देते हो, इसलिए भोजन ब्रह्माभोजन बन जाता है, शुद्ध अन्न बन जाता है। प्रसाद के समान बन जाता है। तो स्थूल सेवा में भी रूहानी सेवा भरी है। ऐसे निरन्तर सेवाधारी, निरन्तर मायाजीत हो जाते हैं। विघ्न-विनाशक बन जाते हैं। तो लण्डन निवासी क्या हैं? निरन्तर सेवाधारी। लण्डन में माया तो नहीं आती है ना कि माया को भी लण्डन अच्छा लगता है? अच्छा। ओम् शान्ति।
वरदान:
निमित्त भाव के अभ्यास द्वारा स्व की और सर्व की प्रगति करने वाले न्यारे और प्यारे भव!
निमित्त बनने का पार्ट सदा न्यारा और प्यारा बनाता है। अगर निमित्त भाव का अभ्यास स्वत: और सहज है तो सदा स्व की प्रगति और सर्व की प्रगति हर कदम में समाई हुई है। उन आत्माओं का कदम धरनी पर नहीं लेकिन स्टेज पर है। निमित्त बनी हुई आत्माओं को सदा यह स्मृति स्वरूप में रहता कि विश्व के आगे बाप समान का एक्जैम्पल हैं।
स्लोगन:
सुखदाता के बच्चे सदा सुख के झूले में झूलते रहो, दु:ख की लहर में नहीं आओ।